विनायक चटर्जी
हरेक संगठन की स्थापना के पीछे एक खास उद्देश्य होता है। उदाहरण के लिए बीएचईएल का मुख्य कार्य बिजली उत्पादक यंत्रों एवं उपकरणों का विनिर्माण करना है जबकि एनटीपीसी को बिजली उत्पादन की जिम्मेदारी सौंपी गई है। ये दोनों कंपनियां एक दूसरे के कार्य क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं कर सकती हैं। बीएचईएल बिजली उत्पादन नहीं कर सकती और न ही एनटीपीसी बिजली के उपकरणों का निर्माण कर सकती है।
भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) की स्थापना भी एक खास मकसद से की गई है। इसका मूल उद्देश्य देश में राजमार्गों एवं सड़कों का निर्माण करना है। इसको अस्तित्व में आए ढाई दशक से भी अधिक समय हो गया है और इसने कई उपलब्धियां अर्जित की हैं। एनएचएआई प्रतिदिन औसतन 40 किलोमीटर सड़क निर्माण का लक्ष्य हासिल करने के करीब पहुंच चुका है। हाल में यह रोजाना 34 किमी प्रति दिन की रफ्तार से सड़क निर्माण करने की विशेष उपलब्धि हासिल कर चुका है। इसकी स्थापना का मुख्य उद्देश्य निर्माण कार्य है। लेकिन इसे नियोजन, इंजीनियरिंग और भूमि अधिग्रहण, राज्य समर्थित समझौते, वन एवं पर्यावरण और संबंधित मंजूरी और रकम जुटाने से लेकर परियोजना एवं कार्यक्रम प्रबंधन तक का काम देखना पड़ता है। कानूनी विवादों से भी इसे निपटना पड़ता है।
आने वाले कई वर्षों तक एनएचएआई पर तेजी से निर्माण कार्य पूरा करने का दबाव बना रहेगा। भारत को नई राजमार्ग परियोजनाओं के साथ कई अन्य कार्यों जैसे फ्लाईओवर, पुल एवं सुरंगों आदि के निर्माण को अंजाम देना होगा। बेहतर होगा कि एनएचएआई की भूमिका केवल उसके मूल कार्यों तक ही सीमित रहने दिया जाए।
हालांकि राजमार्गों की सेवाओं से जुड़े पहलुओं में हाल के वर्षों में नाटकीय बदलाव आए हैं। इनमें सबसे पहले पायदान पर है सड़क सुरक्षा। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में सड़क दुर्घटनाओं में जितनी मौतें होती हैं उनमें 11 प्रतिशत आंकड़े भारत से ताल्लुक रखते हैं। भारत में प्रति वर्ष 4.5 लाख सड़क दुर्घटनाएं होती हैं जिनमें 15,000 लोग अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं। सड़क सुरक्षा में सड़कों की संरचना से लेकर यातायात नियमों का अनुपालन सुनिश्चित करने, आपात स्वास्थ्य सेवाएं बहाल करने, वाहन सुरक्षा मानदंडों सहित सड़क पर वाहनों के आवागमन पर पैनी नजर रखने जैसी बातें आती हैं। अप्रैल 2021 के दूसरे सप्ताह में वित्त मंत्रालय ने राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा बोर्ड की स्थापना को सिद्धांत रूप में मंजूरी दे दी है।
ग्राहक संतुष्टि या दूसरे शब्दों में कहें तो आरामदायक सफर एक दूसरा अहम पहलू है। यह तभी संभव होगा जब सड़क रखरखाव कार्य निरंतर चलता रहे और यातायात निर्बाध रूप से जारी रहे। इन दिनों लोग भारतीय सड़कों पर अपने यातायात के अनुभव से संतुष्ट नहीं हैं। टोल का भुगतान करने के बाद भी पर्याप्त सेवाएं नहीं मिल पा रही हैं। अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के अनुरूप भारत में राजमार्ग सुविधाएं भारत