प्रकाश जावडेकर
जनवरी की शुरुआत में देश भर में कोविड के हालात में काफी सुधार हुआ था। हालांकि, केरल में संक्रमण में वृद्धि होने लगी थी और रोजाना लगभग एक तिहाई नए मामले इसी राज्य से आने लगे थे। विगत छह जनवरी को केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव ने राज्य सरकार को पत्र लिखकर तत्काल कदम उठाने का आग्रह किया। अगले ही दिन राज्य के कोविड प्रबंधन प्रयासों में सहयोग के लिए एक केंद्रीय टीम भेजी गई। मैं इसका जिक्र इसलिए कर रहा हूं, क्योंकि यह धारणा बना दी गई है कि केंद्र सरकार ने पहली लहर के बाद कोविड प्रबंधन बंद कर दिया और पिछले कुछ महीनों से इसे पूरी तरह राज्यों पर छोड़ दिया।
यह बात सच्चाई से कोसों दूर है। सार्वजनिक स्वास्थ्य राज्य का विषय होने के बावजूद कोविड प्रबंधन में सरकार काफी सक्रिय रही है, क्योंकि महामारी में राष्ट्रीय स्तर पर समन्वय और संसाधनों की जरूरत होती है। केंद्र लगातार मोर्चे पर अगुआई कर राज्यों को सहयोग व मार्गदर्शन प्रदान कर रहा है। फरवरी, 2020 के बाद से, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय रुझानों की निगरानी, राज्यों की तैयारियों का मूल्यांकन, तकनीकी विशेषज्ञता प्रदान करने और राज्य व जिला स्तर की रणनीतियां तैयार करने में मदद कर रहा है।
केंद्र सरकार का कोविड प्रबंधन केवल नई दिल्ली से सुझाव और दिशा-निर्देश जारी करने तक सीमित नहीं है। कई मौके पर केंद्र ने उच्च स्तरीय निगरानी दल तैनात किए हैं, जो राज्यों की तैयारियों का आकलन करते हैं और नियंत्रण व कंटेनमेंट उपायों में सहयोग करते हैं। सितंबर, 2020 से केंद्रीय अधिकारियों व स्वास्थ्य विशेषज्ञों वाली 75 से अधिक उच्च स्तरीय टीम विभिन्न राज्यों में तैनात की जा चुकी है। इनसे मिले फीडबैक ने केंद्र व राज्यों के बीच संवादहीनता कम कर राज्यों की तैयारियों व रणनीतियों में प्रमुख कमियों की पहचान करने में मदद की।
नए मामलों में जब वृद्धि शुरू हुई, तब क्या केंद्र ने मौजूदा लहर को नजर अंदाज किया? केंद्र के शुरुआती हस्तक्षेपों की समयावधि से सच्चाई का पता चलता है। 21 फरवरी को जब दैनिक मामले 13,000 से कम थे, तब स्वास्थ्य मंत्रालय ने पाया कि संक्रमण के रुझानों में राज्यों के बीच काफी ज्यादा विविधता है। छत्तीसगढ़, केरल व महाराष्ट्र को तुरंत पत्र भेजे गए, जहां मामलों में वृद्धि देखी जा रही थी। निगरानी व राज्यों की सहायता के लिए 24 फरवरी को सात राज्यों के लिए उच्च स्तरीय केंद्रीय टीम की घोषणा की गई, जिनमें महाराष्ट्र, केरल, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, गुजरात, पंजाब, कर्नाटक, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर शामिल थे।
मार्च में केंद्र इन राज्यों में संक्रमण के प्रसार की निगरानी के साथ राज्यों के साथ मिलकर काम कर रहा था और उनके प्रतिक्रिया उपायों की समीक्षा के साथ केंद्रीय टीम द्वारा तैयार रिपोर्ट का अनुपालन सुनिश्चित कर रहा था। इन राज्यों ने केंद्र की आरंभिक चेतावनियों को गंभीरता से लिया होता, तो मौजूदा उछाल इतना भयंकर नहीं होता। जब केंद्र कोविड को नियंत्रित करने के ठोस प्रयास कर रहा था, तब विपक्षी नेता राजनीति जारी रखे हुए थे। उद्धव ठाकरे का पूरा ध्यान वसूली रैकेट से निपटने पर था, जो उनकी नाक के नीचे चल रहा था। कांग्रेस नेतृत्व, राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा के व्यवहार के बारे में विस्तार से बताने की जरूरत नहीं है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री का टीकाकरण को लेकर रवैया और राज्य से लंबे समय तक अनुपस्थिति को सब जानते हैं।
