एम भास्कर साई
कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों ने उत्तर भारत की तरह दक्षिण भारत के राज्यों की भी परेशानी बढ़ा दी है। तमिलनाडु में कोविड-19 संक्रमण के दैनिक मामले पिछले रविवार को 10,000 पार कर गए। पिछले दिनों विधानसभा चुनाव के कारण एक महीने लंबे आक्रामक प्रचार को, जिसमें राजनीतिक दलों द्वारा किया गया रोड शो भी शामिल था, अब कोविड संक्रमण की दूसरी लहर के प्रमुख कारणों में से एक माना जा रहा है। तथ्य यह भी है कि सरकारी मशीनरी ने मतदान खत्म होने के बाद ही मामले को नियंत्रित करने के लिए कदम उठाया।
लोगों के एक वर्ग को लगता है कि प्रशासन ने महामारी की दूसरी लहर से निपटने में देर से कदम उठाए। स्वास्थ्य विशेषज्ञों और कार्यकर्ताओं का कहना है कि 'पिछले दिनों हुए राजनीतिक प्रचार अभियान के दौरान सबसे ज्यादा नुकसान हुआ, क्योंकि तब भारी संख्या में लोग बिना मास्क पहने और सोशल डिस्टेंसिंग का ख्याल रखे बिना इकट्ठा हुए थे। यदि उचित ढंग से कोविड प्रोटोकॉल का पालन किया जाता, तो तमिलनाडु में अचानक संक्रमण के मामले इतने अधिक नहीं बढ़ते। विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि महामारी की दूसरी लहर का प्रसार पहली लहर के मुकाबले तेज है, और लोग इसकी गंभीरता को नहीं समझ पा रहे, क्योंकि अब भी लोग यहां बिना मास्क लगाए बाहर निकलते हैं। हालांकि तमिलनाडु के स्वास्थ्य सचिव जे राधाकृष्णन वैश्विक संदर्भ में राज्य में संक्रमण में वृद्धि को स्वाभाविक मानते हैं और इतना भर कहते हैं कि लोगों को बेवजह इकट्ठा होने से बचना चाहिए और कोविड-19 प्रोटोकॉल का पालन करना चाहिए।'
जाहिर है, सरकार के रवैये में अब भी अपेक्षित गंभीरता नहीं है। हालांकि यह भी सही है कि पिछले साल जब महामारी की पहली लहर आई थी, तब किसी को पता नहीं था और वह एक अंधी लड़ाई थी। इसके बाद यह सुनिश्चित करने के लिए पूर्ण लॉकडाउन लागू किया गया कि लोग बाहर न निकलें। उसका असर भी हुआ। लेकिन दूसरी लहर के दौरान पूरे देश की तरह तमिलनाडु में भी पूर्ण लॉकडाउन से बचने की कोशिश की जा रही है। लोगों की जान की तुलना में अर्थव्यवस्था की चिंता अचानक महत्वपूर्ण हो उठी है। राज्य के उद्यमी भयभीत हैं कि लॉकडाउन होने पर श्रमिक फिर अपने घर चले जाएंगे। पहली लहर के समय कोयंबटूर और तिरुपुर स्थित उद्योगों में काम करने वाले करीब एक लाख प्रवासी श्रमिक बिहार, उत्तर प्रदेश और ओडिशा लौट गए थे। इस बार हालांकि श्रमिकों के घर लौटने का सिलसिला धीमा है, लेकिन चिंता की बात यह है कि संक्रमण के सर्वाधिक मामले कोयंबटूर और तिरुपुर में ही हैं।
संक्रमण के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए तमिलनाडु सरकार ने आगामी 30 अप्रैल तक रात का कर्फ्यू लगा दिया है और हर रविवार को लॉकडाउन रहता है। तमिलनाडु में संक्रमण के 35 प्रतिशत सक्रिय मामले राजधानी चेन्नई में हैं। मामले बढ़ने के बाद स्वास्थ्य विभाग ने जांच बढ़ाकर 1,10,130 प्रतिदिन कर दी है, जबकि पिछले सप्ताह तक दैनिक जांच का आंकड़ा 88,000 के आसपास था। इस बीच राज्य की रिकवरी रेट भी पिछले रविवार के 94.5 फीसदी से घटकर 91.6 फीसदी पर आ गई है। जहां तक वायरस की स्क्रीनिंग का संबंध है, तमिलनाडु ने फीवर कैंपों की संख्या बढ़ाई है और घर-घर स्क्रीनिंग की जा रही है। अस्पतालों का बोझ कम करने के लिए सरकार ने अस्थायी स्वास्थ्य केंद्रों की भी स्थापना की है। राज्य के स्वास्थ्य सचिव के मुताबिक, 18-45 आयु वर्ग के लोगों में संक्रमण के मामले 51 फीसदी बढ़े हैं, और इनमें से ज्यादातर वे लोग हैं, जो अपार्टमेंट्स में रहते हैं।
