सिटीबैंक भारत में उपभोक्ता कारोबार से क्यों बाहर? (बिजनेस स्टैंडर्ड)

तमाल बंद्योपाध्याय 

कई वर्ष पहले मैं बैंकिंग जगत की खबरें लाया करता था। उस दौरान भारत में सिटीबैंक एनए के तत्कालीन कारोबार प्रमुख सुजित बनर्जी ने भारत में कारोबार को लेकर मुझसे अपने बैंक की रणनीति का जिक्र किया था। बनर्जी ने कहा था कि सिटी बैंक कुछ ऊंचे वर्ग के ग्राहकों तक सीमित नहीं रह कर अपने साथ अधिक से अधिक उपभोक्ताओं को जोडऩा चाहता है। वे सिटी को बड़े शहरों के बाद छोटे शहरों तक ले जाना चाहते थे। 


अमेरिका के 'चार बड़े बैंकों' में एक सिटी बैंक 119 वर्षों से भारत में कारोबार कर रहा है। अब वह भारत में अपना उपभोक्ता कारोबार (कंज्यूमर बैंकिंग) समेट रहा है। अमेरिका के बाद राजस्व और मुनाफा के लिहाज से भारत सिटी के लिए शीर्ष पांच बाजारों में शामिल है। वह भारत में अपना उपभोक्ता बैंकिंग कारोबार-क्रेडिट कार्ड, आवास ऋण, व्यक्तिगत ऋण , जमा एवं परिसंपत्ति प्रबंधन कारोबार-बंद कर देगा। भारत में यह बैंक 35 शाखाओं और 525 एटीएम के जरिये परिचालन करता है। भारत उन 13 बाजारों में शामिल है जहां से सिटीबैंक निकलना चाहता है। अमेरिका, हॉन्ग कॉन्ग, सिंगापुर, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और ब्रिटेन में भी सिटीबैंक इस कारोबार में बना रहेगा। सिटीबैंक की नई मुख्य कार्याधिकारी जेन फ्रेजर ने एक रणनीतिक एवं बड़ा कारोबारी निर्णय लिया है। जहां तक भारत की बात है तो उनके इस निर्णय का यहां बैंक के प्रदर्शन से कोई संबंध नहीं दिखता है। दरअसल इस फैसले के पीछे अमेरिकी फेडरल रिजर्व और ऑफिस ऑफ द कंट्रोलर ऑफ करेंसी (ओसीसी) की नाराजगी संभवत: एक बड़ी वजह रही है। ओसीसी एक संघीय एजेंसी है जो राष्ट्रीय बैंकों से संबंधित कानूनों के क्रियान्वयन पर नजर रखती है। फेडरल रिजर्व और ओसीसी एंटरप्राइज-वाइड रिस्क मैनेजमेंट, अनुपालन जोखिम प्रबंधन, डेटा संचालन और आंतरिक नियंत्रण पर सिटीबैंक के रवैये से नाराज रहा है। अक्टूबर 2020 में ओसीसी ने जोखिम प्रबंधन प्रभावी ढंग से नहीं करने के लिए सिटीग्रुप पर 40 करोड़ डॉलर का जुर्माना भी लगाया था। बैंक को नए अधिग्रहणों के लिए पूर्व अनुमति लेने का फरमान सुना दिया गया। 


ओसीसी ने यह धमकी भी दे डाली कि अगर बैंक संचालन से जुड़ी खामियां दूर नहीं कर पाया तो वरिष्ठ प्रबंधन में वह बदलाव कर सकता है। दूसरी तरफ, फेडरल रिजर्व ने बैंक को एक चेतावनी पत्र जारी कर उसे कथित तौर पर नियामकीय दृष्टिï से अनुचित गतिविधियों से दूर रहने के लिए कहा। इसके अलावा निवेशक भी स्टॉक एक्सचेंजों पर सिटी के प्रदर्शन से खफा रहे हैं। बैंक का शेयर तथाकथित बुक वैल्यू से नीचे कारोबार करता रहा है और अपने प्रतिस्पद्र्धियों की तुलना में यह काफी फिसड्डी साबित हो रहा है। फ्रेजर ने मार्च में सिटीबैंक की कमान संभाली है। प्रश्न यह है कि उन्हें मुख्य रूप से सिटी के कॉर्पोरेट कारोबार पर या उपभोक्ता बैंकिंग पर ध्यान देना चाहिए? उपभोक्ता बैंकिंग अब एक वैश्विक कारोबार नहीं रह गया है। कॉर्पोरेट कारोबार में सिटी अधिक मजबूत स्थिति में दिखता है। उपभोक्ता बैंकिंग कारोबार प्रतिस्पद्र्धा और चुनौतियों से भरपूर है और इसमें वजूद बनाए रखने के लिए निरंतर निवेश करने और नई तकनीक आजमाने की जरूरत पड़ती है।


