दिसंबर में श्रम बाजारों ने किया निराश (बिजनेस स्टैंडर्ड)

महेश व्यास 

दिसंबर 2020 में बेरोजगारी दर तीव्र गति से बढ़कर 9.1 फीसदी के स्तर पर पहुंच गई। जून में लॉकडाउन के बाद हालात में सुधार की प्रक्रिया शुरू हुई थी। तब से अब तक की अवधि में यह सर्वाधिक बेरोजगारी दर है। यह दर नवंबर में दर्ज की गई 6.5 फीसदी की बेरोजगारी दर से काफी अधिक है। दिसंबर महीने में साप्ताहिक अनुमान में भी इस दर में लगातार इजाफा नजर आया था। छह दिसंबर को समाप्त सप्ताह में बेरोजगारी दर 8.4 फीसदी थी। बाद के दो सप्ताहों में यह दर क्रमश: 9.9 फीसदी और 10.1 फीसदी रही और अंतिम सप्ताह में 9.5 फीसदी की दर दर्ज की गई।

दिक्कत की बात यह है कि बेरोजगारी दर में यह इजाफा उस समय हुआ है जब मुद्रास्फीति में भी तेजी दर्ज की जा रही है। हाल के महीनों में 7 फीसदी की मुद्रास्फीति दर दर्ज की गई। इतना ही नहीं बेरोजगारी में यह इजाफा सुधार की प्रक्रिया को लेकर भी चिंता पैदा करता है।


दिसंबर में बेरोजगारी दर इसलिए भी बढ़ी कि श्रम भागीदारी दर (एलपीआर) में आंशिक सुधार देखने को मिला। नवंबर में यह दर गिरकर 40 फीसदी रह गई थी जबकि उससे पहले के दो महीनों में यह 40.7 फीसदी थी। सुधार की प्रक्रिया आरंभ होने के बाद यह सबसे कम एलपीआर थी और इसके कारण श्रम बाजारों पर दबाव कम हुआ था क्योंकि कम लोग रोजगार की तलाश कर रहे थे। यही कारण है कि नवंबर में बेरोजगारी दर घटकर 6.5 फीसदी रह गई थी। दिसंबर में एलपीआर में सुधार हुआ और यह 40.6 फीसदी हो गई। ऐसे लोगों की तादाद बढ़ गई है। श्रम शक्ति का आकार बढ़ा और यह नवंबर के 42.1 करोड़ से बढ़कर दिसंबर में 42.7 करोड़ हो गई। परंतु श्रम बाजार 60 लाख श्रमिकों की बढ़ोतरी के लिए तैयार नहीं था। जाहिर है वे बेरोजगार रह गए।


दिसंबर में बेरोजगारी दर में इजाफे की प्रमुख वजह यह थी कि कृषि क्षेत्र श्रमिकों की बढ़ी हुई तादाद को समायोजित कर पाने में नाकाम रहा। रोजगार गंवाने वाले लोगों में से कई के लिए कृषि ही सहारा रह गया। परंतु दिसंबर ऐसा महीना नहीं है जब खेती में अधिक लोगों की आवश्यकता हो। बल्कि यह वह महीना है जब खेती में काम करने वालों की तादाद कम होती है। सन 2016 के बाद के पांच वर्षों में हर वर्ष दिसंबर में खेती के काम में लगे लोगों की तादाद नवंबर की तुलना में कम हुई। दिसंबर 2019 में एक करोड़ लोग खेती के काम से कम हुए जबकि दिसंबर 2020 में यह तादाद 98 लाख रही।


