रबी की फसल के समस्यारहित विपणन के कारण अधिकांश फसलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर रिकॉर्ड खरीद हुई है और इसे सरकार और किसानों के बीच तीन कृषि सुधार कानूनों को लेकर बने गतिरोध से अलग करके नहीं देखा जा सकता। सबसे अधिक ध्यान देने वाली बात यह है कि सर्वोच्च न्यायालय की ओर से नए कानूनों पर फिलहाल रोक लगाए जाने के बावजूद कुछ अहम सुधारवादी कदमों का सफलतापूर्वक क्रियान्वयन किया जा सका। बिचौलियों (आढ़तियों) को किनारे करना और प्रत्यक्ष नकदी स्थानांतरण के तहत किसानों को उपज का सीधा भुगतान करना इसके अहम उदाहरण हैं। केंद्र ने भूमि क्षेत्र में लंबे समय से लंबित कुछ सुधारों को लागू करने की दिशा में भी अनुकूल माहौल बनाया है। इसमें भू रिकॉर्ड में सुधार और जमीन पट्टे पर देने को कानूनी रूप प्रदान करना अहम है।
आश्चर्य नहीं कि पहले जहां किसानों ने इन उपायों का विरोध किया था, वहीं अब उन्होंने इन पर नरम रुख दिखाया है। किसान अपनी उपज का समय पर और पूरा भुगतान पाकर प्रसन्न हैं। पंजाब और हरियाणा में जहां उनकी ओर से आढ़तिये ही लेनदेन करते थे, वहां ऐसा शायद ही होता था। आढ़तिये अपना कमीशन काटने तथा अन्य समायोजन के बाद किसानों को पैसा देने में पूरा समय लेते थे। भुगतान व्यवस्था को लेकर किसानों की संतुष्टि और एमएसपी आधारित सरकारी खरीद व्यवस्था के जारी न रहने को लेकर भय कम होने को विश्लेषक दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे पांच महीने पुराने आंदोलन के कमजोर पडऩे से जोड़ रहे हैं। प्रदर्शन स्थलों पर लोगों की तादाद बहुत कम हो चुकी है। आश्चर्य नहीं कि राजनीतिक संबद्धता वाले किसान संगठन अब 26 मई को दिल्ली में एक बड़ा प्रदर्शन करना चाहते हैं।
सरकार ने एक नवाचारी अनाज खरीद पोर्टल की शुरुआत की जिसने उसे आढ़तियों का मुकाबला करने में सक्षम बनाया। आढ़तिये पारंपरिक रूप से किसानों की ओर से अनाज की खरीद बिक्री करते आए हैं। इससे किसानों को अपनी उपज सीधे अपनी पसंद की एजेंसी को बेचने और प्रत्यक्ष भुगतान हासिल करने की सुविधा मिली है। इस वर्ष इस पोर्टल का इस्तेमाल किसानों को सीधा भुगतान करने के लिए किया गया। परंतु इसके इस्तेमाल का विस्तार करके आढ़तियों को किसी भी समय कृषि व्यापार से पूरी तरह बाहर किया जा सकता है। दूसरी ओर, भूमि संबंधी सुधारों की जरूरत केंद्र सरकार के उस कार्यकारी आदेश से उपजी जिसमें किसानों से कहा गया कि वे इस बात का प्रमाण दें कि उनके पास उस जमीन पर खेती का अधिकार है जिसकी फसल वे सरकारी खरीद के लिए दे रहे हैं। फिलहाल छह महीने के लिए स्थगित इस मांग से पंजाब के अधिकांश किसानों को समस्या होना तय है क्योंकि वे मौखिक सौदेबाजी के जरिये जमीन खेती के लिए पट्टे पर देते हैं। ऐसे में राज्य सरकार को या तो जमीन के स्वामित्व का स्पष्ट उल्लेेख करना होगा या जमीन पट्टे पर लेने की व्यवस्था को कानूनी रूप देना होगा ताकि भूमि स्वामियों और बटाईदारों दोनों के हितों की रक्षा की जा सके।
ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार ने किसानों को यह संदेश दे दिया है कि प्रस्तावित सुधार उनके लाभ के लिए हैं। इसके साथ ही उसने नए कानूनों को निरस्त करने की मांग कर रहे प्रदर्शनकारियों को यह संदेश भी दिया है कि उसके पास सुधारों को लागू करने के अन्य रास्ते मौजूद हैं। ऐसे में बेहतर यही होगा कि साझा स्वीकार्यता वाला रास्ता निकाला जाए ताकि मौजूदा गतिरोध समाप्त हो सके। सरकार को एक कदम आगे बढ़ाकर नाराज किसानों का भरोसा हासिल करने की कोशिश करनी चाहिए।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
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