27 मार्च से शुरू होकर 29 अप्रैल तक के ल बे अंतराल में स पन्न 4 राज्यों तमिलनाडु, असम, केरल, पश्चिम बंगाल और केंद्र शासित राज्य पुड्डïुचेरी के विधानसभा चुनावों में सब की नजरें पश्चिम बंगाल पर ही केंद्रित रहीं। जहां बंगाल में सत्ता की हैट्रिक लगाने के लिए ममता बनर्जी ने पूरा जोर लगाया वहीं राज्य में पहली बार कमल खिलाने के लिए भाजपा नेताओं ने दर्जनों रैलियां कीं।
इन चुनावों में जहां तीन राज्यों बंगाल, केरल और असम में सत्तारूढ़ दलों ने सत्ता पर कब्जा बनाए रखा वहीं तमिलनाडु में सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक को सत्ताच्युत करके 10 वर्ष के वनवास के बाद द्रमुक सत्ता में वापसी करने जा रही है लेकिन इसके लिए एम.के.स्टालिन के नेतृत्व में द्रमुक को भारी मशक्कत करनी पड़ी।
जैसा कि कहा जा रहा था कि जयललिता की मृत्यु के बाद दोफाड़ हुई अन्नाद्रमुक समाप्त होने के कगार पर पहुंच गई है, परंतु मु यमंत्री पलानीस्वामी के नेतृत्व में पार्टी ने अच्छी चुनौती देकर सिद्ध कर दिया कि अन्नाद्रमुक की अभी भी राज्य के मतदाताओं तथा पार्टी वर्करों पर अच्छी पकड़ है। पुड्डचेरी में, जहां 22 फरवरी, 2021 को विश्वास मत पर मतदान से पहले मु यमंत्री नारायणसामी द्वारा इस्तीफा देने से कांग्रेस नीत सरकार गिर गई इस बार भाजपा गठबंधन ने पहली बार सरकार बनाने में सफलता प्राप्त कर ली है। ऐसा माना जा रहा है कि कांग्रेस ने सत्ता में लौटने के लिए न तो कोई खास रणनीति बनाई और न ही कोई खास मेहनत लगाई।
बंगाल में भाजपा ने काफी जोर लगाया और पार्टी नेताओं ने तृणमूल कांग्रेस के भ्रष्टïाचार का मुद्दा उठाया परंतु भाजपा नेतृत्व ममता बनर्जी के राज्य की जनता के साथ मजबूत स बन्धों को तोडऩे में विफल रहा। ऐसा माना जा रहा है कि महिला वोट और ममता द्वारा किए गए सामाजिक कार्यों ने राज्य की सत्ता पर कब्जा करने का भाजपा का सपना तोड़ डाला। असम में भाजपा ने अपनी सरकार पर कब्जा कायम रखा। हालांकि यहां कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन कर सकती थी परंतु वहां भी प्रचार के अभाव में पिछड़ गई।
केरल के अब तक के इतिहास के अनुसार यहां बदल-बदल कर ही सरकारें आती रही हैं परंतु पिछले 40 वर्षों में यह पहला मौका है जब यहां वामदलों की सरकार दूसरी बार सत्ता में लौटने में सफल हुई है। इसका कारण केरल सरकार द्वारा कोरोना से लडऩे के लिए कुशलतापूर्वक प्रबंधन करना माना जा रहा है। जहां तक कांग्रेस का संबंध है इन चुनावों के परिणामों ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया है कि इसके नेताओं ने अपनी अतीत की गलतियों से कुछ नहीं सीखा है। जहां केरल में कांग्रेस वामदलों का विरोध कर रही थी वहीं बंगाल में इसने वामदलों के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ा जिसका मतदाताओं में गलत संदेश गया।
राहुल गांधी द्वारा पश्चिम बंगाल में चुनाव प्रचार न करने का भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। बंगाल में वामदलों के साथ गठबंधन करने से दोनों दलों से नाराज मतदाताओं के वोट तृणमूल कांग्रेस को चले गए। इन चुनावों में तीन अन्य पहलू जो खुल कर सामने आए, वे हैं धु्रवीकरण, मतदान का ल बा अंतराल और चुनावों पर किया गया खर्च। यही नहीं मद्रास हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग को कोरोना से बचाव नियमों के पालन में विफल रहने के लिए दोषी ठहराया है।
दूसरी ओर ममता ने भी नंदीग्राम मे हारने का ठीकरा ई.वी.एम. पर फोड़ा। उसे देखते हुए भी यह चर्चा छिड़ गई है कि क्या हमें अधिक अधिकारों वाला चुनाव आयोग चाहिए या टी.एन.शेषण जैसा शक्तिशाली चुनाव आयुक्त! महान दार्शनिक अरस्तु ने लिखा था कि चुनावों को 3 प्रकार से प्रभावित किया जाता है। पहला अथारिटी अर्थात अपनी शक्ति से, दूसरा तर्क से और तीसरा मतदाताओं को भावनात्मक रूप से प्रभावित करने से। यही तीसरा पहलू सभी दलों के नेताओं ने अपनाया और विभाजनकारी राजनीति द्वारा मतदाताओं की भावनाओं से खेलने की भरपूर कोशिश की। जो भी हो, इन चुनावों में सबसे बड़ी बात यह है कि नंदीग्राम से तो ममता बनर्जी चंद वोटों से हार गई हैं।
वहीं पश्चिम बंगाल में चुनावों के दौरान शुरू हुई ङ्क्षहसा अभी तक खत्म नहीं हो पा रही। हल्दिया में शुभेन्दु अधिकारी के काफिले पर जमकर पत्थरबाजी हुई। बंगाल में आरामबाग में भाजपा कार्यालय को फूंक दिया गया। ममता को अब हिंसा पर नियंत्रण पाने के लिए जल्द ही स त कार्रवाई करनी होगी।
ममता की इस जीत पर विपक्ष के बड़े नेता जैसे शरद पवार, उद्धव ठाकरे, केजरीवाल, एम.के. स्टालिन, पिनरई विजयन तथा अन्य दिग्गजों ने भी उन्हें बधाई दी है। ममता को अब विपक्षी दल संयुक्त विपक्ष का नेता मान रहे हैं। भविष्य में क्या होगा यह कहना तो कठिन है लेकिन इस समय विपक्ष के लिए एक भारी उ मीद जरूर जागी है। वहीं ममता ने नंदीग्राम में हुई अपनी इस हार पर कहा है कि वह इस मामले में अदालत में जाएंगी। इसके साथ ही उनका यह भी कहना है कि,‘‘नंदीग्राम में जो हुआ उसे भूल जाओ, हम चुनाव जीते हैं।’’
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