मिहिर शर्मा
इसमें कोई शक नहीं है कि कोविड-19 महामारी से निपटने और नियंत्रित करने के भारत के प्रयासों में आत्मसंतोष की भावना के कारण कुछ शिथिलता आई है। इसकी वजहों को आसानी से समझा जा सकता है। अर्थव्यवस्था हर तरह से सुधर रही है। पिछले साल के अंत से कोविड के मामलों की संख्या में भी भारी कमी आई है और वे देश के ज्यादातर हिस्सों में नियंत्रण में हैं। इसक अलावा टीकाकरण कार्यक्रम का दूसरा चरण शुरू हो गया है, जिसमें इस बीमारी के गंभीर मामलों के जोखिम वाले लोगों को टीके लगाए जाएंगे।
फिर भी अति आत्मविश्वासी होना एक गलती होगी। हाल में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्ष वर्धन ने दावा किया था कि देश में महामारी का खात्मा नजदीक है, लेकिन अभी ऐसी स्थिति नहीं होने की कई वजह हैं। सबसे पहले, टीकाकरण की दरों में अहम बढ़ोतरी हुई है। वहीं, ऐसा लगता है कि हम कई बार यह भूल जाते हैं कि यह बहुत बड़ा देश है। अगर हमें देश के एक बड़े हिस्से में उचित समयसीमा में टीका पहुंचाना है तो हमें टीकों की मौजूदा स्तर से पांच से 10 गुना अधिक आपूर्ति की दरकार होगी। दूसरा, हमें वायरस के म्युटेशन से पैदा होने वाले खतरों को लेकर सजग रहना चाहिए। अधिकारियों के मुताबिक अब तक कोविड-19 के ब्राजीलियाई, ब्रिटिश और दक्षिण अफ्रीकी रूप समुदाय में नहीं फैल रहे हैं। हाल में बीबीसी के सौतिक विश्वास ने खबर दी थी कि अब तक वायरस की इन किस्मों के 250 से भी कम मामले देश में पाए गए हैं, लेकिन अब तक का यह अनुभव रहा है कि जब वे फैलते हैं तो तेजी से मूल किस्म की जगह ले लेते हैं। ऐसा कुछ मामलों में जांच नहीं होने पर ही हो सकता है। दूसरा यह भी हो सकता है कि सही आंकड़े सामने नहीं आ रहे हों। भारत ने तेजी से पॉजिटिव आरटी-पीसीआर जांचों की जीनोम-सीक्वेंसिंग में बढ़ोतरी नहीं की है। हाल तक पॉजिटिव आरटी-पीसीआर जांचों के महज 0.5 से 0.6 फीसदी मामलों को वायरस की किस्मों की पहचान के लिए जीनोमिक सीक्वेंसिंग के लिए भेजा जा रहा था। इसके लिए धन आवंटित नहीं किया गया है, लेकिन उस अनुपात को बढ़ाकर 5 से 10 फीसदी करने के लिए काफी काम किया जाना जरूरी है। इस समय भारत के सीमा पर नियंत्रण भी संतोषजनक नहीं हैं। अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों पर केवल उन्हीं लोगों की जांच हो रही है, जो विश्व के तीन सबसे अधिक जोखिम वाले भौगोलिक क्षेत्रों से आ रहे हैं। इसकी कोई वजह नहीं है कि अनिवार्य सीक्वेंसिंग के अलावा जांच सभी के लिए लागू की नहीं की जाए। ऐसा नहीं हो सकता कि हम साफ तौर पर यह पहचान सकें कि वायरस की ये किस्में कहां फैल रही हैं या उड़ान में कौन किसके पास बैठा था।
