मार्च के महीने में कोरोना का तेजी से फैलाव देश की चिंता बढ़ाने वाला है। बीते साल इन्हीं दिनों कोरोना संक्रमण में तेजी आई थी और देश ने दुनिया का सबसे सख्त लॉकडाउन झेला था, जिसकी टीस अभी भी बाकी है। उस सख्ती से हमारी अर्थव्यवस्था की जो गत बनी, वह अभी भी सामान्य होने के लिये हिचकोले खा रही है। यह ठीक है कि कोरोना संक्रमण में तेजी का असर पूरी दुनिया में देखा जा रहा है, लेकिन चिंता की बात यह है कि कोरोना वायरस लगातार रूपांतरण करते हुए हमारी चिंता बढ़ा रहा है। देश के 18 राज्यों में कोरोना वायरस का एक डबल म्यूटेंट वैरिएंट मिला है जो इम्यून सिस्टम से बचकर तेजी से संक्रमण को बढ़ाता है। अभी इस बात का अध्ययन सामने नहीं आया है कि हाल ही में कोरोना संक्रमण में तेजी क्या इसी वैरिएंट की वजह से है। बताया जाता है कि स्वास्थ्य मंत्रालय की दस नेशनल लैब्स एक समूह ने अलग-अलग वैरिएंट की जीनोम सिक्वेंसिंग के बाद चौंकाने वाले खुलासे किये हैं। देश में एकत्र दस हजार से अधिक सैंपल का टेस्ट करने के बाद 771 अलग-अलग वैरिएंट को पकड़ा है, जिसमें 736 ब्रिटेन कोरोना वायरस वाले वैरिएंट हैं, वहीं 34 सैंपल साउथ अफ्रीका और एक सैंपल ब्राजील वाला है। ये सैंपल उन लोगों के थे जो विदेश यात्रा करके आये या लोग उनके संपर्क में आये। लेकिन यह वैरिएंट पिछले साल के वायरस के मुकाबले तेजी से म्यूटेट कर रहा है। इन पर इम्यूनिटी का असर भी नहीं हो रहा है। हालांकि, स्वास्थ्य मंत्रालय कह रहा है कि स्वेदशी वैक्सीन कोवैक्सीन नये वैरिएंट में भी कामयाब है। देश में रोज सामने आने वाले संक्रमण के मामले पचास हजार के करीब पहुंचना हमारी चिंता का विषय होना चाहिए, जिसको लेकर प्रभावित राज्यों में बचाव के उपाय सख्त किये गये हैं। पंजाब समेत कई राज्यों में रात का कर्फ्यू लगाया गया है। निस्संदेह, ऐसे हालात में बचाव ही बड़े उपचार की भूमिका निभा सकता है।
निस्संदेह, कोरोना संक्रमण में तेजी आई है, मगर सकारात्मक पक्ष यह है कि अब हमारे पास इसके उपचार के लिये कई तरह की वैक्सीन उपलब्ध हैं। वे भी स्वदेश निर्मित हैं। इसके बावजूद हमें पिछले साल सख्त लॉकडाउन की दिक्कतों और करोड़ों लोगों के रोजी-रोटी के संकट को महसूस करना चाहिए। तभी महाराष्ट्र सरकार ने राज्य में संक्रमण की विकट स्थिति को देखते हुए चेताया है कि लोगों को यदि दूसरे लॉकडाउन से बचना है तो कोविड-19 से जुड़े प्रोटोकॉल का पालन करना चाहिए। कमोबेश यही स्थिति देश के अन्य राज्यों में भी है, जिसमें मास्क पहनना, सामाजिक दूरी, बार-बार हाथ धोना आदि शामिल हैं। वैक्सीन भले ही हमें भीतर से मजबूती देती है, लेकिन बाहरी सावधानी हमें उसके बावजूद बनाये रखनी है। यदि लोग सामाजिक जिम्मेदारी को नहीं निभाते तो कानूनन उन्हें ऐसा करने के लिये बाध्य करना चाहिए। निस्संदेह, चुनावी राज्यों में स्थिति विकट हो सकती है। केरल व तमिलनाडु में संक्रमण में तेजी चिंता बढ़ाने वाली है। भले ही चुनाव है लेकिन सार्वजनिक आयोजनों में अधिक सावधानी की जरूरत है और राजनीतिक दल देश को मुश्किल स्थिति डालने वाली स्थिति से बचने के लिये अपने समर्थकों को प्रेरित करें। अन्यथा भारत मुश्किलों से हासिल सफलता को गंवा भी सकता है। सरकार ने 45 साल से अधिक उम्र के सामान्य लोगों को एक अप्रैल से टीका लगाने की अनुमति देकर सार्थक पहल की है। सरकार को देश के कामकाजी वर्ग को प्राथमिकता के आधार पर वैक्सीन देनी चाहिए ताकि देश की अर्थव्यवस्था कोरोना संकट के प्रभावों से उबर सके। तभी हम दूसरी लहर के संकट का मजबूती से मुकाबला कर सकेंगे। निस्संदेह एक साल बाद फिर हम उसी मोड़ पर आ गये हैं, जहां तमाम तरह की चिंताएं थीं। यह उत्साहवर्धक जरूर है कि हम पांच करोड़ लोगों को टीके की पहली डोज दे चुके हैं। मगर सवा अरब के देश में यह संख्या कम है। ऐसे में कोविड नियमों का सख्ती से पालन करना ही सबसे बड़ी देशभक्ति है।
सौजन्य - दैनिक ट्रिब्यून।
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