अवधेश कुमार
उच्चतम न्यायालय ने नए संसद भवन सहित सेंट्रल विस्टा परियोजना से संबंधित अपने फैसले में माना है कि इसके निर्माण प्रारूप में किसी तरह के नियमों का उल्लंघन नहीं है। विरोधी कह सकते हैं कि तीन सदस्यीय पीठ में से एक न्यायाधीश ने अलग मत प्रकट किया है। बेशक, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी से न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने थोड़ा अलग मत प्रकट किया, पर वह पूरी तरह अलग नहीं थे। उन्होंने कहा है कि भूमि उपयोग पर बदलाव के फैसले से असहमत हूं, विरासत समिति की पूर्व स्वीकृति होनी चाहिए थी। बहरहाल, अब फैसले के बाद नए संसद भवन के निर्माण की सारी बाधाएं खत्म हो गईं हैं और उम्मीद करनी चाहिए कि यह नियत समय में पूरा हो जाएगा। हां, न्यायालय के आदेश के अनुरूप निर्माण स्थल पर एंटी स्मॉग टावर-गन लगाना होगा।
हमारे देश के चरित्र को देखते हुए यह मान लेना भूल होगी कि इसके बाद विरोध और उपहास बंद हो जाएगा। मूल प्रश्न तो यही है कि नए संसद भवन के निर्माण सहित पूरी विस्टा परियोजना की जरूरत है या नहीं? सच यह है कि लंबे समय से संसद भवन ही नहीं, प्रधानमंत्री आवास एवं कार्यालय, सचिवालय, और आसपास के अन्य सरकारी कार्यालयों, भवनों तथा अन्य निर्मित स्थलों, केंद्र सरकार के अन्य कार्यालयों को भविष्य का ध्यान रखते हुए परिवर्तित और आवश्यकतानुसार पुनर्निर्माण या नए सिरे से निर्माण की बात की जा रही थी। इसमें दो राय नहीं कि वर्तमान संसद भवन निर्माण का एक बेजोड़ नमूना है। किंतु यह जब बना था, तब आज की तरह आबादी विस्तार, आवश्यकताएं, सरकार और संसद के कामकाज में जुड़े व्यापक आयामों, संसद में लोगों की संख्या... आदि का शायद अनुमान नहीं था। बीच-बीच में थोड़े परिवर्तन और निर्माण आदि होते रहे, पर संसद भवन को जिस तरह की मरम्मत और व्यापक बदलावों की जरूरत है, वह नहीं हो पा रहा था। यह संभव भी नहीं था। यही नहीं, दोनों सदनों में बैठने की क्षमता अधिकतम स्तर पर पहुंच चुकी है। मंत्रालयों के कार्यालय भी अलग-अलग जगहों पर हैं।
इससे सुरक्षा व्यवस्था सहित अनेक समस्याएं आ रही हैं। अगर निर्माण होना ही है, तो बिना योजना के करने की जगह, समूचे लुटियन जोन का एक साथ योजना बनाकर संपूर्ण रूप से किया जाए। इसके लिए आजादी की 75 वीं वर्षगांठ यानी 2022 तक पूरा करने से बेहतर अवसर नहीं हो सकता है। नए संसद भवन का निर्माण तब तक पूरा होने का लक्ष्य रखा गया है। हालांकि शेष कार्य 2024 तक पूरा होने का अनुमान है। जैसा कि हम जानते हैं 1911 में ब्रिटिश आर्किटेक्ट एडविन लुटियंस के डिजाइन पर निर्माण के बाद नई दिल्ली का नया स्वरूप अस्तित्व में आया। 1921-27 के बीच संसद भवन बना। उस समय के इंडिया गेट से राष्ट्रपति भवन तक के तीन किलोमीटर लंबे राजपथ के आसपास के इलाके को ‘सेंट्रल विस्टा नाम दिया गया।
मौजूदा संसद भवन से सटी त्रिकोणीय आकार की नए संसद भवन की पूरी योजना देखने से आभास होता है कि इसके पीछे गहरा व दूरदर्शी चिंतन तथा परिश्रम है। योजनानुसार नए संसद भवन को कार्य दक्षता सहित अगले सौ वर्ष की हर संभाव आवश्यकताओं का ध्यान रखते हुए बनाया जाएगा। अभी लोकसभा में 590 लोगों के बैठने की व्यवस्था है। नई लोकसभा में 888 सीटें होंगी और दर्शक गैलरी में 336 से ज्यादा लोग बैठ सकेंगे। संयुक्त सत्र में 1,224 सदस्यों के बैठने की व्यवस्था होगी। राज्यसभा में 280 लोगों के बैठने की क्षमता है। नई राज्यसभा में 384 सीटें होंगी और दर्शक गैलरी में 336 से ज्यादा। नए भवन में उच्च गुणवत्ता वाली ध्वनि तथा दृश्य-श्रव्य सुविधाएं, प्रभावी आपातकालीन निकासी आदि की व्यवस्था होगी। इसमें उच्चतम सुरक्षा मानकों का पालन होगा, जिसमें भूकंपीय क्षेत्र-पांच की आवश्यकताएं भी शामिल है। राजनीति को परे रख दें, तो नया संसद भवन तथा उससे जुड़े सारे निर्माण भविष्य की संभावनाओं और उनसे पैदा होने वाली आवश्यकताओं को पूरा करेंगे और विविधता में एकता के चरित्र वाले भारत के वर्तमान एवं महान अतीत का एहसास कराएंगे।
सौजन्य - अमर उजाला।
0 comments:
Post a Comment