संपादकीय: अराजक हठधर्मिता (जनसत्ता)

इसके बावजूद बुधवार को अमेरिका में जो हुआ, उसकी कल्पना शायद बहुत कम लोगों ने की होगी। लोकतंत्र के लंबे दौर के बाद भी वहां आज की हालत यह है कि एक बड़ा तबका अराजक तरीके से अपने किसी पसंदीदा नेता के जबरन सत्ता में बने रहने की कोशिशों में मददगार बन जाता है।

विचित्र है कि चुनावी नतीजों में ट्रंप हार रहे थे, मगर लोकतंत्र के तकाजों के मुताबिक इसे स्वीकार करने के बजाय वे बार-बार ऐसा बयान दे देते थे, जिससे उनके समर्थकों को अराजक रास्ते की ओर बढ़ने का इशारा मिला। एक खबर के मुताबिक ट्रंप ने हाल ही में अपने समर्थकों से कहा था कि बुधवार का दिन ‘अराजक’ होगा! और उनकी कही बात सचमुच जमीन पर देखने को मिली।

गौरतलब है कि चुनावी नतीजों पर मुहर लगाने के लिए अमेरिकी संसद की बैठक बुलाई गई थी, लेकिन वहां ट्रंप के समर्थकों ने संसद भवन परिसर को एक तरह से युद्ध के मैदान में तब्दील कर दिया। वहां सुरक्षाकर्मियों और प्रदर्शकारियों के बीच हिंसक झड़पें हुर्इं। हालात इतने ज्यादा अराजक हो गए कि संसद की बैठक रोक देने की नौबत आ गई।

हालांकि बाद में देर रात संयुक्त सत्र की कार्यवाही दोबारा शुरू हुई और उसमें राष्ट्रपति पद के लिए जो बाइडेन और उपराष्ट्रपति के लिए कमला हैरिस के चुनाव की पुष्टि कर दी गई। यानी एक तरह से सत्ता हस्तांतरण का रास्ता अब साफ हो गया है।

लेकिन इस बीच ट्रंप और उनकी ओर से जैसी बाधाएं खड़ी गई गर्इं, वे अप्रत्याशित थीं और अमेरिकी लोकतंत्र के इतिहास के मद्देनजर बेहद अफसोसनाक भी। हैरानी की बात यह है कि जो डोनाल्ड ट्रंप खुद एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत राष्ट्रपति चुने गए थे और अपना कार्यकाल उन्होंने पूरा किया।

उन्हें ही ये नतीजे सहजता से स्वीकार नहीं थे। जबकि उनकी जीत के बाद भी कुछ बाहरी देशों के परोक्ष हस्तक्षेप की आशंका जताई गई थी। हालांकि अब ट्रंप ने घोषणा की है कि वे अगली बीस जनवरी को स्वेच्छा से पद छोड़ देंगे और यह जो बाइडेन के राष्ट्रपति पद के लिए ‘व्यवस्थित परिवर्तन’ होगा।

सवाल है कि क्या यही बात वे पहले नहीं कर सकते थे? क्या यह सच नहीं है कि उनकी नाहक जिद की वजह से उनके समर्थकों के बीच चुनावी नतीजों को स्वीकार नहीं करने का संदेश पहुंचा? आखिर वे कौन-सी वजहें हैं कि ट्रंप और उनके समर्थकों को अगर चुनावी नतीजे स्वीकार नहीं थे तो उसके प्रति लोकतांत्रिक तौर-तरीके से असहमति दर्ज कराने के विकल्प चुनने के बजाय उन्होंने हिंसा और अराजकता का रास्ता अख्तियार किया?

अमेरिका में लोकतंत्र के लंबे अतीत के बारे में जानने और वर्तमान के साथ जीने के बावजूद क्या उन्हें अपनी समझ और व्यवहार में परिपक्वता लाने की जरूरत नहीं है? विडंबना यह है कि ट्रंप के समर्थकों में ऐसे लोग भी हैं जिनके बीच शायद न लोकतंत्र के प्रति कोई परिपक्व समझ है, न ही भिन्न और दमित नस्लों और उनके अधिकारों के प्रति कोई सम्मान भाव।

गनीमत है कि अमेरिका की ज्यादातर आबादी और सत्ता-तंत्र ऐसी प्रवृत्तियों के समर्थन में नहीं है और ट्रंप समर्थकों की अराजकता पर फिलहाल काबू पा लिया गया है। लेकिन इस आधुनिक दौर में भी अमेरिका में एक खासी आबादी के बीच अगर तानाशाही प्रवृत्तियों का समर्थन मौजूद है तो यह निश्चित तौर पर अमेरिका में लोकतंत्र के भविष्य के लिए एक गंभीर चेतावनी है।

सौजन्य - जनसत्ता।
Share on Google Plus

About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

This is a short description in the author block about the author. You edit it by entering text in the "Biographical Info" field in the user admin panel.
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments:

Post a Comment