जब देश के ज्यादातर हिस्सों में कोरोना का प्रकोप कम होता दिख रहा है, उस समय महाराष्ट्र में संक्रमण के मामलों में बढ़ोतरी एक नई चिंता बन कर उभरी है। हालत यह है कि नागपुर शहर में पंद्रह से इक्कीस मार्च के बीच पूर्णबंदी की घोषणा करनी पड़ी। हालांकि इस दौरान लोगों को जरूरी वस्तुएं और आवश्यक सेवाएं मिलती रहेंगी, लेकिन पूर्णबंदी लागू करना अपने आप में यह बताने के लिए काफी है कि कोरोना संक्रमण की स्थिति वहां क्या है। इसके अलावा, सरकार बढ़ते मामलों के मद्देनजर राज्य के अमरावती, अकोला और यवतमाल में भी फिर से पूर्णबंदी पर विचार कर रही है।
जब से पूर्णबंदी में क्रमश: राहत मिलनी शुरू हुई थी, तब ये हिदायतें साथ में थीं कि अभी कोरोना का खतरा कम नहीं हुआ है, इसलिए इससे बचाव के सारे उपायों को लेकर हर वक्त सावधानी बरती जाए। वायरस के फैलाव की मुख्य वजह मास्क पहनने में लापरवाही या फिर आपस में दूरी के नियम का पालन नहीं करना है। लेकिन अफसोस की बात है कि आम लोगों ने बंदी में छूट को हर तरह की राहत के रूप में देख लिया और संक्रमण से बचाव के उपायों के तमाम नियम-कायदों की अनदेखी करनी शुरू कर दी। यह लापरवाही आम लोगों से लेकर सरकारी तंत्र तक में मौजूद है। संक्रमितों की निगरानी में कोताही, शादी समारोहों में नियमों के उल्लंघन, चुनाव प्रचार के दौरान बेलगाम जमा हुई भीड़, मौसम में बदलाव जैसी वजहों से भी संक्रमण की दर बढ़ी है।
गौरतलब है कि केंद्र सरकार की एक उच्च स्तरीय टीम ने अपने आकलन में कई तरह की खामियां दर्ज की हैं। केंद्रीय टीम की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक महाराष्ट्र में कोरोना वायरस से संक्रमित गंभीर मरीजों का उपचार जूनियर डॉक्टरों के भरोसे किया जा रहा है। वरिष्ठ डॉक्टर कोविड-19 के मरीजों को देखने तक नहीं आ रहे हैं। नागपुर के कुछ अस्पतालों का जिक्र करते हुए टीम ने कहा कि राज्य को चिकित्सीय प्रबंधन पर तत्काल काम करना चाहिए और हर अस्पताल में मृत्यु आॅडिट को जरूरी बनाया जाना चाहिए। आखिर क्या वजह है कि राज्य में कोरोना जैसी महामारी के मामले में भी झोलाछाप डॉक्टर सक्रिय हैं? टीम ने यह भी कहा कि जिला स्तर पर कोरोना के खिलाफ काम करने के लिए आयुष डॉक्टरों को साथ में लेना जरूरी है, ताकि रोग प्रतिरोधक क्षमता को लेकर भी लोगों के बीच काम किया जा सके!
अगर इस महामारी के शुरुआती प्रभाव को ध्यान में रखा जाए तो अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि अगर एक बार फिर यह बेकाबू हुआ तो कैसे हालात खड़े हो सकते हैं। यह समझना मुश्किल है कि महज साल भर पहले इस महामारी और इसके घातक असर के उदाहरण सामने होने के बावजूद लोगों को इससे बचाव के उपायों को गंभीरता से लेना जरूरी नहीं लग रहा है। दूसरी ओर, सरकार की ओर से भी शायद संक्रमण के प्रसार को रोकने को लेकर तय नियम-कायदों पर अमल सुनिश्चित कराने को लेकर बहुत सजगता नहीं बरती गई। नतीजतन, अब फिर नागपुर सहित राज्य के कई इलाकों में फिर से कोरोना ने अपने पांव पसारने शुरू कर दिए हैं।
अभी जैसे हालात दिख रहे हैं, क्या गारंटी है कि यह राज्य के दूसरे इलाकों में भी नहीं फैलेगा। यों देश के कुछ अन्य राज्यों में भी कोरोना का खतरा बढ़ने के संकेत हैं, लेकिन इस दूसरे दौर में सबसे ज्यादा इस वायरस का प्रकोप महाराष्ट्र में ही दिखाई दे रहा है। सवाल है कि स्थिति अचानक ही इस कदर बिगड़ती हुई क्यों दिख रही है!
सौजन्य - जनसत्ता।
0 comments:
Post a Comment