बेहतर नौकरियां देने में सक्षम बड़ी कंपनियां (बिजनेस स्टैंडर्ड)

महेश व्यास महेश व्यास


देश में सूचीबद्ध कंपनियों ने वर्ष 2021-22 में रिकॉर्ड स्तर पर 1 करोड़ से अ​धिक लोगों को रोजगार दिया और उनके द्वारा भुगतान किया गया औसत वार्षिक वेतन प्रति कर्मचारी 7 लाख रुपये था। सीएमआईई के उपभोक्ता पिरामिड परिवार सर्वेक्षण (सीपीएचएस) के अनुसार, यह किसी कारखाने के कर्मचारी को मिलने वाले 3 लाख रुपये के औसत वेतन और किसी भी सूचीबद्ध, गैर-सूचीबद्ध, बड़े या छोटे उद्यमों के कर्मचारियों को मिलने वाले 2.63 लाख रुपये के वेतन से बहुत अधिक था।


सूचीबद्ध कंपनियों द्वारा किया जाने वाला औसत वेतन भुगतान अन्य उद्यमों के वेतन भुगतान के दोगुने से अधिक था। सूचीबद्ध कंपनियां ज्यादातर उद्योगों के औसत वार्षिक सर्वेक्षण (एएसआई) कारखानों या उन बड़े उद्यमों से भी बड़ी हैं जहां परिवार के सदस्यों के सीपीएचएस सैंपल कार्यरत हैं। सीपीएचएस में उन उद्यमों के बारे में जानकारी नहीं है जहां परिवार के सदस्य काम करते हैं। ऐसे में कंपनियों या नियोक्ताओं के आकार के हिसाब से मजदूरी की दर की कड़ी जोड़ना संभव नहीं है।


पहली बार में यह निष्कर्ष निकालना संभव है कि बड़े उद्यम अधिक लोगों को रोजगार देते हैं और छोटे उद्यमों की तुलना में प्रत्येक कर्मचारी को अधिक वेतन का भुगतान करते हैं। हम सूचीबद्ध कंपनियों से भी कुछ हद तक इसका अंदाजा लगा सकते हैं जिनके लिए जानकारी उपलब्ध है।


हमने यह देखा कि कंपनी का आकार बढ़ने के साथ किसी उद्यम के औसत वेतन भुगतान का स्तर बढ़ा है। लगभग 3,300 सूचीबद्ध कंपनियों का वर्ष 2021-22 का डेटा उपलब्ध था और हमने उनके आकार के अनुसार कंपनियों के 10 समूह बनाए। इसके शीर्ष दशमक (डेसाइल) समूह में सूचीबद्ध कंपनियों के कुल कर्मचारियों की 10 फीसदी हिस्सेदारी है। कंपनी के आकार को कंपनियों की रैंकिंग में अपेक्षाकृत दर्जे के आधार पर परिभाषित किया गया जो बिक्री और तयशुदा संपत्ति के योग के तीन साल के औसत के हिसाब से तय किया गया।


शीर्ष दशमक समूह की कंपनियों का औसत वार्षिक वेतन दर 10 लाख रुपये प्रति कर्मचारी था। अच्छी बात यह है कि सूचीबद्ध कंपनियों के सभी कर्मचारियों में से एक-तिहाई से अधिक इस समूह में कार्यरत थे। दूसरे दशमक समूह में सूचीबद्ध कंपनियों के कुल कर्मचारियों का 15 प्रतिशत था और इस समूह में वर्ष 2021-22 में औसत वेतन दर 736,536 रुपये थी। ऐसे में इस समूह में औसत वार्षिक मजदूरी दर पहले समूह की तुलना में काफी कम थी।


इसका मतलब है कि सूचीबद्ध कंपनियों में वेतन का वितरण ऐसा था कि शीर्ष 20 प्रतिशत कंपनियों की कुल रोजगार में लगभग आधी हिस्सेदारी थी। यह देखते हुए कि औसत वेतन दर लगभग 7 लाख रुपये प्रति कर्मचारी थी, उन्होंने सभी सूचीबद्ध कंपनियों के औसत वेतन से काफी अधिक भुगतान किया। बड़ी कंपनियों ने अधिक लोगों को काम पर रखा और बाकी की तुलना में औसतन अधिक वेतन भुगतान किया।


