नेपाल की राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी द्वारा शुक्रवार-शनिवार की मध्यरात्रि में संसद भंग करने तथा नवंबर में चुनाव कराने का फैसला इस हिमालयी राज्य में राजनीतिक अस्थिरता की कहानी कहता है। इससे पहले संसद में प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली दस मई को बहुमत हासिल नहीं कर पाये थे। फिर राष्ट्रपति ने विपक्ष को 24 घंटे में बहुमत साबित करके सरकार बनाने को कहा था, लेकिन विपक्ष भी बहुमत का आंकड़ा जुटाने की कोशिश इतने कम समय में नहीं कर पाया। राजनीतिक पंडित आरोप लगाते रहे हैं कि राष्ट्रपति हर तरह से ओली को फायदा पहुंचाने की कोशिश में लगी रहती हैं। नेपाल की मुख्य विपक्षी पार्टी नेपाली कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति के फैसले को अलोकतांत्रिक बताया है और सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की बात कही है। देश में राजशाही के खात्मे और लोकतंत्र की बहाली के बाद उम्मीद जगी थी कि नेपाल को स्थायी सरकार मिल सकेगी, लेकिन राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं और निहित स्वार्थों के चलते नेपाल लगातार राजनीतिक अस्थिरता के भंवर में धंसता जा रहा है। वह भी ऐसे समय में जब देश कोरोना की दूसरी लहर से घिरा है और स्वास्थ्य तंत्र का ढांचा धवस्त होने से मानवीय क्षति का सिलसिला जारी है। दरअसल, ताजा संकट की शुरुआत गत वर्ष दिसंबर में हो गई थी जब ओली की सीपीए (यूएमएल) और पुष्प कुमार दहल ‘प्रचंड’ के नेतृत्व वाले सीपीएन (माओइस्ट सेंटर) में अलगाव सामने आया था। इसके बाद ओली ने संसद भंग करके मध्यावधि चुनाव करने की घोषणा कर दी, जिसके खिलाफ विपक्षी दल सुप्रीम कोर्ट गये। शीर्ष अदालत ने फरवरी में सरकार भंग करने को असंवैधानिक करार देते हुए संसद को बहाल करने के आदेश दिये थे।
हालांकि, राष्ट्रपति कार्यालय ने कहा कि कार्यवाहक प्रधानमंत्री व विपक्ष द्वारा सरकार न बना पाने की स्थिति में संसद भंग करने का फैसला लिया गया। मौजूदा राजनीतिक घटनाक्रम ऐसे वक्त में हो रहा है जब देश के स्वास्थ्य विशेषज्ञ राजनेताओं से राजनीतिक तिकड़में छोड़कर लोगों की जिंदगियों को बचाने के लिये प्रयास करने को कह रहे हैं। वहीं विपक्षी नेपाली कांग्रेस ने राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी व प्रधानमंत्री ओली पर अपने संकीर्ण स्वार्थ के लिये पद का दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए राजनीतिक व कानूनी पहल करने की बात कही है। विपक्ष शुक्रवार व शनिवार की मध्यरात्रि के बाद कैबिनेट की बैठक के बाद राष्ट्रपति द्वारा संसद भंग करने और चुनाव कराने की घोषणा को लेकर सवाल उठा रहे हैं। इसे अलोकतांत्रिक व असंवैधानिक बता रहे हैं। हालांकि, विपक्षी नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देऊबा ने प्रधानमंत्री पद की दावेदारी जताते हुए 149 सांसदों का समर्थन हासिल होने की बात कही थी। अब देऊबा कह रहे हैं इन्हीं सांसदों के हस्ताक्षर वाले समर्थन पत्र को लेकर वे अदालत जायेंगे। बहरहाल, नेपाल में लागू किये नये संविधान के जरिये भी अस्थिरता का मर्ज ठीक होता नजर नहीं आता। ओली की उच्च राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी मिलकर सरकार चलाने के रास्ते में बाधा बनती रही है।
सौजन्य- दैनिक ट्रिब्यून।
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