तमाल बंद्योपाध्याय
देश में पहले पेमेंट बैंक की शुरुआत के चार वर्ष बाद बैंकिंग नियामक ने ऐसे बैंक में रखी जा सकने वाली अधिकतम जमा राशि की सीमा बढ़ाकर 2 लाख रुपये कर दी। ऐसा 'वित्तीय समावेशन बढ़ाने और ग्राहकों की बढ़ती आवश्यकता पूरी करने में पेमेंट बैंकों की मदद करने' के उद्देश्य से किया गया है। जमा क्षमता बढ़ाने से इन बैंकों को क्या लाभ होगा?
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने अगस्त 2015 में 41 आवेदकों में से ऐसे 11 बैंकों को सशर्त लाइसेंस दिया था। इनमें कुछ कॉर्पोरेट घराने शामिल थे। इनमें से तीन पीछे हट गए और आठ ही होड़ में रह गए। बाद में दो का विलय हो गया और एक ने काम बंद करने का निर्णय लिया। यानी छह ऐेसे बैंक रह गए।
सबसे पहले शुरू हुए एयरटेल पेमेंट बैंक को वित्त वर्ष 2020 में 464.5 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ जबकि उससे पिछले वर्ष उसका नुकसान 228.98 करोड़ रुपये था। इंडिया पोस्ट पेमेंट बैंक की शुरुआत जनवरी 2017 में रांची और रायपुर से प्रायोगिक तौर पर की गई थी। सन 2020 में उसे 334 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। उससे पिछले वर्ष उसका नुकसान 165 करोड़ रुपये था। जियो पेमेंट बैंक की शुरुआत अप्रैल 2018 में रिलायंस इंडस्ट्रीज और भारतीय स्टेट बैंक के बीच 70: 30 की भागीदारी में हुआ। वित्त वर्ष 2019 में उसे 1.1 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ (मेरे पास 2020 के आंकड़े नहीं हैं)। अक्टूबर 2018 में आरंभ हुए एनएसडीएल पेमेंट बैंक को 2020 में 14.28 करोड़ का घाटा हुआ जबकि उसकी सकल आय 6.29 करोड़ रुपये रही।
पेटीएम पेमेंट बैंक ने 2019 में 19.2 करोड़ रुपये और 2020 में 29.8 करोड़ रुपये का लाभ कमाया। जुलाई 2017 में कारोबार शुरू करने वाला फिनो पेमेंट बैंक 2020 की चौथी तिमाही में मुनाफे में आया। यह सही है कि इन बैंकों की ब्याज और गैर ब्याज दोनों तरह की आय बढ़ रही है लेकिन परिचालन लागत के कारण वित्त वर्ष 2020 में इनका अंत घाटे में हुआ। आरबीआई के एक प्रकाशन के मुताबिक सीमित परिचालन जगह और बुनियादी ढांचे की स्थापना में ज्यादा लागत के कारण इन्हें शुरुआत में दिक्कत आ रही है।
उनके अस्तित्व और सफलता के लिए यह आवश्यक है कि तकनीक में निवेश किया जाए। भुगतान और धन प्रेषण वॉल्यूम आधारित, कम मार्जिन वाले कारोबार हैं। जमा लेने के अलावा वे वित्तीय उत्पाद बेच सकते हैं लेकिन ऋण नहीं दे सकते। वे क्रेडिट कार्ड भी नहीं जारी कर सकते लेकिन डेबिट कार्ड और इंटरनेट बैंकिंग सेवा दे सकते हैं। छोटे वित्तीय बैंक छोटे पैमाने पर ही सही लेकिन एक आम बैंक की तरह हर काम कर सकते हैं लेकिन पेमेंट बैंकों को यह सुविधा नहीं है। उनकी जमा करने की सीमा तय है लेकिन वे अन्य बैंकों से साझेदारी करके उनके लिए जमा ले सकते हैं। वे कर्ज नहीं दे सकते लेकिन म्युचुअल फंड और बीमा समेत निवेश योजनाएं बेच सकते हैं। बिल भुगतान, धन प्रेषण, नकदी प्रबंधन, मोबाइल रीचार्ज आदि उनके कारोबार का तीन चौथाई हिस्सा हैं।
