सुरेश सेठ
बीते वर्ष में एक ही दृढ़ता पूरे देश ने दिखाई कि कोरोना की महामारी के भीषण प्रकोप में न आत्मबल टूटा, न जूझने की भावना। यही जिजीविषा अब नये वर्ष में हमें दिखानी होगी। किसान आंदोलन से संतुष्ट करके धरती-पुत्र अपने खेतों को लौटें और गिरावट की राह पर चलता हुआ उद्योग और व्यवसाय क्षेत्र बल पकड़े, यही इस नये वर्ष की जिजीविषा की भावना होनी चाहिए। उम्मीद है कि देशभर में कोरोना से मुकाबले के लिए एक अभूतपूर्व टीकाकरण अभियान चलाया जा सकेगा ताकि जिंदगी अपने सामान्य धरातल पर आ सके।
यह विलोम बात है कि ब्रिटेन से नये स्ट्रेन वाला कोरोना भी विश्व के आठ देशों के साथ भारत में दस्तक दे रहा है। भारत में उतरे ब्रिटेन से आए कुछ यात्रियों में इसके चिन्ह पाए गए हैं लेकिन इस बात की दिलासा ले लें कि अब टीका आ गया है, जो परिचित कोरोना वायरस और उसके नये तेवर पर भी प्रभावी होगा और इस तरह देश खुलेगा, और नये वर्ष में एक नयी कार्य संस्कृति का जन्म होगा। भारत में न मांग की कमी है और न मेहनत की पर इस सुषुप्त मांग को जागृत करना है। मेहनत का उचित इस्तेमाल करना है।
इस समय स्थिति यह है कि चाहे शेयर बाजार ने, कोरोना के टीके की आमद से सामान्य जिंदगी हो जाने की उम्मीद में, फिर शिखर छू लिया है लेकिन आम निवेशक हतोत्साहित है। बाजार बेजार हैं और पूंजी अभी भी देश के नये निवेश स्थलों में आने से हिचकिचा रही है। इसलिए अब एक अजब जिजीविषा के साथ देश का हर नागरिक आगे बढ़े। नये वर्ष में पुराने आर्थिक रोग खत्म हो जाएं। विकास दर बढ़ेगी और इसके लिए सरकार, समाज और जनता को अतिरिक्त प्रयास करना होगा। यू.एन. की रिपोर्ट में कहा है कि दक्षिणी और दक्षिण-पश्चिमी एशिया विकास के प्रति बहुत लचीला है, इसलिए अगले वर्ष में भारत का विदेशी निवेश घटने के स्थान पर फिर बढ़ने लगेगा और अब इसके 20 प्रतिशत तक बढ़ने की उम्मीद है।
लेकिन यह भी सच है कि इसके साथ पिछले साल की लम्बी कोरोना पीड़ित अवधि में बेरोजगारी की दर बुलंदियों को छूने लगी। इसलिए अब नये वर्ष में केवल उत्पादन बढ़ाने से ही बात नहीं बनेगी, उपभोग या मांग को भी बढ़ाना होगा। तब अर्थव्यवस्था कोविड पूर्व दिनों में आ सकेगी जब लॉकडाउन नहीं हुआ था। इस लॉकडाउन में करोड़ों लोगों ने अपना रोजगार और जीने का सहारा खो दिया। इसीलिए अब आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना का नारा नये वर्ष में दिया गया है। सरकार ने घोषणा की है कि जून तक 50-60 लाख नयी नौकरियां औपचारिक क्षेत्र में पैदा कर दी जाएंगी। यह एक सही घोषणा है लेकिन इसके साथ ही अर्थशास्त्रियों का एक सुझाव भी है कि 140 करोड़ लोगों में सीधे 5000 रुपये तक के कैश वाउचर प्रति व्यक्ति बांट दिए जाएं और इससे पैदा होने वाले घाटे के बजट को 7 प्रतिशत ब्याज वाले 30 वर्षीय बांड्स को इश्यू करके पूरा किया जाए। इससे मांग सीधे बढ़ जाएगी।
