बद्री नारायण
बात शुरू करता हूं दुनिया के महानतम कवि ब्रेख्त की एक कविता के संदर्भ से। ब्रेख्त अपनी एक कविता में मशीन की शक्ति पर व्यंग्य करते हुए कहते हैं कि तोप, मशीन शक्तिवान तो है, पर उसे चलाने के लिए आदमी चाहिए। यह बात आज कोरोना की दूसरी लहर के इस विनाशकारी प्रसार में और ज्यादा प्रासांगिक होकर सामने आ रही है। जब कोरोना की पहली लहर आई थी, तब उस चुनौती का सामना करने के लिए भारतीय शिक्षा जगत ने ‘ऑनलाइन’ शिक्षा का विकल्प ढूंढ़ा था। कोरोना की दूसरी लहर में उस विकल्प को भी विकसित करना मुश्किल हो रहा है, क्योंकि ऑनलाइन बैठने, बोलने, उसे संयोजित करने, तकनीकी सहयोग प्रदान करने वाले ही कोरोना से ग्रसित हो महीनों कष्टकर जीवन बिताने को मजबूर हो रहे हैं।
कोरोना की इस महान विपदा में भी शिक्षा मंत्रालय, शिक्षा की संस्थाएं यथा शोध संस्थाएं, विश्वविद्यालय जीवन रेखा बनाए रखने के लिए कार्यरत हैं। ऐसे में शिक्षा मंत्रालय, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी), अनेक विश्वविद्यालय एवं शोध संस्थाएं एवं अनेक ऐसी संस्थाएं नियंत्रित ढंग से ही सही अपनी भूमिका के निर्वाह में लगी हैं। उनके अधिकारी, कर्मचारी कोरोना से संक्रमित हो गिर रहे हैं, फिर उठ रहे हैं, कई काल कवलित भी हो रहे हैं। मंत्री से लेकर निचले कर्मचारी कोरोना से लगातार ग्रसित हो रहे हैं। संस्थाओं को बचाए रखने के लिए प्रतिबद्ध कर्मचारियों को भी नए ‘वैरियर’ के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए। ऐसे में हमें उन्हें सलाम तो करना ही चाहिए।
कोरोना के इस महासंहार ने भारतीय शिक्षा जगत में कई नई चुनौतियां पैदा की है। इसमें पहली चुनौती है- संक्रमण से परिसरों को बचाने के उपाय कैसे किए जाए। विश्वविद्यालयों, आईआईटी, आईआईएम एवं अनेक शोध संस्थान जिनके परिसर हैं, वहां स्वास्थ्य सुविधा, हेल्थ सेंटर, कोविड वार्ड जैसी सुविधाओं को विकसित करना होगा। ये हेल्थ सेंटर भले ही छोटे हों, पर आपातकाल में इनमें अपने कर्मचारियों की जान बचा पाने की क्षमता हो। कई विश्वविद्यालय एवं शिक्षा संस्थान लगातार इस दिशा में सोचने एवं कार्य करने में लगे भी हैं।
यह सुखद है कि भारत के शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक एवं यूजीसी के वर्तमान अध्यक्ष प्रोफेसर डी.पी. सिंह कोरोना काल की इस नई आवश्यकता के बारे में संवेदनशील हैं। संभव है, शिक्षा के अगले बजट में शिक्षण संस्थाओं में संक्रमण प्रतिरोधी क्षमता वाले छोटे ही सही, किंतु प्रभावी स्वास्थ्य केंद्र एवं हॉस्पिटल के लिए प्रावधान हो पाएगा। साथ ही शिक्षा संस्थानों के कर्मचारियों, शिक्षकों एवं छात्रों में संक्रमण से बचाव के उपायों के बारे में जनजागरण अभियान चलाना होगा। हमें शिक्षा संस्थाओं में टीकाकरण की अलग से मुहिम चलानी होगी। इनके लिए टीके की उपलब्धता भी केंद्र एवं राज्य सरकारों को सुनिश्चित करनी ही होगी।
कोरोना की इस दूसरी लहर ने हमें चेताया है कि शिक्षा संस्थाओं के परिसरों में सतत सैनिटाइजेशन, स्वच्छता एवं सफाई बहुत जरूरी है। प्रायः शिक्षा संस्थाओं के परिसरों में सफाई एवं स्वच्छता के प्रति प्रतिबद्धता दिखाई नहीं पड़ती। संक्रमण लक्षणों की जांच की व्यवस्था भी आज शिक्षा संस्थाओं के सामने बड़ी चुनौती की तरह खड़ी है। अभी तो परिसर बंद हैं, छात्रावास खाली
हैं, जब धीरे-धीरे परिसर खुलने शुरू होंगे, तो वहां संक्रमण के प्रसार को रोकना हमारी बड़ी चुनौती होगा। कोरोना की पहली लहर के बाद उच्च शिक्षा संस्थाओं ने क्रमशः अपने को खोलना शुरू ही किया था कि दूसरा लहर बनकर कोरोना फिर से हमारे शैक्षिक जीवन में आ बैठा है।
यह जानना रोचक है कि पिछले ही दिनों यूजीसी ने स्वच्छ एवं हरे-भरे परिसर की संपूर्ण कार्ययोजना ‘सतत’ के नाम से देश के सारे विश्वविद्यालयों के लिए प्रस्तावित की थी। पता नहीं, उस दिशा में किस संस्था ने कितना काम किया है। किंतु अब ऐसी योजनाओं को हम हल्के में न लें। हमें पूरी प्रतिबद्धता के साथ शिक्षा संस्थाओं को शुद्ध हवा, शुद्ध पानी एवं संक्रमण मुक्त परिवेश बनाने पर जोर देना होगा। कहते हैं कि विपदाएं विकल्पों को सीमित एवं संकुचित कर देती हैं। किंतु आदमी की जिजीविषा नई चुनौतियों के संदर्भ में अपने लिए नए विकल्प तलाश ही लेती है।
सौजन्य - अमर उजाला।
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