सामयिकदांव पर तमिलों का भविष्य (राष्ट्रीय सहारा)

ऐतिहासिक मान्यता रही है कि दक्षिण भारत के तमिलों ने सिंहलियों को पराजित किया था‚ इसीलिए सिंहली तमिलों को लेकर आशंका ग्रस्त रहे हैं और उनकी यह नीति भारत के संदर्भ में सदैव नजर आती है। श्रीलंका में करीब २० लाख तमिल बसते हैं‚ जो कई वषाç से सामाजिक‚ धाÌमक और आÌथक उत्पीड़न सहने को मजबूर है। तमिल बराबरी पाने के संविधानिक अधिकारों के लिए लगातार संघर्षरत है‚ लेकिन भारत की कोई भी पहल श्रीलंका में अब तक वह १३वां संविधान संशोधन अधिनियम लागू करवाने में सफल नहीं हो सकी है‚ जिससे तमिलों के गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिए कई तरह के अधिकार मिलने का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। 


 भारत के सामने बड़ी चुनौती यह रही है कि वह श्रीलंका की सरकार से उसे लागू करवाएं। इसके विपरीत श्रीलंका ने अपनी राजनीतिक व्यवस्था में सिंहली राष्ट्रवाद की स्थापना कर और भारत विरोधी वैदेशिक ताकतों से संबंध मजबूत करके भारत पर दबाव बढ़ाने की लगातार कोशिश की है‚ जिससे वह तमिलों को लेकर अपने पड़ोसी देश से सौदेबाज़ी कर सके। फिलहाल श्रीलंका अपनी इस नीति में सफल होता दिखाई दे रहा है। दरअसल‚ पिछले महीने भारत यात्रा पर आएं श्रीलंका के विदेश सचिव एडमिरल जयनाथ कोलंबेज ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में भारत का सक्रिय समर्थन मांगते हुए कहा था की भारत उसे मुश्किल वक्त में छोड़ नहीं सकता। अब संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में श्रीलंका पर तमिलों के व्यापक नरसंहार के आरोप का प्रस्ताव पास हुआ तो वोटिंग के दौरान चीन और पाकिस्तान ने प्रस्ताव के विरोध में वोट किया‚ जबकि भारत ने वोटिंग से दूरी बनाए रखते हुए गैरहाजिर रहने का फैसला लिया। 

 यह श्रीलंका की राजनियक विजय रही क्योंकि तमिलों का संबंध सीधे भारत से है और भारत की इस पर खामोशी उसके नियंत्रण और संतुलन की नीति दर्शाती है। हालांकि इसका कोई भी दीर्घकालीन लाभ भारत को मिलता दिखाई नहीं पड़ रहा। श्रीलंका में प्रवासी भारतीयों की समस्या एक प्रमुख राजनीतिक मुद्दा रही है। ब्रिटिश औपनिवेशिक काल में भारत के तमिलनाडु राज्य से गये तमिलों की तादाद अब श्रीलंका में लाखों में है‚ लेकिन मानवधिकारों को लेकर उनकी स्थिति बेहद खराब है। श्रीलंका के जाफना‚ बट्टिकलोवा और त्रिंकोमाली क्षेत्र में लाखों तमिल रहते है जिनका संबंध दक्षिण भारत से है। श्रीलंका के सिंहली नेताओं द्वारा तमिलों के प्रति घृणित नीतियों को बढ़ावा देने से तमिलों का व्यापक उत्पीड़न बढ़ा और इससे इस देश में करीब तीन दशकों तक गृहयुद्ध जैसे हालात रहे। २००९ में श्रीलंका से तमिल पृथकतावादी संगठन लिट्टे के खात्मे के साथ यह तनाव समाप्त हुआ‚ जिसमें हजारों लोगों की जाने गई। इस दौरान श्रीलंका की सेना पर तमिलों के व्यापक जनसंहार के आरोप लगे। वैश्विक दबाव के बाद श्रीलंका ने सिंहलियों और तमिलों में सामंजस्य और एकता स्थापित करने की बात कही लेकिन हालात जस के तस बने हुए हैं। 

