Patrika :स्वास्थ्य को चुनें, मौत नहीं

क्षणिक मजे के लिए तंबाकू सेवन करने वालों को आगे चलकर इसकी जो भारी कीमत चुकानी पड़ती है, वह इसके खरीद मूल्य से कई गुना ज्यादा है।


तंबाकू सेवन का बढ़ता चलन हमारे स्वास्थ्य के साथ सामाजिक, पर्यावरण व आर्थिक रूप से बेहद हानिकारक साबित हो रहा है। भारत दुनिया में तंबाकू का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता बन चुका है। एक अनुमान के मुताबिक दुनिया भर के 1.3 अरब लोग तम्बाकू का किसी न किसी रूप में उपयोग करते है। इनमें भारत के करीब 25 करोड़ लोग हैं।

तम्बाकू के सभी रूप, चाहे वह धुंए वाला हो या चबाने वाला खतरनाक है। इसके उपयोग का कोई सुरक्षित स्तर नहीं है। तंबाकू सेवन के मामले में महिलाओं की तादाद भी कम नहीं है। अमूमन इसमें महिलाओं की 20-25 फीसदी भागीदारी है। धम्रपान करने वाली गर्भवती महिलाओं से जन्मे शिशुओं में जीवन भर के लिए कई स्वास्थ्य विकृतियां पैदा हो सकती हैं। स्वास्थ्य के अलावा भी इसके कई दुष्प्रभाव हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार इसका 80 प्रतिशत उपयोग निम्न व मध्य आय वर्ग के लोग करते हंै। जो पैसा शिक्षा, भोजन, स्वास्थ्य देखभाल या परिवार की अन्य जरूरतों पर खर्च किया जा सकता है, वह तंबाकू खरीदने व इससे हुए रोगों के इलाज में चला जाता है। तंबाकू की खेती पर्यावरण के लिए भी अनुकूल नहीं होती। वनों की कटाई के अलावा कीटनाशकों और उर्वरकों के भारी उपयोग से जलवायु को नुकसान पहुंचता है । भूमि की उर्वरता व अन्य फसलों को उगाने की क्षमता भी कम हो जाती है ।

सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान करने पर पाबंदी है। विद्यालयों के नजदीक इसकी बिक्री प्रतिबंधित है। इसका प्रयोग कम हो इसके लिए तंबाकू उत्पादों पर उच्च कर लगाए जाते हैं। तंबाकू उत्पादों पर कैंसर की भयावता को दिखाते चित्र के साथ जानलेवा होने की चेतावनी लिखी होती है। इसके बावजूद प्रयोग में कोई कारगर कमी देखने में नहीं आ रही। ये सभी उपाय तंबाकू के सेवन पर रोकथाम के लिए पर्याप्त नहीं दिख रहे। यह विडंबना नहीं तो क्या है कि कई फिल्म स्टार, सेलिब्रिटी विज्ञापन में अप्रत्यक्ष रूप से लुभावने तरीके से इन उत्पादों के प्रयोग के लिए लोगों को एक तरह से उकसाते हैं। इन विज्ञापनों से गुमराह होकर कई किशोर व युवा इसके जाल में फंस जाते हंै। अब हमें इंडस्ट्री के इन हथकंडों से बचना होगा और यह समझना होगा कि तंबाकू का वास्तविक चेहरा बीमारी और मौत है, न कि वह कृत्रिम चमक, जो ये लोग हमें दिखाने की कोशिश करते हैं।

क्षणिक मजेे के लिए तंबाकू सेवन करने वालों को आगे चलकर इसकी जो भारी कीमत चुकानी पड़ती है, वह इसके खरीद मूल्य से कई गुना ज्यादा है। 28 वर्ष की उम्र में तंबाकू जनित मुंह के कैंसर से अकाल मौत का ग्रास बनी सुनीता तोमर का वक्तव्य उल्लेखनीय है। उन्होंने कहा था कि 'जब भी किसी को तंबाकू खाते देखती हूं तो रूह कांप उठती है। ' तंबाकू मुक्त समाज के लिए सरकारी स्तर पर भी ठोस प्रभावी रणनीति बनाई जाए, ताकि वर्तमान तंबाकू नीति की कई विसंगतियां ठीक हो सकें। तंबाकू के अप्रत्यक्ष विज्ञापन व प्रचार पर भी प्रभावी प्रतिबंध लगे। सामाजिक संस्थाएं खासकर बच्चों व नौजवानों को इससे दूर रखने के ठोस प्रयास करें। इसके साथ ही तंबाकू मुक्त कार्यस्थल की प्रतिबद्धता भी आवश्यक है। इस आदत को छोड़ा जा सकता है, बस जरूरत है तो केवल आत्मविश्वास व दृढ़संकल्प की। जिन कारणों से आप इसे छोडऩा चाहते हंै, उनकी मुख्य वजह एक कागज पर लिखें और जब भी इसकी इच्छा हो, उसे पढ़ें। शुरू के कुछ दिन अपने मन पर नियंत्रण रखें। अपने आपको परिवार में या अन्य तरह से जैसे योग, खेल और अच्छी किताबों में व्यस्त रखें। हम तंबाकू या स्वास्थ्य में से स्वास्थ्य को चुनें। भारतीय संस्कृति में तो कहा गया है कि स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा धन है। इसके बावजूद जानबूझकर तंबाकू का सेवन करके स्वास्थ्य बिगाडऩे का कोई औचित्य नहीं है। तंबाकू के जहर से दूर रहने में ही सबकी भलाई है।

 सौजन्य - पत्रिका।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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