आखिर में अन्य वायरल संक्रमणों की तरह कोविड-19 का मूल स्ट्रेन सीजन में बदलाव के दौरान ज्यादा संक्रामक बन सकता है। हम अब भी पुख्ता तौर पर यह नहीं जानते हैं कि यह भारत में ज्यादातर मामलों में कैसे फैल रहा है, इसलिए यह मानना जल्दबाजी होगी कि गर्मियों में तीसरी लहर आना नामुमकिन है। निश्चित रूप से अब भारतीय एहतियात को लेकर कम फिक्रमंद हैं, जितने वे पिछले साल गर्मियों में महामारी के अपने चरम पर होने के समय थे। इसके भी अपने खतरे हैं।
जीनोम सीक्वेंसिंग को जांचों का एक मुख्य हिस्सा बनाने के अलावा महामारी को लेकर क्या कदम उठाए जा सकते हैं? एक महत्त्वपूर्ण कदम यह है कि अगर जरूरत पड़े तो स्थानीय लॉकडाउन फिर से लगाने की मंजूरी दी जाए। केंद्र सरकार ने अपने स्तर पर प्रतिबंध लगाने के लिए राज्यों और स्थानीय सरकारों को हतोत्साहित किया है। वह सलाह वापस ली जानी चाहिए।
लेकिन सबसे अहम कदम टीकाकरण की रफ्तार तेज करना है। हालांकि हमें ऑक्सफर्ड/एस्ट्राजेनेका और भारत बायोटेक के टीकों का उत्पादन करने की अपनी क्षमता पर भरोसा है, लेकिन हमें अतिरिक्त टीकों की अपनी जरूरत में भी ढील देने की जरूरत है। इसकी वजह यह है कि महामारी के दौरान टीका विनिर्माण संयंत्रों को अनुपयोगी पड़े रखना एक अपराध है। उदाहरण के लिए जॉनसन ऐंड जॉनसन (जेऐंडजे) का टीका क्यों हमारे टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल नहीं है? इसे अमेरिका में उपयोग की मंजूरी मिल गई है और यह दक्षिण अफ्रीकी किस्म के खिलाफ असरदार रहा है। जेऐंडजे पहले ही एक भारतीय साझेदार के साथ गठजोड़ कर चुकी है, जिसने टीकों की करोड़ों खुराक के उत्पादन के लिए क्षमता अलग बचाकर रखी है। हम एक प्रभावी टीके पर क्यों कड़ी नियामकीय बंदिशें लगा रहे हैं? साफ तौर पर उन टीकों के लिए भारत में ब्रिजिंग परीक्षण की मांग करना हास्यास्पद है, जो भारत में मौजूदा बीमारी के वायरस से भी खतरनाक किस्म के खिलाफ तीसरे चरण के परीक्षणों में कारगर रहे हैं। कोई भी व्यक्ति सभी नियामकीय अनुपालन सुनिश्चित करने के खिलाफ तर्क नहीं देगा। लेकिन ब्रिजिंग परीक्षणों पर विश्व स्वास्थ्य संगठन का भी यह परामर्श है कि ये परीक्षण तभी किए जाने चाहिए, जब यह मानने का कोई कारण हो कि विशेष स्थानीय परिस्थितियों से नतीजे बदल जाएंगे। ब्रिजिंग परीक्षण उन टीकों के लिए अनिवार्य स्थानीय परीक्षण हैं, जिन्हें अन्य किसी जगह सुरक्षित एवं प्रभावी पाया गया है। सरकार के वैज्ञानिक प्रतिष्ठानों के पास ऐसी क्या वजह हैं? अगर फिलहाल ऐसी कोई वजह नहीं हैं तो हमें जेऐंडजे ही नहीं बल्कि फाइजर जैसे उन अन्य टीकों को भी तेजी से मंजूरी देनी चाहिए, जो अन्य जगहों पर प्रभावी साबित हुए हैं। आराम से बैठने और केवल मौजूदा टीका उत्पादन की रफ्तार एवं आकार पर निर्भर रहने से अब तक की भारत की मेहनत पर पानी फिर जाएगा।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
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