में मुनासिब नहीं हैं। तकनीक की बात करें तो एक नई सोच यह है कि टोल संग्रह पूरी तरह जीपीएस आधारित प्रणाली से होगा। गडकरी ने मार्च 2021 में संसद में बताया था कि एक वर्ष के भीतर देश में सभी टोल बूथ समाप्त हो जाएंगे और टोल संग्रह जीपीएस आधारित प्रणाली से होगा। इसके लिए पुख्ता तरीके से सेवाओं का एकीकरण करना होगा। इस समय देश में भारतीय राजमार्ग प्रबंधन कंपनी लिमिटेड नाम से एक इकाई है जो एनएचएआई के लिए इलेक्ट्रॉनिक टोल संग्रह और संबंधित सेवाओं का काम देखती है।
माल परिवहन का ताना-बाना भी आपस में इस तरह जुड़ा है कि सड़क उस व्यापक ढांचे का हिस्सा हैं, जो औद्योगिक क्षेत्रों, बंदरगाहों और अन्य आर्थिक तंत्रों को एक दूसरे से जोड़ते हैं। इंटर-मोडेलिटी (निर्बाध सेवाएं देने के लिए परिवहन के विभिन्न माध्यमों को एक दूसरे से जोडऩा) भी एक विशेष विधा है। मल्टी-मोडल लॉजिस्टिक्स पार्क और बंदरगाह संपर्क परियोजनाओं पर नजर रखने के लिए हाल में एनएचएआई ने राष्ट्रीय राजमार्ग माल ढुलाई प्रबंधन कंपनी नाम से एक नई इकाई स्थापित की है। आपदा प्रबंधन राजमार्गों के लिए लगातार और बार-बार पेश आने वाली चुनौती बना रहेगा। अक्सर हिमपात, बाढ़, भूस्खलन, भूकंप और इन दिनों सड़कों पर विरोध प्रदर्शन के बढ़ते फैशन से भी यातायात प्रभावित होता है। यह एक चिंता की बात है कि जमीन की तेजी से बढ़ती कीमत का लाभ राज्य या सामान्य लोगों के बजाय रियल एस्टेट क्षेत्र में सटोरिये उठा रहे हैं। अद्यतन शुल्क, लैंड-बैंकिंग, वैल्यू कैप्चर फाइनैंसिंग जैसी संकल्पनाओं पर गौर किया जाना चाहिए और इन्हें क्रियान्वित किया जाना चाहिए। रिबन-डेवलपिंग राइट्स (राजमार्गों के इर्द-गिर्द घरों के निर्माण से जुड़े नियम) और एक्जिट पाइंट्स ऑफ एक्सेस-कंट्रोल्ड हाइवेज की भी चर्चा हुई है लेकिन इनका क्रियान्वयन नहीं हुआ है।
अंत में एक महत्त्वपूर्ण विषय पीपीपी साझेदारों का पेशेवर प्रबंधन है। इन्विट, टीओटी, राजस्व आश्वासन, बीटोअी और एचएएम ये भी पीपीपी का हिस्सा हैं, जिनमें विभिन्न निजी निवेशक और परिचालन साझेदार शामिल होते हैं। परिसंपत्ति मुद्रीकरण की दिशा में तेजी से काम करने और अपेक्षित परिणाम पाने के लिए दीर्घ अवधि के लिए निवेश करने वाले इन सभी निवेशकों से नियमित बातचीत करनी होगी। इससे आए दिन पेश होने वाली समस्याएं दूर होंगी और निवेशक भी पूंजी लगाने को लेकर स्वयं को सहज महसूस करेंगे। ऐसा करने से ही नई पीढ़ी के निवेशकों को आकर्षित किया जा सकता है। निर्माण देश में सड़क तंत्र तैयार करने का एक प्रमुख पहलू है लेकिन यह भी जेहन में रखना होगा कि सेवा आपूर्ति से जुड़े विभिन्न पहलू भारत में एक नए राजमार्ग सेवा प्राधिकरण की स्थापना की जरूरत की तरफ इशारा कर रहे है। यह नया प्राधिकरण अलग होना चाहिए और मौजूदा एनएचएआई की परिसंपत्ति सृजन भूमिका में इसका दखल नहीं होना चाहिए। इसका अपना निदेशकमंडल होना चाहिए और संचालन संरचना और प्रदर्शन मानदंड भी अलग होने चाहिए।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
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