महामारी के असर से उबरने की कोशिश में जुटी वैश्विक अर्थव्यवस्था इन-दिनों एक नयी चुनौती का सामना कर रही है. दुनियाभर में कंपनियां अपनी जरूरत से अधिक कच्चे माल और अन्य चीजों की ताबड़तोड़ खरीद कर रही हैं. ऐसे में वस्तुओं की आपूर्ति शृंखला पर बहुत अधिक दबाव बढ़ गया है. इसके अलावा चीजों की कमी भी हो रही है और उनके दाम बेतहाशा बढ़ रहे हैं.
ऐसी स्थिति में वैश्विक अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति की आशंका बढ़ गयी है. यदि जल्दी ही इस अफरातफरी पर काबू नहीं पाया गया, तो महामारी और मंदी से जूझती अर्थव्यवस्था का संकट गहरा हो जायेगा. लोहा, तांबा, गेहूं, सोयाबीन से लेकर प्लास्टिक और कार्डबोर्ड की चीजों की कमी हो गयी है. जानकारों के अनुसार, कंपनियों का मानना है कि कई देशों में महामारी पर नियंत्रण होने की वजह से बाजार में तैयार माल की बढ़ी मांग अगले साल तक बरकरार रहेगी. सो, वे पहले से ही बड़ी मात्रा में भंडारण कर रही हैं. चूंकि इनकी आपूर्ति मांग के अनुरूप नहीं हो पा रही है और यातायात में भी मुश्किलें आ रही हैं, तो कीमतें में बढ़ोतरी भी स्वाभाविक है.
इसका एक सीधा असर तो तैयार माल के थोक और खुदरा दामों पर भी होगा. इसके संकेत भी दिखने लगे हैं. इससे एक दूसरी चिंता यह पैदा हो गयी है कि महंगाई बढ़ने से बाजार में मांग भी घट सकती है. उल्लेखनीय है कि अर्थव्यवस्था के समुचित विकास के लिए उत्पादन, मांग, दाम, रोजगार और आमदनी में संतुलन होना जरूरी है. इस स्थिति के पैदा होने के अनेक कारण हैं. एक तो कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया को अस्त-व्यस्त कर दिया और इसका प्रकोप अभी भी पूरी तरह से थमा नहीं है.
मार्च में स्वेज नहर में एक बड़े जहाज के कई दिनों तक फंसे रहने के चलते सामानों की ढुलाई बड़े पैमाने पर प्रभावित हुई थी. अमेरिका समेत कई देशों में सूखे की वजह से कृषि क्षेत्र पर असर पड़ा. तेल, अन्य खनिजों और धातुओं की कीमतों में बड़े उतार-चढ़ाव देखे गये. अभी भारत में महामारी की दूसरी लहर का कहर जारी है, जिससे बंदरगाहों की गतिविधियां शिथिल हुई हैं. इन कारकों से श्रम और पूंजी की उपलब्धता में अनिश्चितता पैदा हुई है.
मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखने और बाजार में पूंजी मुहैया कराने के लिए ब्याज दरों की समीक्षा का दबाव भी बढ़ रहा है. महामारी से अधिक प्रभावित हर देश को राहत के लिए भी धन मुहैया कराना पड़ा है. भारत के लिए भी यह स्थिति चिंताजनक है. अप्रैल में थोक मुद्रास्फीति लंबे समय में सबसे अधिक रही थी. हालांकि खुदरा मुद्रास्फीति में कुछ कमी आयी है, पर यह मुख्य रूप से खाद्य पदार्थों के दाम घटने का नतीजा है. यदि बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की ताबड़तोड़ खरीद जारी रही, तो महंगाई और बढ़ेगी. चूंकि कुछ महीनों में स्थिति में सुधार की उम्मीद नहीं है, इसलिए इस संबंध में ठोस नीतिगत पहल जरूरी है.
सौजन्य - प्रभात खबर।
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