अजय शाह और अमृता अग्रवाल
कोविड महामारी पर काबू पाने में टीके ही निर्णायक भूमिका निभाएंगे। इस टीकाकरण से जुड़ी चुनौतियों का जायजा ले रहे हैं अजय शाह और अमृता अग्रवाल
महामारी हमारी जिंदगी, समाज एवं अर्थव्यवस्था पर गहरा असर डाल रही है। हालात सामान्य करने का इकलौता तरीका टीकाकरण है। मौजूदा समय में टीकों की घरेलू एवं वैश्विक आपूर्ति की स्थिति ठीक नहीं है लेकिन वर्ष 2022 तक इसमें तेजी आ जाएगी। भारतीय टीका नीति में हाल में किए गए उदार बदलावों का नतीजा आने में कुछ महीने लगेंगे। भारतीय खरीदारों को टीका आपूर्तिकर्ताओं को प्रीमियम भाव पर दीर्घकालिक अनुबंध करना चाहिए। सरकारों को निजी कंपनियों पर दबाव नहीं डालना चाहिए। सरकारों को जोखिम वाले कार्यों में लगे लोगों और गरीबों के लिए टीकाकरण सेवा मुहैया कराने और वाउचर कार्यक्रम चलाने में प्राथमिकता तय करनी चाहिए। सरकारी संगठनों एवं निजी फर्मों के भीतर सांगठनिक क्षमता के विकास पर खास ध्यान दिया जाना चाहिए।
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, भारत में इस समय हर दिन करीब 4 लाख नए मामले सामने आ रहे हैं जबकि करीब 4,000 लोगों की इस महामारी से मौत हो रही है। देश की पहले से ही कमजोर स्वास्थ्य देखभाल व्यवस्था चरमरा गई है जिससे वे लोग भी मर रहे हैं जो बचाए जा सकते थे। हरेक शख्स के दिमाग में इन दिनों सिर्फ महामारी एवं लॉकडाउन ही छाया हुआ है जिससे सृजन, निवेश एवं प्रगति के पथ पर आगे बढऩे की क्षमता प्रभावित हो रही है। यह एक ऐसी विपदा की तरह है जिसका कोई अंत नहीं नजर आ रहा। महामारी पर काबू पाने की जंग भौतिक दूरी रखने, मास्क पहननेे एवं ऑक्सीजन की आपूर्ति तक सीमित हो चुकी है। लेकिन यह जंग जीतने यानी सामान्य स्थिति बहाल करने का काम सिर्फ टीकों के जरिये ही किया जा सकता है।
अभी तक देश भर में करीब 15 करोड़ टीके लगाए जा चुके हैं। करीब 9.2 फीसदी आबादी को कोविड टीके की पहली खुराक लगी है जबकि 1.9 फीसदी आबादी को दोनों खुराकें लगाई जा चुकी हैं। रोज करीब 30 लाख टीके लगाए जा रहे हैं लेकिन इसे तीन से चार गुना बढ़ाने की जरूरत है। सवाल है कि टीकाकरण दर में यह वृद्धि किस तरह हासिल की जा सकती है? फिलहाल तो टीका की आपूर्ति बाधित है। हर माह घरेलू टीका उत्पादन 7-8 करोड़ खुराक का है जो जरूरतों के लिहाज से पर्याप्त नहीं है। वैश्विक उत्पादन भी सीमित है लेकिन आने वाले महीनों में उसमें तेजी आएगी। गत 23 अप्रैल को जारी सरकारी आदेश में कई बंदिशें हटा ली गईं। अब राज्य सरकारों और निजी स्तर पर भी टीका खरीदा जा सकता है और विदेशों से आयात भी किया जा सकता है। इन बदलावों के बाद भारत की राज्य सरकारें, निजी फर्में, समुदाय एवं व्यक्तिगत स्तर पर भी टीके खरीदे जा सकेंगे और वैश्विक आपूर्ति तक उनकी पहुंच बेहतर होगी।
भारतीय खरीदारों को वैश्विक टीका बाजार का जायजा लेने की जरूरत है ताकि वे बाजार दर पर कीमत चुकाकर टीका खरीद सकें। उदाहरण के तौर पर, इजरायल की सरकार ने वर्ष 2020 के अंत में फाइजर और मॉडर्ना कंपनियों के टीके 28 डॉलर प्रति खुराक के भाव से खरीदा था जो अमेरिका एवं यूरोपीय संघ को बेचे गए भाव से 43 फीसदी ज्यादा था। बहरहाल ऊंची दर पर की गई खरीदारी की वजह से इजरायल को टीकों की खेप जल्दी मिल गई। आज के समय में वहां की बड़ी आबादी को टीका लग चुका है और अब सरकार लोगों को मास्क पहनने के लिए जोर भी नहीं देती है।
अगर भारत में एक अरब खुराकें लगाने के लिए 2 लाख करोड़ रुपये (2,000 रुपये प्रति खुराक की दर से) का इंतजाम सरकार एवं निजी क्षेत्र मिलकर कर लेते हैं तो इसके जबरदस्त असर होंंगे। कोविड महामारी की आर्थिक एवं मानवीय लागत पर काबू पाने के लिए यह कीमत चुकाना माकूल होगा। जॉनसन ऐंड जॉनसन और स्पूतनिक कंपनियों के बनाए टीके दुनिया में 10 डॉलर प्रति खुराक की दर से बेचे जा रहे हैं। भारतीय खरीदारों को बड़ी संख्या में त्वरित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए 15 डॉलर प्रति खुराक की दर से भुगतान को तैयार रहना चाहिए। अधिक कीमत चुकाने से घरेलू एवं वैश्विक टीका आपूर्तिकर्ताओं की क्षमता भी बढ़ेगी और वे जल्द से जल्द उत्पादन में भी तेजी लाना चाहेंगे।
