लगातार घटते रोजगार और सुधार की धीमी रफ्तार (बिजनेस स्टैंडर्ड)

महेश व्यास  

सरकार ने अनुमान जताया है कि चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में अर्थव्यवस्था की स्थिति में सुधार आएगा। पहली छमाही में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) पिछले वर्ष की समान अवधि के जीडीपी की तुलना में 15.7 फीसदी कम हुआ। सरकार को आशा है कि दूसरी छमाही में जीडीपी में उतनी गिरावट नहीं आएगी। परंतु तीसरी तिमाही तक के रोजगार के आंकड़े इस आशावाद का समर्थन नहीं करते।


पहली तिमाही में जब अर्थव्यवस्था में 23.9 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई थी तब रोजगार में 18.4 प्रतिशत कमी आई थी। ये दोनों आंकड़े सालाना आधार पर की गई तुलना के हैं। दूसरी तिमाही में ऐसी ही तुलना के आंकड़े देखें तो अर्थव्यवस्था में 7.7 प्रतिशत की गिरावट आई और रोजगार 2.6 प्रतिशत कम हुए। तीसरी तिमाही में रोजगार में 2.8 प्रतिशत की गिरावट आई जो और भी अधिक थी।


तीसरी तिमाही में आर्थिक स्थिति में सुधार की प्रक्रिया या तो ठहर गई या फिर रोजगार में सुधार नजर आना बंद हो गया। मई और जून महीने में मासिक आधार पर रोजगार विस्तार के आंकड़े जहां बहुत अच्छी स्थिति में थे वहीं जुलाई, अगस्त और सितंबर में इनमें धीमापन आया और इसके बाद इनमें हर महीने गिरावट आई। दिसंबर 2020 में रोजगार की दर दिसंबर 2019 की तुलना में 4.2 प्रतिशत कम थी। सुधार की प्रक्रिया पूरा होने के पहले ही रोजगार में ठहराव आ गया था।


दिसंबर 2020 के अंत तक रोजगार का आंकड़ा सन 2019-20 की तुलना में 1.47 करोड़ कम था। परंतु यह गिरावट कहानी का केवल आधा हिस्सा है। इस गिरावट के घटक भी उतने ही चिंतित करने वाले हैं जितनी कि स्वयं यह गिरावट।


सन 2019-20 में कुल रोजगार में शहरी भारत की हिस्सेदारी 32 प्रतिशत थी लेकिन सन 2020-21 में दिसंबर 2020 तक रोजगार में जो कमी आई उसमें शहरी भारत ने 34 प्रतिशत रोजगार गंवाए। शहरी भारत बेहतर रोजगार मुहैया कराता है और नुकसान में इसकी अहम हिस्सेदारी सुधार की प्रक्रिया के लिए शुभ संकेत नहीं लाती।


कुल रोजगार में महिलाओं की हिस्सेदारी बमुश्किल 11 फीसदी है लेकिन रोजगार गंवाने वालों में उनकी हिस्सेदारी 52 प्रतिशत रही। भारत की वृद्धि दर में जो तेजी आई है उसका काफी हिस्सा देश की श्रम शक्ति में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी पर निर्भर करता है। परंतु इसके बावजूद आर्थिक झटके उन पर अधिक बुरा असर डालते हैं। नोटबंदी के समय भी महिलाओं को बहुत अधिक तादाद में रोजगार गंवाने पड़े थे और अब उन्हें लॉकडाउन के चलते एक बार फिर उसी तरह रोजगार की हानि उठानी पड़ी है। रोजगार गंवाने वालों में अगली श्रेणी थी युवा अनुबंधित श्रमिकों की। दिसंबर 2020 तक 40 से कम उम्र के लोगों को बहुत बड़े पैमाने पर रोजगार गंवाने पड़े। जबकि 40 से ऊपर की उम्र के रोजगार पाने वालों की तादाद में मामूली इजाफा हुआ।


