भांग-गांजे की गुत्थी, कानून में बदलाव की जरूरत ( नवभारत टाइम्स)

Deepak Verma 


दुनिया में नशे के खिलाफ जारी जंग में एक महत्वपूर्ण मोड़ पिछले सप्ताह बुधवार को आया, जब संयुक्त राष्ट्र के कमिशन ऑन नारकोटिक ड्रग्स (सीएनडी) ने भांग को सबसे खतरनाक नशीले पदार्थों की सूची से बाहर कर दिया। गौर करने की बात यह है कि भारत सरकार ने भी इस प्रस्ताव के पक्ष में वोट दिया। एक अन्य महत्वपूर्ण घटनाक्रम में शुक्रवार को अमेरिका के हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स ने गांजे को कानूनी दायरे में ला दिया और 5 प्रतिशत टैक्स के साथ खुले में इसकी बिक्री की इजाजत दे दी। इन दोनों फैसलों से भांग और गांजे का सेवन पहले के मुकाबले कम या ज्यादा खतरनाक नहीं हो जाएगा, लेकिन सरकारों ने इन्हें गंभीरता से लिया तो इससे नशे के खिलाफ जारी अभियान को प्रभावी बनाने की रणनीति में एक जरूरी बदलाव निश्चित रूप से देखने को मिलेगा।


पिछले 59 वर्षों से भांग सीएनडी के शेड्यूल-4 में हेरोइन जैसे खतरनाक पदार्थों की सूची में है। अमेरिका में भी गांजे को अन्य घातक नशीले पदार्थों की श्रेणी में रखते हुए इसके इ्स्तेमाल पर सख्ती से रोक लगाने की कोशिश की गई लेकिन अनुभव बताता है कि इससे कुछ खास फायदा नहीं हुआ। उलटे इस सख्ती का एक परिणाम यह हुआ कि कानून व्यवस्था की एजेंसियों का ध्यान बंट गया और कोकीन-हेरोइन जैसी सबसे खतरनाक ड्रग्स के खिलाफ जितनी ताकत लगनी चाहिए थी, वह नहीं लग सकी। भारत का अनुभव भी कुछ ऐसा ही है।


संयुक्त राष्ट्र और कुछ अन्य देशों के कानूनों के अनुरूप यहां भी गांजा-भांग को अचानक खतरनाक ड्रग्स की श्रेणी में डाल दिया गया। नतीजा यह रहा कि शराब और तंबाकू जैसे पदार्थों का सेवन बहुत बढ़ गया और सरकारें भी इन्हें राजस्व प्राप्ति का महत्वपूर्ण जरिया मानकर परोक्ष ढंग से इन्हें बढ़ावा देने लगीं। सरकारी एजेंसियों का हाल यह है कि अपना ध्यान खतरनाक ड्रग्स के संगठित अंतरराष्ट्रीय कारोबार पर केंद्रित करने के बजाय वे 55 ग्राम और 85 ग्राम गांजे की बरामदगी के आधार पर खास व्यक्तियों के खिलाफ दर्ज गांजा सेवन के मामलों को अपनी उपलब्धि की तरह दिखाने में जुटी हैं। इस बदली हुई प्राथमिकता की जड़ कानून के उन प्रावधानों में ही है जो गांजा-भाग को हेरोइन जितने ही खतरनाक नशों की श्रेणी में रखते हैं।


इसमें दो राय नहीं कि नशा अपने आप में एक बुराई है और हर नशा स्वास्थ्य को किसी न किसी तरह का नुकसान ही पहुंचाता है। लेकिन एक उदार समाज अंततः पुलिस के डंडे से ज्यादा व्यक्ति के विवेक पर ही भरोसा करके चलता है। गली-गली में खुद से उगने वाले एक जंगली पौधे को आपराधिक दायरे में लाना न सिर्फ अधिक खतरनाक अपराधों के लिए रास्ता बनाता है, बल्कि लोगों को भी अपराधी मानसिकता की ओर ले जाता है। ऐसे में बेहतर होगा कि कानून की ताकत वहीं लगाई जाए, जहां यह सबसे ज्यादा जरूरी हो। संयुक्त राष्ट्र के सीएनडी सम्मेलन में भारत सरकार का समझदारी भरा रुख यह उम्मीद जगाता है कि देश के अंदर भी एनडीपीएस एक्ट में संशोधन की प्रक्रिया जल्द शुरू की जाएगी।


सौजन्य -  नवभारत टाइम्स।


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