प्रवाह : अधिकार देने का वक्त (पत्रिका)

भुवनेश जैन

यह भारत में लोकतंत्र का एक खेदजनक पहलू है। हमारे राजनेता बोलते अच्छा-अच्छा हैं, पर करते ठीक विपरीत हैं। इसका ज्वलंत उदाहरण हैं हमारी पंचायत राज संस्थाएं। तमाम घोषणाओं, संकल्पों और वादों के बावजूद अब तक इन संस्थाओं के हाथ अधिकारों के नाम पर झुनझुनों से ज्यादा कुछ नहीं थमाया गया है।

आजादी के 74 साल बाद आज कोरोना महामारी ने हमें एक बार फिर मौका दिया है कि ठेठ ग्राम स्तर पर काम करने वाले पंच, सरपंच आदि जन प्रतिनिधियों को साथ लिया जाए। कोरोना आज तेजी से गांवों में भी पसर रहा है। सांसद और विधायक जैसे 'बड़े' जन प्रतिनिधियों की परीक्षा हो चुकी है। ऐसे ज्यादातर जन प्रतिनिधि आज जनता को भगवान भरोसे छोड़कर मैदान से लापता हैं। पंचायती राज के जन प्रतिनिधि हमेशा जनता के बीच, उनके साथ रहते हैं। उनके सुख-दुख में बराबर हिस्सा लेते हैं। हो सकता है कि उन्हें कुछ अधिकार दे दिए जाएं तो वे जनता को इस महामारी से संघर्ष के लिए न सिर्फ तैयार कर दें, बल्कि परास्त कर दें।

कोरोना महामारी ने महानगरों में काम करने वाले लाखों श्रमिकों को अपने गांवों में लौटने को मजबूर किया है। अब पंचों-सरपंचों को समझ में नहीं आता कि बिना अधिकारों, बिना साधनों के वे कैसे इनकी मदद करें। वे चाह कर भी अपने गांवों में ऐसे इंतजाम नहीं कर पाते कि संकट के दौर में ग्रामीणों को वहीं रोजगार मिल जाए। वहीं स्वास्थ्य की देखभाल हो जाए और वहीं स्थानीय आवश्यकता के अनुरूप कुटीर उद्योग स्थापित हो जाएं। नतीजतन हर छोटी-मोटी जरूरत के लिए शहर जाना मजबूरी बन जाता है।

राजस्थान में ग्राम पंचायत स्तर पर कोर कमेटियां जरूर बनाई गई हैं, पर उनका अध्यक्ष बड़े स्कूलों के प्रधानों को बना रखा है। इससे जन प्रतिनिधियों का जो सहयोग मिलना चाहिए, वह नहीं मिल पा रहा। इन कमेटियों पर बाहर से आने वालों पर निगरानी करने, संक्रमितों को क्वारंटीन अवधि में बाहर निकलने से रोकने, कफ्र्यू तोडऩे वाली दुकानों को सील करने जैसे कई अधिकार हैं, पर बिना पंचायतों के सहयोग के ऐसी कार्रवाई प्रभावी रूप से नहीं हो पा रही।

जनता के बीच रहकर काम करने वाले सरपंचों, पंचों की क्षमताओं को कम नहीं आंका जाना चाहिए। कोरोना के इस दौर में उन्हें कुछ अधिकार देने से कुछ नहीं बिगड़ेगा। हो सकता है पंचायत राज की असली ताकत इसी बहाने सामने आ जाए। केवल सरकारी मशीनरी के बूते पर इतनी भारी महामारी से लोहा लेना असंभव है।

सौजन्य - पत्रिका।
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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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