यही कारण है कि दिसंबर 2020 में बेरोजगारों की तादाद बढ़कर 3.87 करोड़ हो गई जबकि नवंबर में यह 2.74 करोड़ थी। 1.13 करोड़ लोगों का यह इजाफा बहुत अधिक था। यह भारी इजाफा लॉकडाउन के पहले की तुलना में भी ज्यादा रहा। सन 2019-20 में औसत बेरोजगारी का आंकड़ा 3.33 करोड़ था। सर्वाधिक बेरोजगारी मार्च में 3.79 करोड़ दर्ज की गई जो इससे पिछले महीने 3.6 करोड़ से कम थी। श्रम शक्ति में इजाफा, बेरोजगारी में बढ़ोतरी के लिए आंशिक रूप से ही उत्तरदायी था। दिसंबर में रोजगारशुदा लोगों में भी कमी आई। आंकड़े बताते हैं कि एक माह में 48 लाख लोगों ने रोजगार गंवाया और नवंबर के 39.36 करोड़ रोजगारशुदा लोगों की तुलना में दिसंबर में इनकी तादाद 38.88 करोड़ रह गई।


दिसंबर के तीसरे सप्ताह के अंत तक हमने अनुमान लगाया था कि दिसंबर में 3.94 करोड़ लोगों के पास रोजगार होंगे। लेकिन महीने के अंतिम 10 दिन हमारे अनुमान से बुरे निकले। गत 27 सितंबर को समाप्त सप्ताह में बेरोजगारी दर 10 फीसदी से अधिक बढ़ी।


दिसंबर में कुल रोजगार घटकर 3.69 करोड़ रह गए। श्रम भागीदारी में इजाफा, रोजगार दर में इजाफा नहीं कर सका क्योंकि बेरोजगारी दर बढ़ी। आखिरकार कामगार उम्र की आबादी के एक छोटे हिस्से को दिसंबर में रोजगार मिला।


रोजगार में कमी के लिए जहां प्रमुख तौर पर कृषि क्षेत्र में श्रमिकों का काम कम होना वजह था वहीं यह भी सच है कि शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में श्रम बाजार की स्थिति खराब हुई है। दोनों जगहों पर एलपीआर में इजाफा हुआ और बेरोजगारी दर भी बढ़ी।


शहरी भारत में एलपीआर 37.1 प्रतिशत से बढ़कर 37.7 प्रतिशत हो गई और इसकी बेरोजगारी दर 7.1 फीसदी से बढ़कर 8.8 फीसदी हो गई। इतना ही नहीं उसकी रोजगार दर 34.5 फीसदी से घटकर 34.4 फीसदी रह गई। शहरी इलाकों में रोजगार 12.25 करोड़ से घटकर 12.24 करोड़ रह गए और बेरोजगारों की तादाद 93 लाख से बढ़कर 1.19 करोड़ हो गई।


ग्रामीण भारत के एलपीआर में इजाफा हुआ और यह 41.5 से बढ़कर 42 फीसदी हो गया। परंतु बेरोजगारी भी नाटकीय रूप से बढ़ी और वह 6.3 फीसदी से उछलकर 9.2 फीसदी हो गई। इसके परिणामस्वरूप ग्रामीण भारत में रोजगार दर 38.9 फीसदी से कम होकर 38.2 फीसदी रह गई। रोजगार की तादाद भी घटी और वे 27.1 करोड़ से कम होकर 26.6 करोड़ रह गए। वहीं बेरोजगार 1.8 करोड़ से बढ़कर 2.68 करोड़ हो गए।


श्रम बाजार परिस्थितियों में यह व्यापक गिरावट सुधार की प्रक्रिया को लेकर भी चिंता पैदा करती है। यह किसी एक क्षेत्र की समस्या नहीं नजर आती। यह गिरावट सार्वभौमिक नजर आ रही है। सितंबर में 39.76 करोड़ लोग रोजगार शुदा थे लेकिन तब से रोजगार की हालत माह दर माह खराब होती जा रही है। यही कारण है कि रोगजार न केवल निरंतर एक वर्ष पहले की तुलना में कमजोर स्तर पर रहा है बल्कि यह दो वर्ष पहले की तुलना में भी कम हुआ है। नवंबर और दिसंबर 2020 में रोजगार की तादाद नवंबर-दिसंबर 2019 की तुलना में तो कम रही ही, यह नवंबर-दिसंबर 2018 की तुलना में भी कम रही।


(लेखक सीएमआईई के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी हैं)

सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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