धनप्रेषण और नकद निकासी पर प्राय: ऐसे बैंकों को प्रति 100 रुपये पर 50 पैसे शुल्क मिलता है। इसमें से 35 पैसे नकदी प्रबंधन कारोबार करने वाले नेटवर्क से साझा करने पड़ते हैं। बैंक के पास लागत व्यय और मुनाफे के लिए केवल 15 पैसे बचते हैं।
कुछ अन्य बातें हैं। वे ऋण नहीं दे सकते लेकिन उन्हें 15 फीसदी पूंजी पर्याप्तता अनुपात बनाए रखना होता है। ऐसा इसलिए ताकि बैंक के दिवालिया होने पर जमाकर्ताओं का बचाव हो सके। चूंकि ये बैंक ऋण नहीं देते इसलिए इस मामले में नियामक ने शायद परिचालन जोखिम से बचाव को देखते हुए ऐसा किया हो।
वाणिज्यिक बैंकों और पूर्ण भुगतान सेवाओं के बीच पेमेंट बैंकों को समान अवसर नहीं मिलते। वे ग्राहकों (ज्यादातर छोटे कारोबारी) को भुगतान, हर तरह के लेनदेन और नकदी प्रबंधन की सुविधा देते हैं। इसके लिए ग्राहकों को बैंक में चालू खाता रखना होता है। परंतु नियमों के मुताबिक इनमें दो लाख रुपये से अधिक राशि नहीं रखी जा सकती। चालू खाते अथवा बचत खाते की यही सीमा है। इससे निपटने का एक तरीका दूसरे बैंक से साझेदारी करके अतिरिक्त नकदी स्थानांतरित करने का है लेकिन इसमें परिचालन की चुनौतियां सामने आती हैं।
वाणिज्यिक बैंक पेमेंट बैंक के सारे काम करता है। साथ ही वह ऋण देता है और ब्याज कमाता है। जबकि भुगतान सेवा प्रदाता लेनदेन शुल्क को तवज्जो नहीं देते क्योंकि वे ग्राहकों के आंकड़े कई जगह इस्तेमाल कर सकते हैं। शून्य एमडीआर व्यवस्था भी पेमेंट बैंकों की चिंता का कारण है। एमडीआर यानी मर्चेंट डिस्काउंट रेट वह शुल्क है जो बैंक कारोबारियोंं से भुगतान निस्तारण ढांचे या प्वाइंट ऑफ सेल मशीनों के लिए वसूलते हैं। दिसंबर 2019 से रुपे कार्ड और यूनीफाइड पेमेंट इंटरफेस (यूपीआई) लेनदेन पर भी एमडीआर लगा दिया गया। ये दोनों वित्तीय लेनदेन के प्रमुख मंच हैं।
ऐसे में एक हाइब्रिड मॉडल मददगार हो सकता है। ऐसा हो भी रहा है। कुछ बैंक देश भर में किराना दुकान, पेट्रोल पंप, फोटोकॉपी, सलून और मंडी आदि समेत हर चीज की जियो मैपिंग कर रहे हैं। आरबीआई को भी इनकी जमा सीमा बढ़ाकर 5 लाख रुपये तक करनी होगी। चूंकि उन्हें तीन चौथाई जमा को सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करना होता है इसलिए ऐसा होने के बाद बॉन्ड के खरीदार बढ़ जाएंगे। वे दो लाख रुपये तक के जमा के लिए बीमा शुल्क दे रहे हैं लेकिन शुल्क ढांचा वही है जो वाणिज्यिक बैंक 5 लाख रुपये के लिए रखते हैं।
चूंकि पेमेंट बैंक ऋण नहीं दे रहे इसलिए वे जोखिम रहित कारोबार करते हैं। इसके बावजूद यदि नियामक जमा सीमा बढ़ाना नहीं चाहते तो बचत खातों के लिए 2 लाख रुपये और चालू खाते के लिए 5 लाख रुपये की सीमा तय की जा सकती है। इससे उन्हें कारोबारियों और छोटे और मझोले उपक्रमों की दिक्कत दूर करने में मदद मिलेगी। यह सबके लिए बेहतर होगा।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
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