80 प्रतिशत कंपनियों ने कुल में से आधे से भी कम को काम दिया और कम वेतन का भुगतान किया। तीसरे दशमक समूह में मजदूरी दर घटकर 5.5 लाख रुपये हो गई और फिर चौथे में बढ़कर 6.68 लाख रुपये और पांचवें समूह में 7.75 लाख रुपये तक हो गई। अगले तीन दशमक समूहों में, वार्षिक मजदूरी दर 5 लाख रुपये से बढ़कर 6.5 लाख रुपये हो गई। फिर, सबसे छोटे दो दशमक समूहों में वार्षिक मजदूरी दर तेजी से कम होकर 3 लाख रुपये और 3.75 लाख रुपये हो गई।


मध्यम आकार वाली कंपनियों में तीसरे दशमक समूह से 8 समूह तक की वार्षिक मजदूरी दर 5 लाख रुपये से 7.75 लाख रुपये के दायरे में थी। यह शीर्ष दो दशमक समूह के औसत वेतन से बहुत कम था और नीचे के दो समूह की तुलना में बहुत अधिक था। मोटे तौर पर यह स्पष्ट है कि वेतन दर कंपनी के आकार का आनुपातिक है। जाहिर है वेतन दर और भी बेहतर होगी अगर भारत में छोटे आकार की कंपनियों की तुलना में अधिक बड़ी कंपनियां हों। डेटा की कमी के कारण सूचीबद्ध कंपनियों के अनुमान को लेकर सभी उद्यमों के लिए इसका सामान्यीकरण करना संभव नहीं है।


वर्ष 2013-14 की छठी आर्थिक जनगणना के अनुसार, 5.8 करोड़ संस्थान थे जिनमें 13.1 करोड़ लोगों को रोजगार मिला था। इनमें से 4.2 करोड़ ऐसे प्रतिष्ठान थे जो कर्मचारियों की भर्ती नहीं करते और केवल 1.6 करोड़ प्रतिष्ठानों ने न्यूनतम एक कर्मचारी की भर्ती की थी। इन प्रतिष्ठानों ने 7.3 करोड़ श्रमिकों को रोजगार दिया और इस अनुमान से वर्ष 2013-14 में अर्थव्यवस्था में वेतन वाले कर्मचारियों की अहमियत का अंदाजा मिलता है।


सीएमआईई के सीपीएचएस के अनुसार, वर्ष 2019-20 में 8.7 करोड़ वेतन वाले कर्मचारी थे। इसे 2013-14 की आर्थिक जनगणना द्वारा दिए गए अनुमान का अद्यतन स्वरूप माना जा सकता है। कोविड-19 के झटके के कारण वर्ष 2020-21 में वेतन वाले कर्मचारियों की संख्या घटकर 7.4 करोड़ रह गई। फिर यह वर्ष 2021-22 में आंशिक रूप से सुधरकर 8.1 करोड़ हो गया। इसके विपरीत कोविड-19 अवधि के दौरान सूचीबद्ध कंपनियों के रोजगार में गिरावट नहीं आई।


वर्ष 2021-22 में, सूचीबद्ध कंपनियों के रोजगार में 9.3 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई और सीपीएचएस के अनुसार सभी वेतन वाले कर्मचारियों का कुल रोजगार 8.6 प्रतिशत की निचली दर से बढ़ा। छोटी, गैर-सूचीबद्ध कंपनियों का रोजगार धीमी गति से बढ़ा हालांकि इस वृद्धि को गिरावट में सुधार के तौर पर देखा गया।


सीपीएचएस के डेटाबेस से यह भी पता चलता है कि वर्ष 2021-22 में भारत में सभी वेतन वाले कर्मचारियों में से केवल छह प्रतिशत की वार्षिक वेतन दर 6 लाख रुपये से अधिक थी। इसके अलावा, केवल 35 प्रतिशत की मजदूरी दर 3 लाख रुपये से अधिक थी। इसका मतलब यह है कि भारत में कुल वेतन वाले कर्मचारियों में से लगभग दो-तिहाई की मजदूरी दर सूचीबद्ध कंपनियों द्वारा दी जाने वाली सबसे कम मजदूरी दरों से भी कम थी। जाहिर है भारत की रोजगार समस्या का समाधान बड़ी कंपनियों में ही मिलना चाहिए जिन्हें मध्यम और छोटे पैमाने के क्षेत्र के बजाय व्यापक खुलासा करने की आवश्यकता है, जो श्रम का कम इस्तेमाल करते हैं।


(लेखक सीएमआईई प्राइवेट लिमिटेड के एमडी और सीईओ हैं)

सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।

Share on Google Plus

About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

This is a short description in the author block about the author. You edit it by entering text in the "Biographical Info" field in the user admin panel.
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments:

Post a Comment