क्वाड शिखर बैठक (नवभारत टाइम्स)

अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत- इन चारों देशों के सत्ताशीर्ष की शुक्रवार को हुई वर्चुअल बैठक को दुनिया के राजनयिक हलकों में एक गंभीर परिघटना के रूप में दर्ज किया गया है। क्वाड नाम से चर्चित इस गठबंधन को चीन विरोधी व्यापक गोलबंदी की धुरी माना जा रहा है। एक अनौपचारिक रणनीतिक मंच के रूप में यह 2007 से कायम है लेकिन इसकी शिखर बैठक पहली बार ही आयोजित हुई है और यही क्वाड की वास्तविक प्राण प्रतिष्ठा है।


यह अकारण नहीं है कि चीन ने इस बैठक को लेकर खुलकर अपनी आशंकाएं जाहिर की हैं। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने बैठक से ठीक पहले इस विषय में साफ-साफ कहा कि विभिन्न देशों के बीच विचार-विमर्श और सहयोग की प्रक्रिया चलती रहती है लेकिन इसका मकसद आपसी विश्वास और समझदारी बढ़ाने का होना चाहिए, किसी तीसरे पक्ष को निशाना बनाने या उसके हितों को नुकसान पहुंचाने का नहीं। जाहिर है, चीन को यह कहने की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि सीमावर्ती क्षेत्रों में उसके आक्रामक रुख से ये सभी देश किसी न किसी स्तर पर आहत या आशंकित महसूस करते रहे हैं।


लेकिन ध्यान देने की बात है कि चीन के बयान की यहां अनदेखी नहीं की गई। क्वाड शिखर बैठक में इस बात का पूरा ध्यान रखा गया कि उसको किसी खास देश के खिलाफ न माना जाए। बातचीत का अजेंडा कोविड वैक्सीन, क्लाइमेट चेंज और नई तकनीकों से संभावित बदलाव जैसे मुद्दों पर ही केंद्रित रखा गया। एशिया-प्रशांत क्षेत्र का जिक्र आया भी तो बहुत खुले ढंग से। साफ है कि क्वाड देशों ने इस शिखर बैठक के जरिए अभी सिर्फ एक संभावना की ओर संकेत किया है। इन चारों देशों की अपनी अलग प्राथमिकताएं हैं और उनके आपसी सहयोग की एक सीमा है।


इसी महीने की 18 तारीख को अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन अलास्का में चीनी विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात करने वाले हैं। इस मीटिंग के प्रोफाइल का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसमें दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार भी मौजूद रहेंगे। नए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के शपथ ग्रहण के बाद दोनों देशों के आला सरकारी प्रतिनिधियों की यह पहली सीधी मुलाकात है। पिछले तीन वर्षों से हम चीन और अमेरिका में हर मोर्चे पर टकराव ही देखते आ रहे हैं। दोनों देशों के आपसी रिश्तों के अगले दौर का खाका काफी कुछ इस बैठक से ही स्पष्ट होगा।



दूसरी तरफ इसी तारीख, 18 मार्च को मॉस्को में एक बैठक रूस ने रखी है जिसमें अमेरिका, रूस, चीन, ईरान और पाकिस्तान के प्रतिनिधि अफगानिस्तान सरकार और तालिबान के प्रतिनिधियों के साथ बैठकर इस देश का भविष्य तय करेंगे। पिछले पंद्रह सालों में भारत ने अफगानिस्तान में अरबों रुपये लगाए हैं और कई बेशकीमती शहादतें दी हैं, फिर भी इस बैठक के लिए उसको पूछा नहीं गया। इन दोनों बैठकों का नतीजा जो भी निकले, इनके होने भर से एक बात साफ है कि हमारे राष्ट्रीय हित किसी और देश के साथ नत्थी होकर नहीं सधने वाले हैं।


सौजन्य - नवभारत टाइम्स।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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