भारतीय टीका खरीदारों को वयस्क आबादी के टीकाकरण की समस्या को 1बी खुराक पाने की समस्या से कहीं अधिक रणनीतिक नजरिये से देखना चाहिए। महामारी के लिए जिम्मेदार कोरोनावायरस का रूप बदलने के साथ ही आगे चलकर नई किस्मों की रोकथाम के लिए बूस्टर खुराकों की भी जरूरत पड़ेगी। यह काम एमआरएनए टीकों के इस्तेमाल से खासकर पूरा किया जा सकता है। कोविड प्रबंधन में हर व्यक्ति को साल भर में एक बूस्टर खुराक देने का नियम बनाया जा सकता है। भारतीय खरीदारों को इस परिस्थिति के लिए भी अपनी तैयारी रखनी होगी। इजरायल एवं यूरोपीय देशों में फाइजर एवं मॉडर्ना कंपनियों के साथ दीर्घावधि अनुबंध किए गए हैं ताकि यह मकसद पूरा हो सके। भारतीय खरीदारों को यह मांग रखने की जरूरत है कि वैश्विक टीका निर्माता भारत में सक्रिय वायरस किस्मों पर नजर रखें और उसके हिसाब से बूस्टर खुराक तैयार करें।
टीका एकल उत्पादन में इसकी आशंका होती है कि वायरस की कोई किस्म अपना वजूद बचा ले। जब टीका खरीद का काम कई निजी व्यक्तियों एवं उप-राष्ट्रीय सरकारें करती हैं तो टीका एकल उत्पादन से बचा जा सकता है। इस आशंका को दूर करने के लिए केंद्र सरकार को पांच अलग विनिर्माताओं से अपनी जरूरत का टीका खरीदना होगा। देश के भीतर या बाहर के टीका विनिर्माताओं के साथ भारतीय राज्य का संपर्क कीमत, मात्रा एवं अनुबंध की भाषा तक सीमित होना चाहिए। निजी व्यक्तियों से खास तरह के आचरण की अपेक्षा बलपूर्वक पूरा करने के लिए राज्य की शक्ति का इस्तेमाल टीकों की कीमत बढ़ाने के साथ मात्रा में भी कमी लेकर आएगा।
कई लोग सस्ते दाम वाले टीके लेना पसंद करेंगे। लेकिन इसके लिए राज्य की बाध्यकारी शक्ति का इस्तेमाल करने या कीमत नियंत्रण व्यवस्था लागू करने की कोशिश का नतीजा होगा कि उपलब्ध टीका खुराकों की मात्रा कम हो जाएगी। कीमत को लेकर लगाई बंदिशें घरेलू विनिर्माताओं, कारोबारियों एवं प्रदाताओं को आपूर्ति, शीत-भंडारण एवं आम लोगों तक पहुंचाने की सांगठनिक क्षमता पैदा करने से रोकेगा। ऊंची कीमत होने से निजी फर्में कच्चे माल, शीत-भंडारण और सभी तबकों तक टीका पहुंचाने से जुड़ी समस्याएं हल करने के तरीके तलाश पाएंगे।
भले ही आज टीका मूल्य पाबंदियां नहीं लगी हैं लेकिन भविष्य में ऐसी बंदिश लगने की आशंका भी नुकसानदेह है। ऐसा होने से निजी क्षेत्र भारतीय आबादी के लिए मददगार सांगठनिक ढांचा खड़ा करने के लिए समय, पैसा एवं प्रयास करने से परहेज करने लगेगा। भविष्य में राज्य की शक्ति के उपयोग को लेकर अत्यधिक अनिश्चितता होने पर निजी क्षेत्र रक्षात्मक मुद्रा में आ जाएगा और संक्षिप्त अवधि में लाभ देने वाले काम करना ही पसंद करेगा और दीर्घकालिक सांगठनिक क्षमता निर्माण के मुश्किल काम से भी परहेज करेगा।
सार्वजनिक स्वास्थ्य को सुनिश्चित करना ही हमारा मकसद है और संक्रमण फैलाने वाले सुपर-स्पेडर, जोखिम वाली आबादी एवं गरीबों को ध्यान में रखते हुए हमें टीका खरीद के बारे में कोई फैसला लेना होगा। टीका वाउचर जारी कर ये मकसद हासिल किए जा सकते हैं। टीका लगाने वाले ये वाउचर प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएम-जय), राज्य बीमा योजनाओं और कर्मचारी राज्य बीमा योजना के तहत लक्षित आबादी को मुहैया कराए जा सकते हैं। हालांकि दुनिया के इस हिस्से में सरकारी क्षेत्र और निजी क्षेत्र दोनों जगह नई संस्थागत क्षमताओं के निर्माण की भी जरूरत होगी। यह काम फौरन नहीं हो सकता है। सरकारी संगठनों के भीतर नीतिगत सोच विकसित करने और राज्य की क्षमता बढ़ाने के लिए व्यवस्थित प्रयास की जरूरत है। वहीं निजी संगठनों को अगर विश्वास है कि भविष्य में राज्य की बाध्यकारी शक्ति का उपयोग नहीं होगा तो वे संगठनों के निर्माण एवं जरूरी क्षमता हासिल करने की प्रतिबद्धता जताएंगे।
(शाह स्वतंत्र विश्लेषक हैं तथा अग्रवाल स्वास्थ्य प्रणाली की शोधकर्ता हैं)
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
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