सरकार द्वारा समय से पहले विजय के उल्लास को लेकर कुछ लोगों द्वारा गुमराह करने वाली आलोचना की जा रही है। इस सिलसिले में प्रधानमंत्री ने 17 मार्च को आयोजित एक बैठक में मुख्यमंत्रियों से जो कहा था, उसे दोहराने की जरूरत है : ‘दुनिया के अधिकांश कोरोना प्रभावित देशों ने कोरोना की कई लहरों को झेला है। हमारे देश में भी गिरावट के बाद कुछ राज्यों में मामलों में अचानक वृद्धि हुई है।...हमने यह भी देखा है कि महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में पॉजिटिविटी रेट काफी ज्यादा है।...इस समय कई क्षेत्रों और जिलों में मामले बढ़ रहे हैं, जो अब तक अप्रभावित थे। पिछले कुछ हफ्तों में यह वृद्धि देश के 70 जिलों में 150 प्रतिशत से अधिक है। अगर हम महामारी को अभी नहीं रोक पाए, तो यह देशव्यापी प्रकोप की ओर बढ़ सकता है। हमें कोरोना की इस उभरती 'दूसरी पीक' को तुरंत रोकना होगा।...कोरोना के खिलाफ लड़ाई में हमारा आत्मविश्वास अति आत्मविश्वास नहीं बनना चाहिए और हमारी सफलता को लापरवाही में नहीं बदलना चाहिए।' क्या ये शब्द उस व्यक्ति के लगते हैं, जिसने विजय की घोषणा की है और उसे खतरे का आभास नहीं है!
मौजूदा लहर की आशंका के कारण केंद्र ने सबसे अधिक प्रभावित राज्यों व जिलों में विशेष दल भेजे। विगत अप्रैल में देश भर में सबसे ज्यादा प्रभावित जिलों में 50 से अधिक टीमें तैनात की गईं। इन टीमों ने रोकथाम और निगरानी उपायों में राज्यों की मदद की। मार्च के अंत में जैसे-जैसे मामले बढ़ने लगे, राज्यों को जिला स्तरीय रणनीतियां तैयार करनी पड़ीं। केंद्र सरकार के अधिकारियों ने 27 मार्च से 15 अप्रैल के बीच करीब 200 हाई फोकस जिलों की कार्य योजनाओं की समीक्षा की।
केंद्र ने नागरिकों के जीवन की सुरक्षा के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाया। टीकाकरण अभियान के पहले चरण में स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, अग्रिम मोर्चे के कर्मचारियों और बुजुर्गों को कवर किया गया। जैसे-जैसे मामले बढ़ रहे थे, कई राज्यों को स्वास्थ्य सेवाओं के बुनियाद ढांचे में कमी का एहसास हुआ और केंद्र को दवा, ऑक्सीजन सिलिंडर, वेंटिलेटर आदि की आपूर्ति के लिए एसओएस अनुरोध भेजे गए। झूठी खबर के उलट, केंद्र सरकार महामारी प्रबंधन के इन सभी पहलुओं से एक साथ निपट रही थी। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि संकट के बीच भी कुछ लोग दुष्प्रचार करने और राजनीतिक नैरेटिव तैयार करने में व्यस्त हैं। हमारे लिए महामारी पर काबू पाना और नागरिकों की जरूरतें पूरी करना प्राथमिकता में सबसे आगे रहा है। यह एक युद्ध है, जिसे एक राष्ट्र, एक जनसमूह और एक मिशन के रूप में लड़ने की जरूरत है।
-लेखक केंद्रीय मंत्री हैं
सौजन्य - अमर उजाला।
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