जमीनी हकीकत (बिजनेस स्टैंडर्ड)

दिल्ली से लगी राज्यों की सीमाओं पर किसान आंदोलन के चलते रबी सत्र के खाद्यान्न विपणन एवं खरीद प्रक्रिया के सुचारु रूप से चल पाने को लेकर यदि कुछ आशंकाएं थीं तो अब वे शांत हो चुकी हैं। बल्कि इस वर्ष तो न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर गेहूं की सरकारी खरीद की प्रक्रिया असाधारण रूप से तेज रही है। पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में अब तक आधिकारिक एजेंसियों ने 70 फीसदी अधिक खरीद की है। आसार तो यही हैं कि चालू रबी विपणन सत्र में सरकार एमएसपी व्यवस्था के तहत सर्वाधिक खाद्यान्न की खरीद कर सकती है। साफ जाहिर है कि तीन नए विवादित कृषि कानूनों के जरिये लागू कृषि विपणन सुधारों पर सरकार और किसान नेताओं के परस्पर विरोधी रुख ने किसानों द्वारा उपज की बिक्री को प्रभावित नहीं किया है। बल्कि इसने सरकार को यह अवसर दिया है कि वह राजनीति से प्रेरित किसान संघों के बजाय विपणन सुधारों पर किसानों की प्रत्यक्ष प्रतिक्रिया का आकलन कर सके। 

मौजूदा गेहूं खरीद योजना से एक अहम जानकारी यह भी निकलती है कि पंजाब और हरियाणा के किसानों ने आपातकाल में बतौर साहूकार उनकी मदद करने वाले आढ़तियों का समर्थन किया, वहीं उन्हें सीधे अपने बैंक खाते में पैसा पाने से भी इनकार नहीं था। उन्हें सामान्य मंडियों से बाहर बनाए गए अनाज खरीद केंद्रों पर अपनी उपज बेचने से भी कोई गुरेज नहीं है, बशर्ते कि उन्हें इसकी अच्छी कीमत मिले। किसान संगठन मंडी से बाहर उपज बिक्री का कड़ा विरोध कर रहे हैं। पंजाब और हरियाणा को छोड़ दिया जाए तो कई राज्यों में आढ़तिया प्रणाली पहले ही समाप्त की जा चुकी है। केंद्र सरकार अन्य राज्यों के साथ भी ऐसा करने के लिए प्रतिबद्ध नजर आ रही है। किसानों के खाते में प्रत्यक्ष भुगतान को इस दिशा में पहला कदम माना जा रहा है।

 

ऐसा प्रतीत होता है कि केंद्र सरकार ने इस वर्ष के अस्वाभाविक हालात का इस्तेमाल लंबे समय से लंबित एक अन्य कृषि सुधार के अवसर के रूप में किया और वह है जमीन को पट्टे (लीज) पर देने को वैध बनाना। इसके लिए अनाज खरीद के साथ यह सबूत पेश करने की शर्त जोड़ी गई कि उत्पादक के पास बतौर मालिक या पट्टेदार खेती की जमीन का अधिकार हो। यह कदम इसलिए उठाया गया ताकि दूरदराज इलाकों से सस्ती दर पर अनाज खरीदकर उसे खरीद एजेंसियों को एमएसपी पर बेचने के गलत व्यवहार पर अंकुश लगाया जा सके। परंतु चूंकि इससे बड़ी तादाद में मौजूद ऐसे किसान भी प्रभावित होंगे जो जमीन पट्टे पर लेकर खेती करते हैं, इसलिए राज्य सरकारों को खेत को पट्टे पर लेने को वैधानिक बनाने के लिए वैधानिक संरक्षण प्रदान करना होगा। केंद्र सरकार ने पहले ही जमीन की पट्टेदारी को लेकर एक विधेयक प्रसारित किया है जो भूस्वामियों और पट्टे पर खेती करने वाले दोनों के हितों का बचाव करता है। इस लंबित सुधार को लागू करने से पट्टेदार किसानों को भी विभिन्न किसान कल्याण योजनाओं का लाभ मिलेगा जो अब तक नहीं मिल पा रहा था।

 

इसके अलावा विरोध प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों के नेताओं के साथ कई दौर की वार्ता तथा खाद्यान्न बाजारों में वास्तविक किसानों से बातचीत से हासिल होने वाले अनुभव सरकार की मदद करेंगे और वह किसान आंदोलन से निपटने की नीति बना सकेगी। इसका एक तरीका यह हो सकता है कि किसानों की बड़ी तादाद को समझाया जाए कि सुधार उनके पक्ष में हैं और वे उनके हितों को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे। सरकार जहां सरकारी खरीद का कार्यक्रम जारी रखेगी, वहीं इस क्षेत्र में खुलापन लाने से किसानों की पहुंच अधिक संगठित खरीदारों तक होगी। फसल का भुगतान भी प्रत्यक्ष और पारदर्शी तरीके से किया जाएगा। 

सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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