नीतिगत चुनौतियों में इजाफा (बिजनेस स्टैंडर्ड)

मुद्रास्फीति का दबाव एक बार फिर बढ़ रहा है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति फरवरी में 5.03 प्रतिशत तक बढ़ गई जबकि जनवरी में यह 4.06 प्रतिशत थी। थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति 4.17 फीसदी के स्तर के साथ 27 महीनों के उच्चतम स्तर पर पहुंच चुकी है। भले ही ये आंकड़े फिलहाल चिंताजनक नहीं नजर आ रहे लेकिन ये भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के लिए नीतिगत चयन को और अधिक मुश्किल बना सकते हैं। इस बीच मूल मुद्रास्फीति का स्तर ऊंचा बना रहा और फरवरी में यह बढ़कर 6 फीसदी तक पहुंच गई जो नवंबर 2018 के बाद का उच्चतम स्तर है। फिलहाल इसकी वजह कुछ अन्य चीजों के अलावा परिवहन लागत में इजाफा भी है क्योंकि ईंधन कीमतों में बढ़ोतरी हुई है। कोविड के मामलों में दोबारा तेजी और देश के अलग-अलग हिस्सों में विभिन्न प्रकार के प्रतिबंध भी आपूर्ति शृंखला को प्रभावित कर सकते हैं और कीमतों में इजाफे की वजह बन सकते हैं।

निकट भविष्य में ईंधन कीमतें ऊंची बनी रह सकती हैं। हाल में कुछ कमी के बावजूद वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमत 2021 के आरंभ से अब तक 20 फीसदी बढ़ चुकी है और आपूर्ति क्षेत्र की दिक्कतों के कारण यह ऊंची बनी रह सकती है। हकीकत में देखें तो जिंस कीमतों में इजाफा अधिक व्यापक है। उदाहरण के लिए द इकनॉमिस्ट का जिंस मूल्य सूचकांक पिछले साल के स्तर से 50 फीसदी तक बढ़ चुका है। निश्चित तौर पर कीमतों में वृद्धि ज्यादा नजर आ रही है। ऐसा आधार कम होने की वजह से भी हो सकता है लेकिन पिछले एक साल में दुनिया भर में आपूर्ति की बाधा और मांग अनुमान में वृद्धि भी इसकी वजह हो सकती है। मांग में तीव्र वृद्धि, खासकर अमेरिका में मांग में तेजी के कारण जिंस कीमतों में और इजाफा हो सकता है। अमेरिका में 1.9 लाख करोड़ रुपये का राजकोषीय प्रोत्साहन मांग और कीमतों में इजाफे की वजह बनेगा। यह हमें बॉन्ड बाजार में भी नजर आ रहा है।


आर्थिक हालात बता रहे हैं कि नीतिगत प्रबंधन चुनौतीपूर्ण बना रहेगा। आरबीआई से न केवल मौजूदा आर्थिक सुधार को गति देने की उम्मीद है बल्कि उसे सरकार के अहम उधारी कार्यक्रम का प्रबंधन भी ऐसे करना है कि कोई विसंगति न उत्पन्न हो। उच्च सरकारी उधारी मुद्रा की लागत को प्रभावित कर रही है। उदाहरण के लिए 10 वर्ष के सरकारी बॉन्ड का प्रतिफल बजट पेश किए जाने के बाद करीब 30 आधार अंक बढ़ा है। बॉन्ड कीमतें दबाव में बनी रहेंगी क्योंकि बाहरी और घरेलू दोनों बचत में गिरावट आने की आशंका है। वैश्विक बाजार में उच्च प्रतिफल पोर्टफोलियो पूंजी की आवक को प्रभावित करेगा और मांग में तेजी ने घरेलू बाजार की वित्तीय बचत कम की है। ऐसे में सरकारी बॉन्ड की उच्च आपूर्ति बाजार दर को बढ़ा देगी।


बहरहाल, दरों को सीमित रखने के लिए अत्यधिक समायोजन वाली मौद्रिक और नकदी संबंधी परिस्थितियां अंतत: मुद्रास्फीति में इजाफा कर सकती हैं। इस महीने मुद्रास्फीति के लक्ष्य की भी समीक्षा होनी है। आरबीआई का शोध बताता है कि 4 फीसदी का मौजूदा लक्ष्य और दो फीसदी विचलन की गुंजाइश की व्यवस्था कारगर रही है। सरकार के लिए बेहतर होगा कि वह इस मोर्चे पर यथास्थिति बरकरार रखे। आरबीआई को यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि बढ़ी हुई मूल मुद्रास्फीति से कैसे निपटने का उसका इरादा है। मौजूदा हालात में आरबीआई और सरकार के बीच अधिक तालमेल की जरूरत है। केंद्रीय बैंक को सरकार को यह बताना होगा कि उसे बढ़ी उधारी की ऊंची कीमत चुकाने के लिए तैयार रहना चाहिए। बॉन्ड बाजार बुनियादी बदलाव को लेकर प्रतिक्रिया नहीं देगा, यह आशा करना सही नहीं। आरबीआई को भी ऐसा नहीं दिखना चाहिए कि वह सरकारी प्रतिफल के प्रबंधन के लिए मूल्य स्थिरता के अपने लक्ष्य से भटक रहा है।


सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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