कनिका दत्ता
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के शासन वाले दो राज्य हिंदुत्व के एजेंडे से मेल खाने वाले कानून लागू करने को लेकर बेहद ईमानदार रहे हैं। पहला राज्य उत्तर प्रदेश है जिसकी गिनती भारत में सबसे कम वृद्धि दर वाले राज्यों में होती है। दूसरा कर्नाटक है जो देश के सबसे तेज विकास वाले राज्यों में शामिल है। दोनों ही राज्य खुद को पार्टी की सामाजिक-आर्थिक आकांक्षाओं और अपने घोर भगवा सामाजिक एजेंडे के विरोधाभासों के बीच जूझते हुए पा सकते हैं।
उत्तर प्रदेश में हम 'लव जिहाद' के खिलाफ 'जबरन धर्मांतरण निषेध अध्यादेश' को लागू होते देख सकते हैं। हालांकि अन्य राज्यों ने भी अंतर-धार्मिक विवाहों पर रोक लगाई हुई है लेकिन उत्तर प्रदेश ने इस मानक को काफी ऊंचा उठा दिया है। उत्तर प्रदेश सरकार का यह अध्यादेश विवाह के बाद होने वाले धर्मांतरण को आपराधिक करार देते हुए गैर-जमानती अपराध बनाता है जिसमें दोषी को छह महीने से लेकर तीन साल की सजा का प्रावधान रखा गया है। यह आरोपी पर ही खुद को निर्दोष साबित करने का जिम्मा डालता है जो कि हमारी न्याय प्रणाली में बड़े बदलाव की तरह है क्योंकि अब तक अपराध साबित न होने तक किसी को भी निर्दोष माना जाता रहा है।
इस अध्यादेश ने पुलिस और हिंदू समुदाय को हिंदू महिला एवं मुस्लिम पुरुष के बीच होने वाली किसी भी शादी में हस्तक्षेप करने का पूर्णाधिकार दे दिया है। 'इंडियन एक्सप्रेस' की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अध्यादेश आने के बाद समूचे राज्य में गिरफ्तार 51 लोगों से 49 मुस्लिम पुरुष जेल में बंद हैं। यहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के श्रम कानूनों को शिथिल कर आर्थिक वृद्धि तेज करने और औद्योगिक प्रस्तावों के अनुमोदन के लिए सिंगल-विंडो व्यवस्था लागू करने के ऐलान का भी जिक्र बनता है। उनकी नजर विनिर्माण क्षेत्र की नौकरियों पर है जहां बड़ी संख्या में लोग काम कर सकते हैं लेकिन वहां पर सामाजिक पूर्वग्रहों के चलते महिलाओं को मौके मिलने की संभावना सापेक्षिक रूप से कम होती है। लेकिन तेज आर्थिक क्रियाकलापों से संबद्ध गतिविधियों में भी विस्तार होता जिससे महिलाओं के लिए भी रोजगार के अवसर बढ़ सकते हैं। गुरुग्राम महिलाओं के लिए गुणक प्रभाव का एक बढिय़ा उदाहरण है जहां न केवल आईटी एवं आईटीईएस क्षेत्र बल्कि लेखा, यात्रा, खानपान, घर की साज-संभाल, ब्यूटी पार्लर एवं संबंधित सेवाओं में भी महिलाओं के लिए अवसर बढ़े हैं।
लिहाजा उत्तर प्रदेश में विनिर्माण के विस्तार का मतलब होगा कि अधिक महिलाओं को कर्मचारी या कारोबारी के तौर पर आय के मौके मिलेंगे जो उन्हें सामाजिक एवं आर्थिक स्वतंत्रता की दिशा में बढ़ा एक कदम होगा। लेकिन कामकाजी दुनिया में महिलाएं दूसरे धर्मों एवं जातियों के पुरुषों से भी मिलेंगी और वहां मां-बाप की बंदिशें भी नहीं होंगी। इस संपर्क से अंतर्धार्मिक एवं अंतर्जातीय शादियों को भी बढ़ावा मिल सकता है। वास्तव में, उदारीकरण के बाद ऐसी शादियों की संख्या में तेजी आई भी है।