प्रतिस्पद्र्धा कितनी बड़ी भूमिका निभा सकता है इसका अंदाजा भारत में सिटीबैंक के क्रेडिट कार्ड कारोबार से लगाया जा सकता है। 2012 में 21 प्रतिशत बाजार हिस्सेदारी के  साथ सिटीबैंक भारत में क्रेडिट कार्ड जारी करने वाला दूसरा सबसे बड़ा बैंक था। क्रेडिट कार्ड खंड में इसके कार्ड पर व्यय पूरे क्रेडिट कार्ड कारोबार के औसत से दोगुना था। ई-कॉमर्स खंड में क्रेडिट कार्ड से होने वाली खरीदारी में इसकी हिस्सेदारी 30 प्रतिशत थी। वर्ष 2020 आते-आते क्रेडिट कार्ड खंड में इसकी हिस्सेदारी कम होकर करीब 6 प्रतिशत रह गई। इसके कार्ड से औसत व्यय क्रेडिट कार्ड खंड के औसत से अधिक रहने के बावजूद यह छठे स्थान पर आ गया। अगस्त 2020 में भारत में सिटीबैंक के 29 लाख खुदरा ग्राहक थे, जिनमें 12 लाख बैंक खाते और 22 लाख क्रेडिट कार्ड खाते थे। कई विश्लेषकों का मानना है कि सिटीबैंक को उपभोक्ता कारोबार बेचने से करीब 2.5 अरब डॉलर तक मिल सकते हैं। आखिर सिटी बैंक का उपभोक्ता कारोबार कौन खरीदेगा? कुछ बड़े निजी भारतीय बैंक जरूर सामने आएंगे। कुछ बड़े विदेशी बैंक भी इस सौदे पर विचार कर सकते हैं, खासकर वे भारतीय कारोबार या भारत सहित कुछ देशों में उपभोक्ता कारोबार खरीदने में दिलचस्पी दिखा सकते हैं। बड़ी देसी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी) भी इस होड़ में शामिल हो सकती हैं। 


अगर कोई भारत के निजी क्षेत्र का कोई बैंक इसे खरीदता है तो बिक्री की प्रक्रिया जल्द पूरी हो जाएगी लेकिन विदेशी बैंक या एनबीएफसी के साथ सौदा होता है तो मामला लंबा खिंच सकता है। विदेशी बैंक के मामले में विभिन्न देशों में नियामकीय अनुमति की जरूरत होगी, वहीं अगर कोई एनबीएफसी आगे आती है तो उसे सबसे पहले बैंकिंग लाइसेंस लेना होगा क्योंकि सिटी के उपभोक्ता कारोबार में खुदरा जमा रकम भी होगी। 


सिटीबैंक भारत में अपने कुल राजस्व का दो तिहाई हिस्सा संस्थागत कारोबार से अर्जित करता है। भारत में बहुराष्ट्रीय निगमों के कारोबार में सिटीबैंक की हिस्सेदारी 30 प्रतिशत है। सिटीकॉर्प इंडिया के चार केंद्र विभिन्न देशों में अमेरिका के इस बैंक के परिचालन में मदद करती है। इन चार केंद्रों के साथ कम से कम 19,000 कर्मचारी काम करते हैं। ये सभी कर्मचारी इसके साथ बने रहेंगे। अब नियामक और निवेशकों का गुस्सा झेलने के बाद फ्रेजर कारोबारी रणनीति बदल रही हैं और उपभोक्ता कारोबार से बाहर निकल रही हैं। दुनिया के 13 बाजारों में सिटी के प्रमुखों को इस काम को अंजाम देना होगा। सिटीबैंक के बहीखाते में कॉर्पोरेट बैंकिंग की हिस्सेदारी 60 प्रतिशत से कुछ अधिक है लेकिन मुनाफे में यह 75 प्रतिशत योगदान देता है। हां, खुदरा ग्राहकों के लिए सिटीबैंक नदारद रहेगा। 


(लेखक बिजनेस स्टैंडर्ड के सलाहकार संपादक, लेखक एवं जन स्मॉल फाइनैंस बैंक लिमिटेड में वरिष्ठï सलाहकार हैं।)



सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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