सुरेंद्र कुमार
हाल तक दर्जनों टिप्पणीकार, टीवी एंकर चिल्ला-चिल्लाकर कह रहे थे कि कोविड-19 से जूझने में भारत ने कमाल किया है- संक्रमित होने वाले लोगों की कुल संख्या को कम और ठीक होने वालों की संख्या को उच्च रखा है, कोवाक्सिन एवं कोविशील्ड नामक दो वैक्सीनों के जरिये राष्ट्रव्यापी टीकाकरण अभियान की शुरुआत की है, और पड़ोसी देशों समेत 80 से ज्यादा विकासशील देशों को वैक्सीन की आपूर्ति कर भारत के लिए सद्भावना पैदा की है। कुछ लोग कल्पनाशील वैक्सीन कूटनीति की सफलता के लिए अपनी पीठ थपथपा रहे थे। चार फरवरी, 2021 को क्वाड के पहले वर्चुअल शिखर सम्मेलन में भारत की क्षमता को 'विश्व की फार्मेसी' के रूप में मान्यता मिलने पर हमें और भी आत्मसंतुष्टि हुई, जब अगले एक साल में दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में आपूर्ति के लिए भारत में अमेरिकी, जापानी और ऑस्ट्रेलियाई मदद से वैक्सीन के एक अरब खुराक के उत्पादन की परिकल्पना की गई।
वे काफी हद तक सही थे। हमें लॉकडाउन सहित विभिन्न उपायों के भारी सराहना मिली, जिस पर हम वाजिब ही गर्व कर सकते थे। लेकिन हमारी यह धारणा गलत थी कि कोविड-19 के खिलाफ जंग लगभग खत्म हो चुकी है। हमने सुरक्षा उपायों को कम कर दिया। मार्च के मध्य तक, अधिकांश होटल, शॉपिंग मॉल, क्लब, रेस्तरां, सैलून, रेस्तरां, गोल्फ क्लब और जिम, सिनेमा हॉल, पार्क आदि को संख्या के मामले में कुछ प्रतिबंधों के साथ चलाने की अनुमति दे दी गई थी। इन सबसे यह धारणा विकसित हुई कि सब कुछ सामान्य हो रहा था। लेकिन ऐसा नहीं था। कोरोना के खिलाफ जीत की घोषणा समय से पहले कर दी गई! दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल दावा करते नजर आ रहे थे कि दिल्ली ने कोरोना को तीन बार मात दी है। इससे एक मई, 2003 की अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश की वह तस्वीर याद आ गई, जिसमें वह युद्धपोत यूएसएस अब्राहम लिंकन में खड़े थे और उनके पीछे बैनर लटक रहा था, मिशन अकम्पलिश्ड (अभियान पूरा)!
पिछले एक महीने में भारत में कोरोना संकट ने विनाशकारी रूप दिखाया है। पिछले कुछ दिनों से लगातार भारत में दैनिक तीन लाख से ज्यादा संक्रमण के मामले दर्ज किए गए हैं। इस समय भारत दुनिया का सबसे बुरी तरह से प्रभावित देश बन गया है। संक्रमण के मामलों में इस वृद्धि ने गलतियों और गंभीर जमीनी वास्तविकताओं को उजागर किया है। ब्रिटिश दैनिक द गार्जियन ने एक कड़वी बात लिखी-भारत अब एक जीवंत नरक है। एक नया 'डबल म्यूटेंट' संस्करण, जिसका नाम बी.1.617 है, विनाशकारी कोरोना वायरस की दूसरी लहर में उभरा है। कई देशों ने भारत से उड़ानों पर प्रतिबंध लगा दिया है। अस्पतालों में पर्याप्त बिस्तर नहीं हैं, ऑक्सीजन की भारी कमी है; कई अस्पतालों ने दावा किया कि उन्हें बस आधे घंटे के ऑक्सीजन के साथ छोड़ दिया गया था। कई उद्योगपति अस्पताल के उपयोग के लिए अपने ऑक्सीजन स्टॉक की पेशकश के साथ आगे आए हैं। विदेशों से भी ऑक्सीजन की आपूर्ति हो रही है।