 गोटाभाया राजपक्षे की नीतियां तमिल और अन्य अल्पसंख्यक समूहों के प्रति घृणा को बढ़ावा देने वाली है। करीब एक दशक पहले श्रीलंका से तमिल पृथकतावादी संगठन लिट्टे के खात्मे के बाद हजारों तमिलों को श्रीलंका की सेना ने बंदी बनाया था और यह विश्वास भी दिलाया था कि उन्हें वापस उनके घर लौटने दिया जाएगा‚ लेकिन इतने वषाç बाद भी सैकड़ों तमिल परिवार हर दिन अपने प्रियजनों के घर लौटने की बाट जोह रहे हैं और उनके लौट आने की कोई उम्मीद दूर दूर तक नजर नहीं आती। इन तमिलों का संबंध भारत के दक्षिणी राज्य तमिलनाडु से है। इसीलिए भारत सरकार की भूमिका इस संबंध में बेहद महkवपूर्ण और निर्णायक हो सकती है। भारत श्रीलंका की भौगोलिक स्थिति को लेकर सतर्क रहता है और उसकी यह दुविधा वैदेशिक नीति में साफ नजर आती है। श्रीलंका की भू राजनीतिक स्थिति उसका स्वतंत्र अस्तित्व बनाती है‚ लेकिन भारत से उसकी सांस्कृतिक और भौगोलिक निकटता सामरिक oष्टि से ज्यादा असरदार साबित होती है। 

 श्रीलंका भारत से निकटता और निर्भरता से दबाव महसूस करता रहा है और यह भारत के लिए बड़ा संकट है। भारत जहां श्रीलंका की एकता‚ अखंडता और सुरक्षा को लेकर जिम्मेदारी की भूमिका निभाता रहा है वहीं श्रीलंका की सरकारों का व्यवहार बेहद असामान्य और गैर जिम्मेदार रहा है। श्रीलंका में शांति और स्थिरता के लिए भारत की सैन्य‚ सामाजिक और आÌथक मदद के बाद भी तमिल संगठन लिट्टे से निपटने के लिए श्रीलंका ने भारत के प्रतिद्वंद्वी देश पाकिस्तान से हथियार खरीदें। पिछले एक दशक में श्रीलंका के ढांचागत विकास में चीन ने बड़ी भूमिका निभाई है और चीन का इस समय श्रीलंका में बड़ा प्रभाव है। १९६२ के भारत चीन युद्’ के समय श्रीलंका की तटस्थ भूमिका हो या १९७१ के भारत पाकिस्तान युद्ध में पाकिस्तान के लड़ाकू विमानों को तेल भरने के लिए अपने हवाई अड्डे देने की हिमाकत‚ श्रीलंका भारत विरोधी कार्यों को करने से कभी पीछे नहीं हटा है। ॥ श्रीलंका में भारतीय तमिलों के हितों की रक्षा तथा भारत की सामरिक सुरक्षा के लिए अग्रगामी और आक्रामक कूटनीति की जरूरत है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में श्रीलंका के विरु द्’ रखा गया प्रस्ताव श्रीलंका पर दबाव बढ़ाने के लिए बड़ा मौका था‚ जिस पर भारत का कड़ा रु ख श्रीलंका पर मनौवैज्ञानिक दबाव बढ़ा सकता था। कूटनीति के तीन प्रमुख गुण होते है‚ अनुनय‚ समझौता तथा शक्ति की धमकी। भारत श्रीलंका के साथ अनुनय और समझौता सिद्धांत से अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने में असफल रहा है‚ यह समझने की जरूरत है। राजपक्षे बंधु सिंहली हितों‚ अतिराष्ट्रवाद को बढ़ावा देने तथा चीन और पाकिस्तान के साथ संबंध मजबूत करने की नीति पर कायम है। ऐसे में उनसे तमिल और भारतीय हितों के संरक्षण की उम्मीद नहीं की जा सकती।


सौजन्य - राष्ट्रीय सहारा।

Share on Google Plus

About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

This is a short description in the author block about the author. You edit it by entering text in the "Biographical Info" field in the user admin panel.
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments:

Post a Comment