हालांकि देश की काम करने की उम्र की आबादी का निचले स्तर पर विस्तार हुआ लेकिन उसकी श्रम शक्ति में ऐसा विस्तार नहीं हुआ। श्रम करने लायक उम्र के 14 प्रतिशत युवा 15 से 19 की उम्र के हैं लेकिन केवल एक फीसदी ही वास्तव में श्रम शक्ति में शामिल हैं। उनमें से अधिकांश अभी पढ़ाई कर रहे होंगे। लेकिन श्रम शक्ति का 20 फीसदी हिस्सा 20 से 30 उम्र का है। रोजगारशुदा लोगों में उनकी हिस्सेदारी 19 प्रतिशत है। सबसे बुरी बात यह कि दिसंबर 2020 में रोजगार गंवाने वालों में से 80 फीसदी यही 20 के आसपास की उम्र के हैं।


श्रम शक्ति में उन लोगों की हिस्सेदारी 17 प्रतिशत है जो उम्र के तीसरे दशक में हैं। कुल काम कर रहे लोगों में उनकी हिस्सेदारी 23 प्रतिशत है। 20 की उम्र के युवा श्रम शक्ति में अपनी उपलब्धता के अनुपात में रोजगार पाने में नाकाम रहे हैं और यह सिलसिला गत एक दशक से चल रहा है। चूंकि आज जो उम्र के तीसरे दशक में हैं एक दशक पहले वे दूसरे दशक में थे इसलिए कहा जा सकता है कि श्रम शक्ति में हिस्सेदारी की तुलना में रोजगार में उनकी हिस्सेदारी तुलनात्मक रूप से अधिक रही होगी। यह बात सन 2019-20 के 20 की उम्र के लोगों के बारे में सच नहीं है। लॉकडाउन ने 30 की उम्र के लोगों को भी प्रभावित किया है। सन 2019-20 में कुल रोजगारशुदा लोगों में उनकी हिस्सेदारी एक चौथाई से भी कम थी लेकिन दिसंबर 2020 तक रोजगार गंवाने वालों में 48 फीसदी इसी उम्र के थे।


चालीस से अधिक उम्र के समूहों में रोजगार प्राप्त करने वालों की तादाद बढ़ी। सन 2019-20 में जहां रोजगार पाने वालों में इस उम्र के लोक 56 प्रतिशत थे, वहीं दिसंबर 2020 तक इनकी तादाद बढ़कर 60 प्रतिशत हो गई। अपेक्षाकृत युवाओं की हिस्सेदारी कम हुई। श्रम शक्ति का यूं उम्रदराज होना वर्ष की दूसरी छमाही में सुधार की दृष्टि से अच्छा संकेत नहीं है।


वर्ष 2019-20 में कुल रोजगारशुदा लोगों में स्नातकों और स्नातकोत्तरों की तादाद 13 प्रतिशत थी जबकि दिसंबर 2020 में रोजगार गंवा चुके लोगों में से 65 प्रतिशत इसी श्रेणी के थे। जिन 1.47 करोड़ लोगों ने रोजगार गंवाया उनमें 95 लाख स्नातक और स्नातकोत्तर थे। सन 2019-20 में कुल रोजगार में 21 फीसदी के हिस्सेदार वेतनभोगी कर्मचारियों में से 71 फीसदी ने 2020 में रोजगार गंवा दिया।


सन 2019-20 की तुलना में दिसंबर 2020 में यानी लॉकडाउन लागू होने के नौ महीने बाद करीब 1.5 करोड़ लोग रोजगार गंवा चुके थे। जिन लोगों ने रोजगार गंवाया उनमें से अधिकांश शहरी इलाकों में रहने वाले थे। इनमें अधिकांश महिलाएं, युवा स्नातक और स्नातकोत्तर तथा वेतनभोगी थे। दिसंबर 2020 में भारतीय श्रम शक्ति में केवल मात्रात्मक गिरावट नहीं आई बल्कि उनमें गुणात्मक रूप से भी कमी आई। इन तथ्यों के मद्देनजर कह सकते हैं कि रोजगार के मोर्चे पर स्थिति ठीक नहीं है। ऐसे में तेज गिरावट के बाद तेज सुधार की बातें करना काफी सतही प्रतीत होता है।

सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।

Share on Google Plus

About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

This is a short description in the author block about the author. You edit it by entering text in the "Biographical Info" field in the user admin panel.
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments:

Post a Comment