लेकिन अगर यह न भी हो सके तो आम आदमी के रोजगार और आय के प्रति एक उदार दृष्टिकोण अपनाकर मांग बढ़ाई जा सकती है। सरकार की नीति यह होनी चाहिए कि किसानों को संतुष्ट करने के साथ सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों को भी आर्थिक प्रोत्साहन दिया जाए ताकि इस नये वर्ष में बेकारों को रोजगार मिले और छोटे उद्यमियों को कमाई। नये वर्ष की चुनौतियों के लिए जूझने के वास्ते एक नये दृष्टिबोध का विकास भी हो।
नया वर्ष शुरू हो गया। आम आदमी, निवेशक और उद्यमी और व्यवसायी अभी तक कोविड के सदमे से बाहर नहीं आए। कोविड के नये स्ट्रेन ने उन्हें और भी डरा दिया है। एक ही उम्मीद है कि कोरोना की दवाई मिल गई है, जो शीघ्र ही भारतीय अर्थव्यवस्था को निर्बाध गति से बढ़ने का मौका देगी। देश का माहौल सामान्य हो जाएगा। लेकिन सबसे पहला प्रश्न यह है कि अगर हम तरक्की के रास्ते पर चल निकलते हैं तो क्या उखड़ी हुई श्रम शक्ति जो अब नगरों से गांवों की ओर पनाह लेने के लिए चली गई है, वापस आ जाएगी या उसे समय लगेगा? क्योंकि इस श्रम शक्ति को उनके गांव-घरों के आसपास कृषि आधारित छोटे उद्योगों में खपा दिया जाए, यह एक लम्बे समय की कार्ययोजना हो सकती है, तात्कालिक नहीं। फिलहाल नये वर्ष का विजन यह होना चाहिए कि देश में जहां जो अवरुद्ध है, उसे फिर से गतिमान किया जाए। इसके लिए आर्थिक उदारता के साथ-साथ सरकारी प्रोत्साहन की बहुत आवश्यकता है। यह प्रोत्साहन उचित कर छूटों और उत्साही अनुदान राहतों से पैदा किया जा सकता है।
इस समय कोरोना वायरस के प्रभाव के कारण भारत के उत्पादकों के लिए बेचने की अंतर्राष्ट्रीय मंडियां सिकुड़ गई हैं और उत्पादन की प्राथमिकताएं भी बदल रही हैं। सामान्य जिंदगी को उचित पटरी पर लाने के लिए सबसे पहले तो भारत के आम आदमी के लिए रोजी-रोटी की उचित व्यवस्था करनी होगी। मंदी के बादल तो कोविड महामारी से पहले ही देश पर छाने लगे थे। इसलिए निवेशकों, उत्पादकों और किसानों का भरोसा उचित पूंजी आपूर्ति के साथ फिर से अर्थतंत्र के कारगर हो जाने में पैदा हो। जो क्षेत्र बंद पड़े हैं, उन्हें फिर से खोलना है। पर्यटन क्षेत्र, मनोरंजन क्षेत्र और उसके अंतर्गत चलने वाले सिनेमा, होटल, रेस्तरां फिर से अपनी लय में चलने लगें और साथ ही साथ नौजवानों में उच्छृंखलता और अवसाद को कम करने के लिए उन्हें फिर से शिक्षा की सार्थकता से आश्वस्त किया जाए।
जल्दी से जल्दी देश के शिक्षालयों को खोला जाए और नौजवानों की शक्ति के इस्तेमाल के सब उत्पादक रास्ते फिर शुरू हों। बेशक पिछले वर्ष की कोरोना महामारी ने देश के आर्थिक और सामाजिक मानचित्र को बदल दिया है। कीमतों ने अकल्पनीय ऊंचाइयों को छुआ है। बेकारी ने भी अपनी हदें पार कर दी हैं। जितनी जल्दी नये वर्ष में जिंदगी सामान्य हो सके, उतनी जल्दी भारत की अर्थव्यवस्था पर जो कुठाराघात हुआ है, उससे उभरा जा सकता है। इस दिशा में प्रधानमंत्री के दो नये नारे देश का आत्मनिर्भर बनना और दवाई के साथ कड़ाई भी बहुत कारगर हो सकते हैं लेकिन देखना होगा कि यह केवल नारे ही न रह जाएं।
लेखक साहित्यकार एवं पत्रकार हैं।
सौजन्य - दैनिक ट्रिब्यून।
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