ऐसे तो इक्कीस न बनना भाई ( दैनिक ट्रिब्यून)

सहीराम

इक्कीसजी आपका स्वागत है। अगर स्वागत नहीं भी होता तो भी आप पधार ही जाते। भाई आप समय हैं। आप किसी के रोके थोड़े ही रुकने वाले हैं कि किसी ने बैरीकेड खड़े कर दिए, पानी की बौछार कर दी, लाठीचार्ज कर दिया, तमाम नकारात्मक विश्लेषण देकर बदनाम कर दिया और आप रुक गए। आपको तो आना ही था। रुके तो खैर किसान भी नहीं, जिनके खिलाफ यह सब किया गया, कहा गया। वे भी दिल्ली पहुंच ही गए और सीमाओं पर आकर डट गए।


लेकिन जिस कड़कड़ाती ठंड में, शीत लहर में वे खुले आसमान के नीचे बैठे हैं, उन पर तुम सरकार की तरह बेरुखी दिखाना। हालांकि, तुम कोई सरकार नहीं हो कि तुम से शिकायत की जाए कि भैया उनका पिज्जा तो तुम्हें दिख गया, उनकी रजाइयां तो तुम्हें दिख गयीं, लंगर का भोज तो तुम्हें दिख गया, पर कड़कड़ाती ठंड में किसानों की मौत क्यों न दिखी, आत्महत्या का दर्द क्यों न दिखा, जमीन छिन जाने पर उनका शंकामय भविष्य क्यों न दिखा। सरकार कहती है कि वह संवेदनशील है। खैर, इतने संवेदनशील तुम न बनना कि कहने लगो कि ठंड में ठिठुरना तो उनका शौक है।


भैया तुम इक्कीस हो तो ऐसा इक्कीस न बनना कि जैसे बीस ने जुल्म ढाए कि उससे भी इक्कीस जुल्म तुम ढहाने लगो। वे जुल्म तुम्हें याद दिलाना उचित रहेगा जो बीस ने लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों ने झेले। बेचारे पुलिस की दाब-धौंस, मारपीट और अपमान सहते हुए सैकड़ों मील पैदल चलते गांवों में पहुंच थे। मकान मालिक से लेकर पुलिस तथा अधिकारी तक उन्हें दुत्कार रहे थे, जब अच्छे भले खाने-कमाने वाले लोग कतारों में खाना मांगकर खा रहे थे। ऐसा जुल्म करने में कहीं इक्कीस मत बन जाना। और भैया तुम सरकार की तरह आपदा को अवसर में बदलने की कोशिश भी मत करना। वैसे भी न तो तुम्हें सरकारी कंपनियां बेचनी हैं, न मालिकों के हक में मजदूरों का पक्ष लेने वाले कानून बदलने हैं, न निजीकरण करना है और न ही किसानों का खेती-किसानी से मोह भंग करवाने का तुम्हारा कोई इरादा होगा क्योंकि तुम कोई सरकार नहीं हो।


फिर भी यह गुजारिश करना उचित रहेगा कि मजदूरों को ऐसी स्थिति में मत डालना कि उन्हें पेट भरने के लिए आठ की बजाय बारह घंटे काम करना पड़े, किसानों को अपने हकों के लिए महीनों तक ठंड के बावजूद सड़कों पर सोना पड़े, युवाओं को बेरोजगार रहना पड़े, छात्रों से इतनी ज्यादा फीस वसूली जाए कि वे पढ़ाई छोड़ने को ही मजबूर हो जाएं। तुम इक्कीस हो तो स्नेहशील माता-पिता जैसे इक्कीस होना, कल्याणकारी राज की तरह इक्कीस होना और गरीब को पालने वाले ईश्वर की तरह इक्कीस होना।

सौजन्य - दैनिक ट्रिब्यून।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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