उन्होंने कहा कि सरकार टेस्ट, ट्रैक ऐंड ट्रीट की योजना पर ध्यान केंद्रित कर रही है और प्रसार को रोकने के लिए सैंपलों की जांच बढ़ाई गई है। विगत 16 अप्रैल से केरल ने भी दैनिक करीब ढाई लाख कोविड टेस्ट करना शुरू किया है, जबकि पहले रोज औसतन 65,000 जांच होती थी। टीकों की उपलब्धता ने भी वायरस के खिलाफ लड़ाई में मदद की है। 16 अप्रैल तक तमिलनाडु में 43,90,629 लोगों को टीका लगाया गया था। हालांकि राज्य के विभिन्न क्षेत्रों से लगातार टीकों की कमी की शिकायतें आ रही हैं, लेकिन स्वास्थ्य मंत्री सी विजय भास्कर के मुताबिक, राज्य में करीब 8.8 लाख टीकों की खुराक का भंडार है। केरल में 15 अप्रैल तक 58,32, 553 लोगों को टीका लगाया गया था। जहां तक रेमडेसिविर की उपलब्धता का सवाल है, राजीव गांधी गवर्नमेंट जेनरल हॉस्पिटल के डीन ई थेरानिराजन का कहना था कि 'सभी मरीजों को रेमडेसिविर की जरूरत नहीं पड़ती। यह महामारी आने पर इस्तेमाल की जाने वाली शुरुआती दवाओं में से एक थी। ऐसी दवाएं भी हैं, जिनका असर बेहतर है, लिहाजा रेमडेसिविर की कम उपलब्धता पर घबराने की जरूरत नहीं है।'
तमिलनाडु में आज से नए प्रतिबंध लागू हो गए, जिसके तहत, समुद्र तटों, चिड़ियाघरों, पार्कों, संग्रहालयों और सभी पर्यटन स्थलों पर जाने पर प्रतिबंध है। राज्य बोर्ड की 12वीं की परीक्षा स्थगित कर दी गई है, पर प्रैक्टिकल परीक्षाएं निर्धारित तिथि पर होंगी। रात के कर्फ्यू के दौरान निजी व सार्वजनिक वाहन चलाने की अनुमति नहीं होगी। हां, चिकित्सीय आपात स्थिति में मरीजों को ले जाने वाले वाहनों को इस दौरान चलाने की अनुमति होगी। राज्य में किसी नए कुंभाभिषेक कार्यक्रम और धार्मिक उत्सव की अनुमति नहीं दी जाएगी। कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को ऑनलाइन कक्षा आयोजित करने का निर्देश दिया गया है और परीक्षाएं केवल ऑनलाइन होंगी। हालांकि स्वास्थ्य विशेषज्ञ पूर्ण तालाबंदी की जरूरत बता रहे हैं, पर सरकारी सूत्रों के मुताबिक, इससे अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी।
जहां तक केरल की बात है, तो वहां की सरकार ने दूसरे राज्यों से आने वाले यात्रियों के लिए आरटी-पीसीआर टेस्ट अथवा 14 दिन क्वारंटीन को अनिवार्य कर दिया है। कर्नाटक में खासकर राजधानी बंगलूरू में बढ़ते मामले चिंता का एक गंभीर कारण है और राज्य सरकार ने कई कदम उठाए हैं। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में भी महामारी का प्रोटोकॉल लागू है। जबकि केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी हालात की गंभीरता से निगरानी कर रहा है और उसके अनुसार कदम उठा रहा है।
सौजन्य - अमर उजाला।
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