टी. एन. नाइनन
भारत को अच्छी खबर की जरूरत है। देश महामारी से जूझ रहा है और पर्याप्त चिकित्सा सहायता नहीं मिल पाने की वजह से चारों ओर अफरातफरी का माहौल है। ऐसे में यीट्स की कविता की एक पंक्ति हकीकत में बदलती दिखती है: 'चीजें टुकड़े-टुकड़े हो रही हैं, केंद्र अपनी पकड़ बरकरार नहीं रख सकता, पूरी दुनिया पर अराजकता छा गई है।' जाहिर है देश को अच्छी खबर की जरूरत है या कम से कम सोचने के लिए कोई और विषय। इंडियन प्रीमियर लीग में भाग ले रहे क्रिकेटरों के लिए तैयार खड़ी विभिन्न ऐंबुलेंसों के दृश्य फूहड़ लग रहे थे क्योंकि वास्तविक जरूरतमंद ऐंबुलेंस की कमी से जूझ रहे थे। क्रिकेट पलायन का एक जरिया है। यह हमें कुछ और सोचने का अवसर देता है। बहरहाल, उन तमाम लोगों के लिए जिन्होंने देश को लेकर उम्मीद नहींं खोई है, उनके लिए क्रेडिट सुइस के भारतीय मामलों के रणनीतिकार नीलकंठ मिश्रा द्वारा उल्लिखित व्यापक और बड़े बदलाव वाली तस्वीर पर ध्यान केंद्रित करना बेहतर होगा। यह तस्वीर इस समाचार पत्र के अंग्रेजी संस्करण में क्रमश: 5, 14, 21 और 29 अप्रैल को चार हिस्सों में प्रकाशित उनके आलेखों से उभरती है। पहले आलेख का शीर्षक है, 'इंडियाज चेंजिंग कॉर्पोरेट लैंडस्केप' (भारत का बदलता कारोबारी परिदृश्य)। आईपीएल ने जहां पलायन का अवसर दिया, वहीं मिश्रा के आलेखों की शृंखला उम्मीद जगाती है।
मिश्रा आलेख में कहते हैं कि देश में 100 से अधिक यूनिकॉर्न (एक अरब डॉलर से अधिक मूल्यांकन वाली स्टार्टअप) हैं। जबकि पहले इनके 37 होने की बात कही जा रही थी। मिश्रा का व्यापक संदेश यह है कि भारत अपने कारोबारी परिदृश्य को बदलने के शुरुआती दौर में है। वह इसे निजी पूंजी के उभार की वजह बताते हैं जो अब सार्वजनिक पेशकश वाले पूंजी बाजार की तुलना में पूंजी का बड़ा जरिया बन गई है। आमतौर पर यह पूंजी विदेशी है और इसकी प्रचुर उपलब्धता ने स्टार्टअप को नाटकीय गति से विकसित होने में मदद की है। मिश्रा इसे 'खामोश परिवर्तन' से जोड़ते हैं जो डेटा के इस्तेमाल और स्मार्टफोन के बढ़ते इस्तेमाल (ये दोनों पहले की तुलना में काफी सस्ते हुए हैं) से उत्पन्न हुआ। इस बदलाव की दूसरी वजह वह ग्रामीण इलाकों में अच्छी सड़कों और हर घर के विद्युतीकरण को देते हैं। इनके चलते निचले स्तर पर कई बदलाव आए और उत्पादकता में सुधार हुआ। जाम त्रयी (जन धन-आधार-मोबाइल) को नया रूप देते हुए वह वित्तीय पूंजी में इजाफे की बात करते हैं और कहते हैं कि यूनीफाइड पेमेंट इंटरफेस (यूपीआई) जैसी सेवा ने भारत को क्रेडिट कार्ड के दौर से आगे सीधे डिजिटल भुगतान तक ले आए हैं। पांच वर्ष पहले के 5 फीसदी की तुलना में बढ़कर यह गत वर्ष 30 फीसदी पहुंच गया है। वहीं आधार ने ग्राहक को जानने की प्रक्रिया आसान बनाई है।
यूनिकॉर्न के निर्माण की प्रक्रिया में तमाम बदलाव हुए और अब वे पुराने कारोबारों को बदलकर नए कारोबार खड़े कर रहे हैं। ये ई-कॉमर्स से लेकर फिनटेक और एजुुटेक तक ही नहीं बल्कि वितरण और लॉजिस्टिक्स तक में काम कर रहे हैं। इससे अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाने में मदद मिली। वहीं वित्तीय कंपनियों को खपत की आदत पता चली। अब वे लोगों को ऋण दे सकती हैं और वहीं छोटे कारोबार भी आसान ऋण और आपूर्ति शृंखला की बदौलत विकसित हो सकते हैं।
सूचना प्रौद्योगिकी परिदृश्य में आया बदलाव भी इसके समतुल्य है। करीब 8,000 कंपनियां अब विशिष्ट सॉफ्टवेयर उत्पादों की बदौलत संचालित हैं और ये प्रति उपयोग भुगतान के मानक का इस्तेमाल करती हैं। यह उन छोटे और मझोले उपक्रमों के लिए बड़ी सफलता है जो कम लागत पर सूचना प्रौद्योगिकी का लाभ चाहते हैं। नैसकॉम के मुताबिक 2025 तक ये राजस्व में 15 अरब डॉलर का योगदान करेंगे। मिश्रा कहते हैं कि यूनिकॉर्न उद्यमिता का सुखद चक्र शुरू करेंगे और उनका राजस्व वृद्धिकारी जीडीपी के 5 फीसदी के बराबर है।
कई पाठक इस पूरी खबर के अंशों से परिचित होंगे या शायद ज्यादातर हिस्से से क्योंकि बदलाव का प्रमाण चारों ओर दिख रहा है। यह किस्सा पहले भी टुकड़ों में बयां किया गया है। मिश्रा ने शायद पहली बार इसे उद्यमिता के स्तर सामने रखा है और क्षेत्रवार बदलावों को व्यापक बदलाव की वृहद आर्थिक तस्वीर के साथ पेश किया है। उन्होंने समझाया है कि यह बदलाव भविष्य को कैसे आकार देगा? वर्तमान की सरकारी और व्यवस्थागत विफलताओं के निराश करने वाले प्रमाणों को कम आंकने और जिनकी जिंदगी अनावश्यक रूप से बरबाद हो गई है उनके प्रति किसी अवमानना के बिना यह बात ध्यान में रखना सही होगा कि भारत की गाथा का एक दूसरा पक्ष भी है और इसलिए उम्मीद भी बाकी है।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
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