इस बार के ओलंपिक में भारतीय खिलाड़ियों का प्रदर्शन वास्तव में देश के लिए गर्व का विषय है। तीरंदाजी, निशानेबाजी और कुश्ती की एक प्रतिस्पर्धा में पदक चूक जाने के बावजूद इस बार सभी क्षेत्रों में खिलाड़ियों ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। एक स्वर्ण, दो रजत और चार कांस्य के साथ कुल सात पदक उन्होंने देश के नाम किए। एथलेटिक और हॉकी में बरसों का सपना पूरा हुआ। एथलेटिक में सौ से अधिक सालों बाद पदक आया, वह भी स्वर्ण। हॉकी में इकतालीस साल बाद पदक आया। जिन स्पर्धाओं में कोई पदक नहीं आ पाया, उनमें भी खिलाड़ियों ने अपने कौशल का झंडा गाड़ा।
कई खिलाड़ी सेमी फाइनल दौर में पहुंच कर पदक से चूके। महिला हॉकी टीम बेशक कोई पदक नहीं जीत सकी, पर पूरी दुनिया की नजर उस पर लगी रही और वह मजबूत दावेदार मानी जा रही थी। सेमी फाइनल में खेलते हुए उसने अपना बेहतरीन प्रदर्शन किया। इसी तरह गोल्फ में अदिति अशोक और कुश्ती में दीपक पूनिया आखिरी क्षणों में मात खा गए। मगर स्वाभाविक ही सबसे अधिक खुशी लोगों को भाला फेंक स्पर्धा में नीरज चोपड़ा के स्वर्ण पदक जीतने से हुई। एथलेटिक में करीब सौ साल बाद भारत को यह पदक हासिल हुआ है।
एथलेटिक वर्ग में मिल्खा सिंह और पीटी उषा ने कई अंतरराष्ट्रीय कीर्तिमान स्थापित किए थे, पर ओलंपिक में वे पदक से चूक गए थे। मिल्खा सिंह का तो सपना था कि कोई भारतीय खिलाड़ी ओलंपिक पदक लाए। अब जाकर उनका यह सपना पूरा हुआ है। पेरिस ओलंपिक में एथलेटिक वर्ग में भारत को जो दो पदक मिले थे, उसे जीतने वाले खिलाड़ी अंग्रेज थे। इस तरह इस वर्ग में यह स्वतंत्र भारत का पहला पदक है। नीरज चोपड़ा को पिछले तीन सालों से ओलंपिक पदक का दावेदार माना जा रहा था।
1996 में जूनियर विश्व चैंपियनशिप में उन्होंने जिस तरह अपना कौशल दिखाया और स्वर्ण पदक हासिल किया, उसके बाद से ही इतिहास रचने की उम्मीदें उनसे जुड़ गई थीं। उसके बाद लगातार उनका प्रदर्शन बेहतरीन बना रहा। 2018 के एशियाई और राष्ट्रमंडल खेलों में भी उन्होंने स्वर्ण पदक हासिल किए थे। अच्छी बात यह थी कि उनका प्रदर्शन लगातार बेहतर होता रहा। इस तरह ओलंपिक में उनके पदक लाने को लेकर कई लोगों को उम्मीद बनी हुई थी। पर शायद किसी को यह उम्मीद नहीं थी कि वे स्वर्ण पदक हासिल कर लेंगे। इसे उन्होंने अपने जज्बे और आत्मविश्वास से कर दिखाया। निश्चय ही उनकी जीत से भारत के दूसरे खिलाड़ियों का हौसला और आत्मविश्वास बढ़ा है।
हालांकि ओलंपिक खेलों पर हमेशा लोगों की नजर रहती है, पर इस बार के तोक्यो ओलंपिक को लेकर कुछ अधिक उत्साह दिखा, तो इसीलिए कि इसमें हमारे खिलाड़ियों का प्रदर्शन उम्मीद जगाने वाला था। छोटी-छोटी जगहों पर भी लोग भारतीय खिलाड़ियों की स्पर्धाओं पर नजर गड़ाए हुए थे। इससे निस्संदेह खिलाड़ियों का मनोबल भी बढ़ा है। मगर इन पदकों की चमक में एक बार फिर खिलाड़ियों और खेलों के प्रोत्साहन को लेकर कुछ सवाल गाढ़े हुए हैं। पदक लाने वाले या मामूली अंतर से चूक गए ज्यादातर खिलाड़ी बहुत साधारण परिवारों के हैं। उन्हें इस मुकाम तक पहुंचने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा है। जीत के बाद जिस तरह उन्होंने अपने संघर्ष बयान किए, उससे एक बार फिर जाहिर हो गया कि अगर सरकारी स्तर पर खेलों को उचित समर्थन और प्रोत्साहन मिले, तो इस तरह के और कीर्तिमान बन सकते हैं।
सौजन्य - जनसत्ता।
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