लॉकडाउन का वक्त ( दैनिक ट्रिब्यून)

देश में कोरोना संक्रमण जिस तेजी से फैल रहा है और देश में ऑक्सीजन संकट व चिकित्सा सुविधाओं का जो हाल है, उसे देखते हुए अदालत, विशेषज्ञ व उद्योग जगत भी लॉकडाउन लगाने पर जोर दे रहा है। निस्संदेह स्थिति नियंत्रण से बाहर है। लॉकडाउन के समय का उपयोग ऑक्सीजन उत्पादन बढ़ाने व आपूर्ति तथा मरीजों के लिये चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने में होना चाहिए। साथ ही इस समय का उपयोग वैक्सीन उत्पादन बढ़ाने व टीकाकरण अभियान में तेजी लाने के लिये भी किया जा सकता है। लेकिन पिछले साल के दो माह के सख्त लॉकडाउन के दुष्प्रभावों से सहमी केंद्र सरकार फूंक-फूंककर कदम बढ़ा रही है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री ने कहा भी था कि लॉकडाउन को अंतिम विकल्प के रूप में अपनाया जाना चाहिए। लेकिन संसाधनों की कमी और संक्रमण की भयावहता को देखते हुए कुछ राज्य पंद्रह दिन, सप्ताह, तीन दिन या सप्ताहांत का लॉकडाउन लागू कर चुके हैं। महाराष्ट्र में संक्रमण की भयावहता के बीच लगाये गये लॉकडाउन के अच्छे परिणाम देखे गये हैं। ऐसे में साफ है कि लॉकडाउन का वास्तविक फायदा तभी है जब पूरे देश में केंद्र व राज्यों के समन्वय से इस दिशा में कदम उठाया जाये। यही वजह कि पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने ऑक्सीजन, आवश्यक दवाओं तथा वैक्सीनेशन नीति के प्रोटोकॉल की समीक्षा के साथ ही केंद्र व राज्यों को लॉकडाउन लगाने की सलाह दी। हालांकि, इससे पहले जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को राज्य के पांच जिलों में लॉकडाउन लगाने के आदेश दिये तो राज्य सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले पर रोक लगा दी थी। यद्यपि योगी सरकार ने इसके बाद सप्ताहांत लॉकडाउन की अवधि में वृद्धि की थी। हाल के दिनों में हरियाणा में एक सप्ताह, पंजाब सरकार ने पंद्रह मई तक बंदिशें तथा ओडिशा सरकार ने दो सप्ताह का लॉकडाउन लगाया है। हालांकि, इस बार का लॉकडाउन पिछले साल की तरह सख्त नहीं है।


निस्संदेह देश के विभिन्न राज्यों में कोरोना संक्रमण में जिस तरह तेजी आई है और अस्पतालों में जगह न मिलने व ऑक्सीजन की कमी से जिस तरह से लोग मर रहे हैं, भविष्य की तैयारी के लिये लॉकडाउन अपरिहार्य माना जाने लगा है। भारत ही नहीं, विदेशी विशेषज्ञ भी मौजूदा संकट में लॉकडाउन को उपयोगी मान रहे हैं। अमेरिका में बाइडन प्रशासन के मुख्य चिकित्सा सलाहकार एंथनी फाउची का सुझाव था कि भारत को वायरस के संचरण को रोकने के लिये कुछ सप्ताह का लॉकडाउन लगाना चाहिए। लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी जोड़ा कि इस अवधि का उपयोग चिकित्सा सुविधाओं को जुटाने तथा वैक्सीनेशन कार्यक्रम में तेजी लाने के लिये किया जाना चाहिए। लेकिन एक चिंता उन लोगों की भी है, जिनको पिछले साल सख्त लॉकडाउन लगाने पर सबसे ज्यादा भुगतना पड़ा था। रोज कमाकर खाने वाले वर्ग की चिंता भी इसमें शामिल है। उस वर्ग की भी जो लाखों की संख्या में अपने गांवों को पलायन कर गया था, जिसके चलते गांवों में भी संक्रमण में तेजी आई थी। यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट की बेंच को कहना पड़ा कि हमारी चिंता समाज के वंचित वर्ग के सामाजिक व आर्थिक जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर है। सरकार को पहले इस वर्ग को सहायता पहुंचाने की व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिए। यही वह वर्ग था जिसे लॉकडाउन शब्द से भय होने लगा था। लेकिन देश के जो हालात हैं उसमें लॉकडाउन को अंतिम विकल्प के रूप में प्रयोग माना जा रहा है। यही वजह है कि उद्योग जगत की प्रतिनिधि संस्था सीआईआई ने देश में संक्रमण के विस्तार को नियंत्रित करने के लिये आर्थिक गतिविधियों में कटौती तथा सख्त कदम उठाये जाने की मांग की है। निश्चिय ही अब केंद्र सरकार को पिछले लॉकडाउन के दुष्प्रभावों से सबक लेकर संक्रमण के चक्र को तोड़ने का प्रयास करना चाहिए। लेकिन सरकार को लॉकडाउन लगाने से पहले कमजोर वर्ग के लोगों को व्यापक राहत देने का कार्यक्रम लागू करना चाहिए। 

सौजन्य - दैनिक ट्रिब्यून।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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