चालू वित्त वर्ष के लिए वृद्धि दर का अनुमान (बिजनेस स्टैंडर्ड)

शंकर आचार्य 

लगभग एक साल पहले मैंने अनुमान लगाया था कि वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में देश का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) सालाना आधार पर 25 प्रतिशत तक फिसल जाएगा। मैंने जब यह अनुमान व्यक्त किया था तो उस समय भारत में कोविड-19 को दस्तक दिए तीन महीने हो चुके थे और देशव्यापी लॉकडाउन लगे सात हफ्ते हो गए थे। मैंने पूरे वित्त वर्ष के लिए जीडीपी में 11-14 प्रतिशत की गिरावट आने का अंदेशा जताया था। ताज्जुब की बात यह थी कि उस समय भी सरकार, अंतरराष्ट्रीय संगठन जैसे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ), विश्व बैंक, अग्रणी निवेश बैंक और क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां वर्ष 2020-21 में जीडीपी वृद्धि दर सकारात्मक रहने की उम्मीद जता रहे थे। आखिर, 2020-21 की पहली तिमाही में जीडीपी 24 प्रतिशत फिसल गया। हालांकि लॉकडाउन हटने के बाद दूसरी और तीसरी तिमाही में अर्थव्यवस्था ने तेज रफ्तार पकड़ी और पूरे वित्त वर्ष के लिए जीडीपी वृद्धि दर में गिरावट 8 प्रतिशत तक सिमट कर रह गई। फिर भी, स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था में आई यह सबसे बड़ी गिरावट थी।


इस समय देश कोविड-19 महामारी की तथाकथित दूसरी लहर की चपेट में है। देश की अर्थव्यवस्था को नए वित्त वर्ष में प्रवेश किए छह हफ्ते बीत चुके हैं। आखिरकार, इन परिस्थितियों के बीच आर्थिक अनुमान के बारे में क्या कयास लगाए जा सकते हैं? इस समय भी चालू वित्त वर्ष में जीडीपी वृद्धि दर 9-12 प्रतिशत रहने की बात कही जा रही है। हालांकि पिछले वित्त वर्ष का न्यून आधार प्रभाव इसकी प्रमुख वजह रहेगी। फरवरी 2021 में बिज़नेस स्टैंडर्ड में प्रकाशित एक आलेख में भी मैंने लगभग इतनी ही यानी 10-12 प्रतिशत तेजी रहने का अनुमान जताया था। अब दो महीने बाद पुराने अनुमान यथार्थ कम और आशावादी अधिक प्रतीत हो रहे हैं। मार्च और अप्रैल के आधिकारिक आंकड़े त्रासदी के असर से हमें आगाह करा रहे हैं। इन दो महीनों में रोजाना संक्रमण और मौत के आंकड़े क्रमश: 4 लाख और 4,000 से अधिक रहे हैं। हालांकि कई विशेषज्ञों के अनुसार वास्तविक आंकड़े इनसे काफी अधिक हो सकते हैं। महामारी की गंभीरता से स्वास्थ्य ढांचा बुरी तरह चरमरा गया है और सुस्त टीकाकरण कार्यक्रम ने आग में घी डालने का काम किया है। बढ़ते संक्रमण के बीच देश के कई राज्यों में लॉकडाउन और कफ्र्यू लग रहे हैं, खासकर देश के आर्थिक रूप से सर्वाधिक उत्पादक राज्यों जैसे दिल्ली, महाराष्टï्र, कर्नाटक और तमिलनाडु में हालात सबसे अधिक बिगड़े हैं। 2020 में मार्च में देशव्यापी लॉकडाउन के असर को देखते हुए केंद्र सरकार राजनीतिक एवं स्वास्थ्य क्षेत्रों से आ रहे दबाव के बावजूद राष्ट्रीय लॉकडाउन लगाने से परहेज कर रही है।


तेजी से बढ़ती कोविड-19 महामारी और देश के विभिन्न राज्यों में लॉकडाउन का असर अप्रैल के आर्थिक आंकड़ों पर दिख चुका है। नए वाहनों का पंजीयन पिछले नौ महीनों के निचले स्तर पर आ गया है। खुदरा स्टोर एवं वर्कप्लेस से संबंधित गूगल आंकड़े भी तेज गिरावट का संकेत दे रहे हैं। बिजली उत्पादन और ईंधन की मांग भी कम हो गई है। जून 2020 से कुल रोजगार दर अब भी सबसे निचले स्तर पर है। सीएमआईई आंकड़ों के अनुसार अप्रैल में 70 लाख से अधिक लोग अपने रोजगार से हाथ धो चुके हैं। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम का लाभ उठाने वाले परिवारों की संख्या अप्रैल में एक वर्ष पहले की तुलना में करीब 80 प्रतिशत तक बढ़ गई। देश में आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों पर दबाव लगातार बढ़ रहा है। इससे पहले वे 2020 में पहले ही आर्थिक दंश झेल चुके हैं। 


