वीर सिंह
वैश्विक संसाधन निष्कर्षण दरों में पिछले कुछ वर्षों में अत्यधिक वृद्धि हो रही है। ग्लोबल फुटप्रिंट नेटवर्क के अनुसार, आर्थिक विकास के दबाव को तेज करने के साथ-साथ राष्ट्रों के बीच आर्थिक विकास प्रतिस्पर्धा ने दुनिया को एक ऐसी स्थिति में ला खड़ा किया है, जहां उसे नवीकरणीय प्राकृतिक संसाधनों की अपनी वर्तमान मांगों को पूरा करने के लिए लिए 1.7 पृथ्वियों की जरूरत होगी। उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण के युग में आर्थिक विकास का तात्पर्य अधिक से अधिक संसाधनों का उपयोग करना और अधिक से अधिक कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि करना है।
हमारी तो एक ही पृथ्वी है, वह सभी आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए पर्याप्त है, 1.7 पृथ्वियां तो लालच की आपूर्ति के लिए चाहिए। पर दूसरी पृथ्वी हम कहां से लाएंगे? हमारी एकमात्र पृथ्वी ब्रह्मांड का सबसे अद्भुत ग्रह है। मानव के अब तक अर्जित ज्ञान के आधार पर हमारी पृथ्वी ही ब्रह्मांड में एक मात्र जिंदा ग्रह है। इसके कण-कण में जीवन है। समुद्र सतह से लगभग 10 किलोमीटर नीचे धुर अंधेरे से लेकर धरातल से कोई 12 किलोमीटर ऊपर तक हमारी धरती जीवन से लकदक है। हमारे मन में सदा से एक कौतूहल रहा था, कि यदि हम कहीं दूर से अपनी पृथ्वी को देखें, तो वह कैसी लगती होगी? और जब हमने अंतरिक्ष से उसे निहारा तो उसकी सुंदरता देखकर स्तब्ध रह गए। हमने पाया कि सारे ब्रह्मांड में अगर कोई सबसे सुंदर कृति है, तो वह है हमारी पृथ्वी। और हम अपने सुंदरतम ग्रह को कहने लगे ब्लू ब्यूटी, अर्थात, नील सुंदरी।
सौर मंडल की सबसे विशिष्ट सदस्या-हमारी पृथ्वी अपनी कील पर 24 घंटे में एक बार घूमते-घूमते 30 किलोमीटर प्रति सेकंड की दर से सूर्य की परिक्रमा करती है। अपनी एक वर्ष लंबी परिक्रमा में पृथ्वी विभिन्न ऋतुओं का सृजन करती है और एक ऐसा जलवायु तंत्र स्थापित करती है, जिसमें अनगिनत जीव-रूप पनपते हैं, एक घनी जैव विविधता खिलती है, और सभी जीवधारी अपनी स्वभाविक प्रवृत्तियों का विकास करते हैं। पृथ्वी की एक विशिष्ट जलवायु व्यवस्था जैव मंडल की अनूठी व्यवस्था है, जो जीवन प्रक्रियाओं को अक्षुण्ण और जीवटता से पूर्ण रखती है।
आज पृथ्वी पर सबसे बड़ा संकट जलवायु संकट ही है। पेरिस जलवायु संधि के अनुसार, सदी के अंत तक सार्वभौमिक गर्माहट को दो डिग्री सेल्सियस तक सीमित कर दिया जाएगा। लेकिन जिस द्रुतगति से मानव गतिविधियों द्वारा कार्बन उत्सर्जन हो रहा है, उसे देखते हुए तो लगता है, इतना तापक्रम तो 2050 से पहले ही बढ़ जाएगा। फिर सदी के अंत तक क्या होगा, कल्पना ही की जा सकती है। सुप्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी स्टीफन हाकिंग के अनुसार, 600 वर्षों में पृथ्वी आग का गोला बन जाएगी। उन्होंने तो परामर्श दिया था कि बचने के लिए हम कोई दूसरा ग्रह ढूंढ लें।
यह संकट अचानक पैदा नहीं हुआ है। प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन, पर्यावरण का अत्यधिक प्रदूषण और मानव समाजों का प्राकृतिक व्यवस्थाओं के प्रति अनुचित और असंतुलन पैदा करने वाला व्यवहार इसके प्रमुख कारण हैं। हमारी खाद्योत्पादन प्रक्रिया इस सीमा तक कुप्रभावित हो रही है कि सुरक्षित भविष्य पर ही प्रश्न चिह्न-सा लग गया है। धरती पर आज वस्तुतः संपूर्ण जैव विविधता हमारी अपनी अनुकंपा पर निर्भर है। पौधों का एक-एक बीज हमारी मुट्ठी में है। हमें रोटी, दाल-भात, शाक-सब्जियां और फल देने वाले बीज कॉरपोरेट सेक्टर के हथियार बन गए हैं। धरती पर संभवतः अब ऐसा कोई पारिस्थितिक परिवेश नहीं बचा, जिसे मानव ने छिन्न-भिन्न न कर दिया हो। लेकिन समस्त परिस्थिति का एक उज्ज्वल पहलू भी है।
हमारे अंदर प्राकृतिक न्याय और सभी जीवन पहलुओं को समझने और भविष्य के आर-पार देखने की अद्भुत क्षमता है। धरती हमारी मां है, यह अनुभूति हमारे अंदर रोपित है। धरती सभी जीवधारियों की मां है, यह अनुभूति भी हमारे अंदर है। सबसे बड़ी आवश्यकता है धरती पर सभी जीवों के प्रति एक सकारात्मक व्यवहार की, सभी जीवन-रूपों के अस्तित्व के मोल को मन-वचन-कर्म में लाने की और धरती मां की सेवा में स्वयं को समर्पित करने की।
- पूर्व प्रोफेसर, जी.बी. पंत कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय
सौजन्य - अमर उजाला।
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