उत्तर प्रदेश की हिंदू महिलाओं को इस स्थिति से बचाने का इकलौता तरीका यही है कि उन्हें दूसरे पुरुषों की नजर से बचाने के लिए घर पर ही रखा जाए। वैसे उत्तर प्रदेश की अधिकतर महिलाएं घरों पर ही रहती हैं। कोविड के पहले कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी शहरी एवं ग्रामीण दोनों जगह 10 फीसदी से कम थी। महामारी का प्रकोप फैलने के बाद यह गैर-बराबरी बढ़ी ही है।
भाजपा ने लोकसभा चुनाव के समय अपने घोषणापत्र में कहा था कि वह 'महिलाओं को राष्ट्र की प्रगति एवं समृद्धि में समान भागीदार एवं समान लाभार्थी बनाने को प्रतिबद्ध है।' पार्टी ने अगले पांच वर्षों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए रोडमैप लाने की भी बात कही थी। इसके अलावा भाजपा ने महिलाओं को बेहतर रोजगार अवसर देने के लिए उद्योगों एवं कंपनियों को प्रोत्साहित करने का वादा भी किया था। अगर हम मान लें कि आदित्यनाथ भी भाजपा के इस एजेंडे के सहभागी हैं तो उन्हें इसका अनुसरण करना होगा। लेकिन जब तक समाज में प्रतिकूल एवं एक्टिविस्ट रूप में 'लव जिहाद' की पैठ बनी रहती है तब तक हिंदू अभिभावक अपनी बेटियों को कामकाजी दुनिया में जाने के लिए शायद ही प्रोत्साहित होंगे क्योंकि वहां पर मुस्लिम पुरुषों के साथ संपर्क के जोखिम भी होंगे। यह देखना होगा कि उत्तर प्रदेश रोजगार संभावनाओं को पुरुषों तक सीमित रखकर कितनी तेजी से तरक्की कर सकता है?
उधर कर्नाटक ने पशु-वध निषेध एवं संरक्षण विधेयक पारित किया है जो दूसरे भाजपा-शासित राज्यों में बने कानूनों से अधिक सख्त है। यह गायों, बैलों एवं बछड़ों के अलावा 13 साल से कम आयु वाली भैंसों के वध को गैर-कानूनी बताता है और दोषी शख्स को 3-7 साल तक की सजा हो सकती है। पुलिस को संदेह के आधार पर भी तलाशी लेने का अधिकार दिया गया है।
हम उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं हरियाणा में गोवध पर लगाई गई पाबंदी के घातक नतीजे पहले ही देख चुके हैं। आवारा मवेशियों ने खड़ी फसलें बरबाद कर दी। दुग्ध उत्पादन पर पड़े दीर्घकालिक असर को जल्द ही महसूस किया जाएगा। लेकिन मुख्यमंत्री बी एस येदियुरप्पा ने सकल राज्य घरेलू उत्पाद में कृषि हिस्सेदारी को 16 फीसदी से बढ़ाकर 30 फीसदी करने की बात कही है। कृषि आय में डेरी कारोबार की अहम भूमिका होने से यह देख पाना मुश्किल है कि दूध नहीं देने वाली गायों एवं भैंसों को वध के लिए नहीं बेचने पर येदियुरप्पा इस लक्ष्य को किस तरह हासिल कर पाएंगे? हाल ही में उत्तर कर्नाटक के गन्ना किसानों को बेहतर प्रतिफल के लिए डेरी व्यवसाय अपनाने को प्रोत्साहित किया गया था। लेकिन मौजूदा हालात में इसकी संभावना नहीं है। इस तरह मुख्यमंत्री और कृषि आय दोगुना करने के भाजपा के वादे को भी पूरा नहीं किया जा सकेगा।
आर्थिक प्रगति के लिए चौतरफा उदारीकरण की दरकार होती है। लेकिन लव जिहाद से लेकर आत्म-निर्भर अभियान तक हिंदुत्ववादी ताकतों को यह बुनियादी सच्चाई समझ में आनी अभी बाकी है।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
0 comments:
Post a Comment