महामारी की दूसरी लहर नियंत्रण से लगभग बाहर होने और विभिन्न राज्यों में लॉकडाउन और कफ्र्यू जारी रहने के बीच वित्त वर्ष 2021-22 के लिए आर्थिक वृद्धि दर के बारे में अनुमान लगाना काफी मुश्किल है। आर्थिक वृद्धि दर की दशा एवं दिशा आपूर्ति पाबंदियों, स्वास्थ्य एवं व्यावसायिक जोखिमों को लेकर आर्थिक जगत की धारणा, खपत, निवेश, शुद्ध सरकारी व्यय और शुद्ध निर्यात के आंकड़ों के आपसी संबंधों पर निर्भर करेगी। फिलहाल इन सभी को लेकर अनिश्चितता की स्थिति है। आर्थिक वृद्धि दर का कोई अनुमान व्यक्त करना जोखिम भरा है, लेकिन थोड़ी हिम्मत जुटाकर कुछ अंदाजा जरूर लगाया जा सकता है। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर 2020-21 की पहली तिमाही की तुलना में 15-20 प्रतिशत (सालाना आधार पर) अधिक रह सकती है। इससे पहले पहली तिमाही में 25-30 प्रतिशत तेजी आने का अनुमान व्यक्त किया गया था। मुझे लगता है कि पिछले वर्ष तीसरी एवं चौथी तिमाही की वृद्धि दर की तुलना में यह 5 से 10 प्रतिशत कम रहेगी। ऐसे में जब अगस्त के अंत में राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) पहली तिमाही के आंकड़े जारी करेगा तो सरकार और इसके बाहर कई लोग खुश हो सकते हैं। हालांकि 2020-21 की अंतिम तिमाही में दर्ज आर्थिक गतिविधियों की तुलना में यह एक बड़ी गिरावट की ओर इशारा करेगा। इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि 2021-22 की पहली तिमाही में जीडीपी वित्त वर्ष 2019-20 की तुलना में काफी कम रह सकती है।


महामारी की दशा-दिशा, टीकाकरण कार्यक्रम से जुड़ी अनिश्चितताएं, वायरस के नए स्वरूप के आने की आशंका, सभी स्तर पर सरकार की नीतिगत पहल और वैश्विक राजनीतिक एवं आर्थिक घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2021-22 के लिए अनुमान लगाना काफी जोखिम भरा है। हालांकि इन सब बातों के बीच अगर 2021-22 में आर्थिक वृद्धि दर 6-8 प्रतिशत से अधिक रही तो यह मेरे लिए आश्चर्य की बात होगी। 


सर्वाधिक तेजी से उभरने वाली अर्थव्यवस्था जैसी सुर्खियां एक बार फिर इस्तेमाल में आ सकती हैं, लेकिन इन आंकड़ों से परिलक्षित होने वाली वास्तविकताओं से किसी को अनभिज्ञ नहीं रहना चाहिए। इसका मतलब होगा कि 2021-22 में वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर 2019-20 में दर्ज आंकड़ों से कम ही रहेगी। इतना ही नहीं, महामारी से पूर्व उत्पादन एवं वृद्धि की तुलना में भारत कम से कम 10-12 प्रतिशत अभिवृद्धि से हमेशा के लिए हाथ धो चुका होगा। चूंकि, महामारी और लॉकडाउन से समाज और अर्थव्यवस्था पर गहरा असर होगा इसलिए मध्यम अवधि में भारत की संभावित वृद्धि दर्ज करने की क्षमता महामारी से पूर्व के वर्षों में दर्ज आंकड़ों से निश्चित तौर पर कम होगी। अब प्रश्न है कि ऊपर जताए अनुमान से बेहतर परिणाम दर्ज करने के लिए किस तरह की नीति की आवश्यकता होगी? 


सबसे पहले तो कोविड-19 से बचाव के लिए टीकाकरण अभियान तेज करना होगा। यह दुख की बात है कि टीका उत्पादन, इनका वितरण और इन्हें लगाने की रफ्तार तेजी से आगे नहीं बढ़ पाई है। अगर टीकाकरण अभियान तेजी से चल रहा होता तो दूसरी लहर कमजोर रहती और देश को इतनी बड़ी त्रासदी का सामना नहीं करना पड़ता। ऐसे में टीकाकरण कार्यक्रम तेजी से आगे बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है। स्वास्थ्य, लोगों के जीवन, उनकी आजीविका और समग्र आर्थिक गतिविधियों पर इसका काफी सकारात्मक असर हो सकता है। पिछले वर्ष राजकोषीय घाटा की चिंता किए बिना और नकदी डालने में सरकार ने कोताही नहीं की थी लेकिन इस बार इस मोर्चे पर काफी कम गुंजाइश दिख रही है और सरकार अगर हाथ खोलती है तो वित्तीय स्थायित्व, कर्ज चुकाने की क्षमता और ऊंची महंगाई दर के मोर्चे पर गंभीर चुनौतियां पैदा हो सकती हैं।


(लेखक इक्रियर के मानद प्राध्यापक हैं और भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार रह चुके हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)


सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।

Share on Google Plus

About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

This is a short description in the author block about the author. You edit it by entering text in the "Biographical Info" field in the user admin panel.
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments:

Post a Comment