विनय कौड़ा
दुर्भाग्य से कोविड-19 की दूसरी लहर तेजी से बढ़ती दिखाई दे रही है। ऐसे में पुलिस और जनता दोनों को ही कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। पुलिस के समक्ष जनता द्वारा नियमों का उल्लंघन करने संबंधी चुनौतियां पेश आ सकती हैं। जैसे धार्मिक स्थलों, प्रतिष्ठानों और सार्वजनिक परिवहन के साधनों में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन न करना, मास्क न पहनना। दूसरी बड़ी समस्या होगी भीड़ का नियंत्रण और प्रबंधन।
पिछले एक साल में हम देख चुके हैं कि कोविड-19 के दौरान शहरों में भीड़ का प्रबंधन गांवों के मुकाबले कहीं मुश्किल था, क्योंकि भारत की बढ़ती शहरी आबादी बड़े शहरों में अधिक है। गौरतलब है कि भारत की शहरी जनसंख्या जहां 1951 में 60 लाख थी, वह अब करीब 50 करोड़ हो गई है। मेट्रो शहरों में जनसंख्या तेजी से बढ़ी है। इससे भीड़ का नियंत्रण और प्रबंधन मुश्किल हो जाता है। भारत में राजनीतिक व गैर-राजनीतिक कारणों से गाहे-बगाहे भीड़ एकत्र होना रोजमर्रा का काम हो गया है। बीमारियों, महामारियों व अन्य प्राकृतिक आपदाओं के चलते भीड़ प्रबंधन के बेहतर तरीकों की जरूरत है। मोबाइल फोन और सोशल मीडिया भी सशक्त टूल बन चुके हैं। नेता लोग भीड़ के इस्तेमाल के नए-नए तरीके अपनाने लगे हैं, जिससे मामला और जटिल हो जाता है।
भारत की जनसंख्या तो बढ़ गई और घटनाएं भी कई गुना बढ़ गई हैं, लेकिन बड़े शहरों में पुलिस तंत्र में कोई बदलाव नहीं आया। संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित प्रति एक लाख की आबादी पर 222 पुलिसकर्मियों के मुकाबले भारत में प्रति एक लाख की आबादी पर 140 पुलिसकर्मी ही हैं। इन रिक्तियों को भरने के लिए कोई खास प्रयास नहीं किए गए। हां, तकनीक ने भीड़ का प्रबंधन करना कुछ आसान जरूर कर दिया है। कमजोर क्षमता और अतिरिक्त फंड के अभाव में तकनीक ही पुलिस की सहायक बनी है। आजकल वीडियोग्राफी, ड्रोन और सीसीटीवी कैमरों का व्यापक इस्तेमाल होता है, जो भीड़ की निगरानी करने में काफी सहायक हैं। अफवाहों पर रोक लगाने में सोशल मीडिया काफी सहायक रहा है। रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (आरएफआइ) को वायरलेस सेंसर नेटवर्क (डब्ल्यूएसएन) से जोड़ा जा सकता है, जो भीड़ के बारे में जानकारी उपलब्ध करवाता है। क्लाउड कंप्यूटिंग को इस प्रकार विकसित किया गया है कि भीड़ की जानकारी संबंधी डेटा प्राप्त किया जा सके।
महामारी के प्रबंधन में मानव संसाधन की कमी के चलते कई क्षेत्रों में पुलिस विभाग आउटसोर्सिंग कर रहा है। कुछ समय बाद कई क्षेत्रों में प्राइवेट सेक्टर काफी सक्षम हो जाएगा। भीड़ के नियंत्रण के लिए प्राइवेट एजेंसियों की मदद ली जा सकती है, परन्तु आवश्यक तकनीकी कौशल के लिए पुलिस को समय-समय पर प्रशिक्षण मिलना जरूरी है। तेजी से बदलते तकनीक के दौर में समानांतर रूप से पुलिस का प्रशिक्षण अनिवार्य है। पुलिस को डेटा आधारित शोध कार्य को सशक्त बनाना होगा।
आमतौर पर भीड़ पर तब तक कोई ध्यान नहीं दिया जाता, जब तक कि उसे संभालना मुश्किल न हो। इसलिए जहां तक हो सके भीड़ को छोटे-छोटे समूहों में विघटित कर देना चाहिए। जहां तक संभव हो भीड़ के संचालन की वीडियो रिकॉर्डिंग होनी चाहिए, जिसे जरूरत पडऩे पर जांच के लिए पेश किया जा सके। दुर्भाग्य से पुलिस नागरिकों का विश्वास अर्जित करने में विफल रही है। अक्सर पुलिस और राजनेताओं की सांठ-गांठ देखने को मिलती है। मात्र तकनीक के बल पर लोगों का विश्वास पुन: हासिल करना मुश्किल है। हर परिस्थिति में, खास तौर पर महामारी की स्थिति में पुलिस को संस्थानों और जनता दोनों का सहयोग आवश्यक है।
(लेखक सरदार पटेल पुलिस, सुरक्षा और आपराधिक न्याय विवि में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं)
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