सामान्य दर व्यवस्था की तरफ लौटने का पहला संकेत! (बिजनेस स्टैंडर्ड)

तमाल बंद्योपाध्याय  

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की पिछले सप्ताह शुक्रवार को समाप्त हुई तीन दिवसीय बैठक के नतीजे पर किसी को आश्चर्य नहीं हो रहा है। एमपीसी की बैठक के बाद जारी वक्तव्य में कहा गया कि घरेलू एवं वैश्विक आर्थिक हालात और वित्तीय परिस्थितियों सहित भविष्य को ध्यान में रखते हुए नीतिगत दरें सर्वसम्मति से अपरिवर्तित रखने का निर्णय लिया गया है। वक्तव्य में यह भी कहा गया कि केंद्रीय बैंक आर्थिक वृद्धि दर मजबूत होने और आवश्यकता महसूस होने तक उदार रवैया जारी रखेगा। एमपीसी के छह में केवल एक सदस्य ने वक्तव्य में इस्तेमाल की हुई शब्दावली पर आपत्ति जताई। हालांकि तमाम मिलती-जुलती बातों के बावजूद नीतिगत दरों पर हुई यह बैठक जून से थोड़ी अलग नजर आती है।


अब केंद्रीय बैंक देश की वृद्धि दर को लेकर अधिक विश्वास से भरा लग रहा है और बढ़ती महंगाई दर पर भी यह स्पष्टï रूप से पहले से अधिक सतर्क हो गया है। वास्तव में आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष के लिए महंगाई दर का अनुमान बढ़ा दिया है। आरबीआई ने 14 दिन की अवधि वाली वैरिएबल रेट रिवर्स रीपो (वीआरआरआर) नीलामी का आकार भी 2 लाख करोड़ रुपये से बढ़ाकर 4 लाख करोड़ रुपये कर दिया है। इस तरह, महंगाई दर को लेकर आरबीआई के रुख और वीआरआरआर के तहत नीलामी का आकार दोगुना करने से कई लोगों को यह लगने लगा है कि केंद्रीय बैंक ने सामान्य नीतिगत दर व्यवस्था की तरफ लौटने का संकेत दे दिया है। इसी वजह से 10 वर्ष की अवधि के बॉन्ड पर प्रतिफल 6.205 प्रतिशत से 4 आधार अंक बढ़कर 6.24 प्रतिशत हो गया। आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने जोर देकर कहा कि नीलामी का आकार बढ़ाए जाने को सामान्य नीतिगत दर व्यवस्था की तरफ बढऩे के संकेत के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए। दास ने कहा कि यह केवल नकदी प्रबंधन का एक उपाय है। 


वित्तीय प्रणाली में इस समय नकदी 11 लाख करोड़ रुपये के सर्वकालिक स्तर पर पहुंच गई है। सरकारी प्रतिभूति खरीद कार्यक्रम (जी-सैप) और दूसरी तिमाही में अल्प अवधि के ट्रेजरी बिल भुनाए जाने से नकदी की उपलब्धता लगातार बढ़ती रहेगी। कोविड-19 महामारी के दौरान आरबीआई ने वीआरआरआर किनारे कर दिया था मगर जनवरी में दोबारा इसकी शुरुआत हुई थी। अब आरबीआई ने सितंबर के दूसरे पखवाड़े तक चरणबद्ध तरीके से इसका आकार बढ़ाकर 4 लाख करोड़ रुपये करने का निर्णय लिया है। वीआरआरआर नियत दर दैनिक रिवर्स रीपो प्रणाली (फिक्स्ड रेट डेयली रिवर्स रीपो विंडो) के समानांतर है जहां बैंकों को आरबीआई के अपनी अधिशेष रकम रखने पर 3.35 प्रतिशत ब्याज मिलता है। आरबीआई आर्थिक वृद्धि को लेकर पहले से अधिक उत्साहित नजर आ रहा है। उसके वक्तव्य में कहा गया है कि कोविड महामारी की दूसरी लहर कमजोर पडऩे के बाद देश में आर्थिक गतिविधियों में तेजी आनी शुरू हो गई है।


केंद्रीय बैंक ने यह भी कहा कि निवेश की मांग भले नहीं बढ़ी है लेकिन क्षमता इस्तेमाल बढऩे, इस्पात की बढ़ती खपत और पूंजीगत वस्तुओं के पहले से अधिक आयात से सुधार में तेजी आनी चाहिए। आरबीआई ने वित्त वर्ष 2021-22 के लिए आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान 9.5 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा है। वित्त वर्ष 2023 की पहली तिमाही में वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर 17.2 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है। 


केंद्रीय बैंक ने कहा कि आर्थिक गतिविधियां धीरे-धीरे शुरू होने और मॉनसून सक्रिय होने से अर्थव्यवस्था में सुधार आएगा। दास ने कहा कि  सरकार ने जो कदम उठाए हैं उनसे भी अर्थव्यवस्था को मौजूदा संकट से तेजी से बाहर निकलने में मदद मिलेगी। मौद्रिक नीति की घोषणा के बाद दास ने कहा कि आर्थिक वृद्धि दर तेज करने के लिए आरबीआई कोई भी उपाय करने को तैयार है। उन्होंने यह भी कहा कि इस समय नीतिगत मोर्चे पर अधिक हलचल देश की आर्थिक वृद्धि की रफ्तार को सुस्त कर सकती है।


दुनिया के कई केंद्रीय बैंकों के प्रमुखों की तर्ज पर आरबीआई गवर्नर ने भी कहा है कि आपूर्ति संबंधी दिक्कतों के कारण महंगाई तेजी अस्थायी है। मगर बढ़ती महंगाई को देखते हुए आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष के लिए महंगाई का अनुमान 5.1 प्रतिशत से बढ़ाकर 5.7 प्रतिशत कर दिया गया है। वित्त वर्ष 2023 की पहली तिमाही में आरबीआई ने महंगाई दर 5.1 प्रतिशत रहने की बात कही है।


एमपीसी महंगाई दर 4 प्रतिशत (2 प्रतिशत कम या अधिक) तक सीमित रखने का प्रयास करती है। इसमें कोई शक नहीं कि एमपीसी महंगाई से उत्पन्न होने वाली चुनौतियों से पूरी तरह अवगत है। दूसरी तरफ एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत भी दिखने लगे हैं। अगर महंगाई बढ़ती रही और आर्थिक रफ्तार तेज होती गई तो आरबीआई के पास समय से पहले उदार रवैया धीरे-धीरे समाप्त करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा। अगर आरबीआई दिसंबर 2022 से ऐसा नहीं कर सकता तो फरवरी 2023 से उसे ऐसा करना ही पड़ेगा। 


एमपीसी की बैठक के बाद जारी नीतिगत वक्तव्य में कहा गया है कि एमपीसी महंगाई नियंत्रण में रखने की अपनी जिम्मेदारी से पूरी तरह वाकिफ है और आर्थिक वृद्धि मजबूत होने और संभावनाएं बेहतर होते ही यह आवश्यक कदम उठाना शुरू कर देगा। फिलहाल तो आरबीआई ने अपना रख साफ कर दिया है कि अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए वह कोई भी कदम उठाने से पीछे नहीं हटेगा। 


(लेखक बिज़नेस स्टैंडर्ड के सलाहकार संपादक, लेखक और जन स्मॉल फाइनैंस बैंक के वरिष्ठï सलाहकार हैं।)

सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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