सरकार का वाणिज्यिक वस्तु निर्यात अप्रैल महीने में सालाना आधार पर करीब 200 फीसदी बढ़कर 30.21 अरब डॉलर जा पहुंचा। इस उछाल की बड़ी वजह जहां गत वर्ष आधार का कम होना है, वहीं निर्यात को वैश्विक मंाग में सुधार का भी लाभ मिल रहा है। अप्रैल 2019 से तुलना की जाए तो निर्यात में करीब 16 फीसदी का इजाफा हुआ। प्रारंभिक आंकड़ों के अनुसार यह रुझान मई में भी बरकरार रहा। इसमें पेट्रोलियम उत्पादों, इंजीनियरिंग वस्तुओं और रत्न एवं आभूषण क्षेत्र की भूमिका प्रमुख रही। कृषि निर्यात में भी भारी इजाफा हुआ। गत वर्ष जहां भारत ने रिकॉर्ड चावल का निर्यात किया, वहीं गेहूं निर्यात भी कई वर्षों के उच्चतम स्तर पर रहा। कृषि निर्यात के मजबूत बने रहने की आशा है क्योंकि वैश्विक स्तर पर खाद्य कीमतों में तेजी जारी रहेगी। एफएओ खाद्य मूल्य सूचकांक का कई वर्ष का उच्चतम स्तर भी यही संकेत देता है।
हालिया तेजी से उत्साहित केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा है कि भारत इस वर्ष 400 अरब डॉलर के वस्तु निर्यात का लक्ष्य हासिल कर सकता है। घरेलू मांग कोविड-19 संबंधी लॉकडाउन के कारण कमजोर है और ऐसे में निर्यात में वृद्धि अर्थव्यवस्था के लिए बेहतर है। निर्यात परिदृश्य इसलिए भी बेहतर हुआ क्योंकि दुनिया के कई विकसित देशों की अर्थव्यवस्था खासकर अमेरिका में हालात तेजी से बेहतर हुए हैं। सन 2020 में आर्थिक गतिविधियों में तेजी से गिरावट आई थी क्योंकि महामारी ने असर डाला था लेकिन इस वर्ष कंपनियां मांग पूरी करने के लिए काम कर रही हैं। ज्यादा तादाद में लोगों का टीकाकरण होने के कारण मांग में और सुधार का अनुमान है। मांग में तेजी कीमतों पर भी दबाव बना रही है। निर्यातकों को उत्पाद का बेहतर मूल्य मिल रहा है। उदाहरण के लिए वैश्विक इस्पात कीमतें मार्च में 830 डॉलर प्रति टन थीं जो गत 12 वर्ष का अधिकतम स्तर था। इससे भारतीय इस्पात निर्यातकों को काफी लाभ हुआ। वैश्विक मांग में सुधार का पूरा फायदा उठाने के लिए सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि निर्यात से जुड़े क्षेत्र और कंपनियां प्रभावित न हों।
निकट भविष्य में निर्यात का परिदृश्य उत्साहवर्धक लग रहा है लेकिन यह बात ध्यान देने लायक है कि शायद इससे भारत का वस्तु निर्यात संबंधी परिदृश्य अधिक न बदले। निर्यात बीते कई वर्षों से स्थिर रहा है। सन 2019-20 मेंं निर्यात का स्तर कमोबेश 2014-15 जैसा ही था। ऐसे में यह संभव है कि निर्यात वृद्धि मध्यम अवधि में वैश्विक मांग के स्थिर होने पर बरकरार न रहे। बीते वर्षों में भारत निर्यात प्रतिस्पर्धा में अन्य समकक्ष देशों से कमजोर नजर आया है। ताजा आर्थिक समीक्षा के अनुसार देश का निर्यात 2011 और 2019 के बीच सालाना 0.9 फीसदी की समेकित वृद्धि दर से बढ़ा। यदि बांग्लादेश से तुलना करें तो वहां यह वृद्धि 8.6 फीसदी थी। ध्यान रहे कि व्यापक औद्योगिक आधार के बावजूद भारत का प्रदर्शन खराब रहा।
इसकी वजह एकदम स्पष्ट है। भारत अपने व्यापक श्रमिक आधार का फायदा उठाकर श्रम आधारित विनिर्माण और निर्यात को गति नहीं दे सका। इसका असर समूचे आर्थिक प्रदर्शन पर पड़ा। हालिया वर्षों में उसने शुल्क वृद्धि भी की है। भारत ने क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी से बाहर होने का निर्णय लेकर स्वयं को दुनिया के सर्वाधिक गतिशील क्षेत्र से खुद को अलग कर लिया। इससे वैश्विक मूल्य शृंखला में हमारी भागीदारी पर असर होगा। जबकि निर्यात के लिए यह शृंखला बहुत जरूरी है। यूरोपीय संघ और अमेरिका के साथ व्यापक कारोबारी समझौते भी अभी तक दूर की कौड़ी हैं। ऐसे में निर्यात वृद्धि को स्थायित्व देने के लिए सरकार को हालिया वर्षों में अपनाए गए संरक्षणवादी उपायों की समीक्षा कर उन्हें समाप्त करना चाहिए। इससे उच्च आर्थिक वृद्धि पाने और रोजगार वृद्धि में मदद मिलेगी।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
0 comments:
Post a Comment