हालांकि सरकार ने 18 वर्ष से अधिक उम्र के सभी लोगों को टीका लगाने का फैसला किया है, लेकिन टीके का पर्याप्त स्टॉक नहीं है; भारत की केवल नौ फीसदी आबादी को वैक्सीन की एक खुराक मिली है। संतोष की बात है कि पिछले दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने टीका निर्माण से जुड़ी सामग्रियों की आपूर्ति पर सहमति जताई है। ब्रिटेन और जर्मनी ने सहानुभूति और अस्पष्ट वादे तो खूब किए हैं, लेकिन और कुछ नहीं। केवल फ्रांस, रूस और चीन ने खुलकर वैक्सीन आपूर्ति का प्रस्ताव दिया है। लेकिन पिछले साल वास्तविक नियंत्रण रेखा पर खूनी मुठभेड़ की यादें ताजा हैं। जाहिर है, भारत चीन की मदद स्वीकार नहीं करेगा। मौजूदा संकट के साथ चिकित्सा सुविधाओं की कमी और अराजकता भारत की छवि के लिए एक आपदा है। आप कोई भी विदेशी चैनल या प्रमुख अखबार देखिए, भारत का कोरोना संकट प्रमुख खबर है। इन सबसे महाशक्ति बनने की आकांक्षा रखने वाले भारत की छवि दागदार हुई है।
हालांकि केंद्र एवं राज्य सरकारों के समर्थक एवं विरोधी लगातार एक-दूसरे पर दोष मढ़ रहे हैं, एक निष्पक्ष पर्यवेक्षक संक्रमण के मामलों और मौत में ताजा वृद्धि के लिए निम्न कारकों को जिम्मेदार मानेगा-राज्यों के चुनावों का लंबा दौर, जहां हजारों लोग रैलियों और विशाल सभाओं में बिना मास्क के शामिल हुए, हरिद्वार के घाटों पर लाखों श्रद्धालुओं की गंगा में पवित्र डुबकी, जिसमें मास्क लगाने, सुरक्षित दूरी बनाकर रहने और सैनिटाइजिंग के नियमों की पूरी तरह से अवहेलना की गई; आईपीएल के मैच, जहां हजारों प्रशंसक बिना मास्क के पहुंचे; गैर-जिम्मेदार युवा, जो हफ्तों से बिना मास्क लगाए घूम रहे थे, पार्कों में बिना मास्क के प्रवेश पर प्रतिबंध नहीं, दुकानों में और दुकानदारों से सोशल डिस्टेंसिंग एवं मास्क लगाने के नियमों के अनुपालन में सरकार की विफलता, मास्क नहीं लगाने वालों को दंडित करने के प्रति ढुलमुल रवैया, महामारी को संभालने के लिए भारत के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र और टीके की विनिर्माण क्षमता को बढ़ा-चढ़ाकर आंकना और और एक अरब से अधिक लोगों के टीकाकरण की जरूरतों और आवश्यकताओं के कम करके आंकना।
एक ऐसे देश के रूप में, जिसने सदियों से वसुधैव कुटुम्बकम की नेक अवधारणा की वकालत की है, दूसरों की मदद करना स्वाभाविक है। इसलिए दूसरे देशों की वैक्सीन देकर मदद करने में कुछ भी गलत नहीं था। लेकिन दान की शुरुआत घर से होनी चाहिए। सबसे पहले भारत का लक्ष्य रखा जाना चाहिए! भारत में उपलब्ध वैक्सीनों पर विदेशी मित्रों से पहले भारतीय नागरिकों का अधिकार है। हमें अमेरिका से सीखना चाहिए, जहां के नीति-निर्माओं के लिए राष्ट्रहित सर्वोच्च प्राथमिकता में है। संकट के क्षणों में सिख समुदाय हमेशा खुले दिल से लोगों की मदद के लिए आगे आता है। जब सैकड़ों लोगों को अस्पतालों ने ऑक्सीजन खत्म होने की बात कह दी और वे अपने परिजनों के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर की खोज में भटकने लगे, तो एक गुरुद्वारे ने ऑक्सीजन लंगर की शुरुआत की, ताकि जरूरतमंदों को ऑक्सीजन मिल सके। आपातकाल में भारत अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करता है। उम्मीद है, एक राष्ट्र के रूप में एकजुट होकर हम इस घातक वायरस से निजात पाएंगे।
सौजन्य - अमर उजाला।
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