समस्त विश्व को अपनी चपेट में ले चुकी कोरोना महामारी ने दूसरी लहर के दौरान देश में पिछले 15 दिनों में बहुत तेजी से रफतार पकड़ी है। मात्र 2 सप्ताह पहले जहां कोरोना से होने वाले संक्रमण के परिणामस्वरूप प्रतिदिन लगभग 1000 लोगों के प्राण जा रहे थे वहीं अब यह सं या 3500 प्रतिदिन का आंकड़ा भी पार कर गई है।
हालत यह है कि भारत में कोरोना से मौतों की गूंज दूर-दराज तक सुनाई दे रही है। विश्व की सबसे बड़ी अमरीकी समाचार पत्रिका ‘टाइम’ ने अपने 10 से 17 मई वाले अगले अंक के मुखपृष्ठ पर भारत में जलती चिताओं का चित्र प्रकाशित किया है। यहां रोज 3 लाख से अधिक मामले सामने आ रहे हैं और अस्पतालों में इलाज न हो पाने से बड़ी संख्या में लोग मर रहे हैं।
मृतकों के शव श्मशानघाटों तक ले जाने के लिए एम्बुलैंस तक नहीं मिल रहीं। श्मशानों में मृतकों को जगह नहीं मिलने से उनके परिजनों को अंतिम संस्कार के लिए ल बा इंतजार करना पड़ रहा है। शवों की अधिकता और जगह की कमी के कारण कई जगह जमीन पर रखकर ही मृतकों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है।
यही नहीं श्मशानघाटों के कर्मचारियों के लिए भी समस्या पैदा हो गई है। लगातार काम करने से थकावट और तनाव के कारण उनका बुरा हाल हो रहा है। कई जगह तो उन्हें खाने के लिए समय निकालने में भी मुश्किल आ रही है। अनेक स्थानों पर जहां रात 11 बजे तक संस्कार होते थे वहां अब चौबीसों घंटे संस्कार हो रहे हैं। बरेली स्थित संजय नगर श्मशानघाट के प्रबंधक इतना थक गए थे कि उन्होंने शव लेकर आए अनेक लोगों को यह कह कर वापस लौटा दिया कि वे अब और शव नहीं ले सकते। श्मशान भूमियों में लकडिय़ों की मांग बढ़ जाने से कई जगह इसकी कमी पैदा हो गई है तथा कीमत भी 25 प्रतिशत तक बढ़ गई है।
राजधानी दिल्ली के सबसे बड़े ‘निगम बोध श्मशानघाट’ में कोरोना की दूसरी लहर आने से पहले प्रतिदिन 6 से 8 हजार किलो लकड़ी की खपत होती थी जो अब दूसरी लहर के दौरान काफी अधिक हो गई है। इसी को देखते हुए पूर्वी दिल्ली नगर निगम ने अधिकारियों को ईंधन के रूप में सूखे गोबर का इस्तेमाल करने का निर्देश दिया है।
झारखंड में रांची के ‘नामकूम’ स्थित ‘घाघरा मुक्ति धाम’ में लकड़ी समाप्त हो गई तो वहां अंतिम संस्कार करने आए लोगों का गुस्सा भड़क उठा और उन्होंने जबरदस्त हंगामा किया। यहीं पर बस नहीं, अनेक स्थानों पर लॉकडाऊन के चलते बाजार बंद होने के कारण पूजन सामग्री का भी अभाव हो गया है और अंतिम संस्कार के लिए सामग्री बेचने वालों के साथ-साथ जरूरतमंदों को सामग्री प्राप्त करने में भी कठिनाई हो रही है।
हालांकि कोरोना संक्रमण से मृत लोगों के दाह संस्कार के लिए अनेक मुक्तिधामों पर कोविड प्रोटोकोल के अंतर्गत प्रबंध किए गए हैं परंतु सब जगह ऐसा नहीं है तथा श्मशानघाटों में काम करने वाले कर्मचारियों को पी.पी.ई. किट आदि उपलब्ध नहीं करवाई गईं जो नियमानुसार संक्रमित शवों को जलाते समय पहनना जरूरी है। केवल श्मशानघाटों पर काम करने वाले कर्मचारी ही परेशान और हताश नहीं हैं, बल्कि महामारी में अपनों को खोने वालों का दुख भी अंतहीन हो गया है। ये लोग पहले अपने परिजनों के इलाज के लिए अस्पतालों के चक्कर लगाते रहे और फिर मौत हो जाने की स्थिति में उनके शव को विदाई देने के लिए भी ल बे इंतजार तथा परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
समय के साथ-साथ लोग जागरूक हो रहे हैं और टीकाकरण भी करवा रहे हैं तथा सरकार भी स्थिति पर नियंत्रण पाने के लिए जोर लगा रही है परंतु उत्पादन कम होने के कारण देश में टीकों की कमी पैदा हो जाने से टीकाकरण अभियान अवरुद्ध हो रहा है तथा कहना मुश्किल है कि भविष्य में परिस्थितियां क्या मोड़ लेंगी। अत: जरूरत अब इस बात की है कि लोग इस महामारी से बचाव के लिए सही तरीके से मास्क से मुंह और नाक को ढांप कर रखने, बार-बार हाथों को सैनेटाइज करने और सोशल डिस्टैंसिंग के नियमों का कठोरतापूर्वक पालन करने के साथ-साथ अपने आस-पास के लोगों को भी इसके लिए जागरूक करें ताकि यह खतरा यथासंभव कम किया जा सके।—विजय कुमार
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‘कोरोना से मृतकों के अंतिम संस्कार के लिए’ ‘लकड़ी भी कम पड़ने लगी’ (पंजाब केसरी)
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