राजनीतिक फायदे का मंच न बने महामारी (पत्रिका)

संकट की इस घड़ी में भी हम एक देश की तरह व्यवहार करते नजर क्यों नहीं आ रहे? सवाल जितना कठिन है, जवाब तलाशना शायद उससे भी कठिन। जब देश में रोजाना 30-50 हजार कोरोना के केस सामने आ रहे थे, तो हर राज्य एक गाइडलाइन के तहत कोरोना से मुकाबला कर रहा था। कोरोना का पहला दौर कमजोर क्या पड़ा, तमाम बंदिशें एक बार में ही धाराशायी हो गईं। सबको पता था कि कोरोना की दूसरी-तीसरी लहर आ सकती है, लेकिन तैयारी कहीं नजर नहीं आई। क्रिकेट मैच भी होने लगे, चुनावी रैलियां भी और कुंभ स्नान भी। नतीजा सबके सामने है। पिछले साल सितंबर में कोरोना के एक लाख के लगभग मामले सामने आए, तो हाहाकार मच गया था। अब साढ़े तीन लाख मामले एक दिन में आ रहे हैं, लेकिन उतनी चिंता नहीं।

अब तो वैक्सीन पर भी राजनीति हो रही है और ऑक्सीजन की सप्लाई पर भी। 18 से 45 साल की आयु के लोगों को वैक्सीन कौन लगवाए, इसको लेकर भी राजनीति हुई। लॉकडाउन लगाना जरूरी है या नहीं, इसे लेकर भी बवाल मच गया। देश की अदालतों को भी इसमें दखल देना पड़ा। कोरोना ने देश के सभी राजनीतिक दलों की कथनी और करनी को एक बार फिर उजागर कर दिया। देश को कोरोना के खिलाफ अभी लंबी लड़ाई लडऩी है, लेकिन हालात क्या हैं? हर राज्य अपनी-अपनी डफली पर अपना-अपना राग अलाप रहा है। कहीं लॉकडाउन है, तो कहीं नाइट कफ्र्यू से काम चलाया जा रहा है। इस तरह के आचरण से क्या हम कोरोना को परास्त कर पाएंगे? शायद नहीं! राजनीतिक दल दूसरे देशों में भी हैं। राजनीति भी करते हैं, लेकिन हमारी तरह नहीं। कोरोना महामारी भी अगर राजनीतिक फायदे का मंच बनने लगे, तो इसके लिए दोषी सब हैं। महामारी अभी गई नहीं है। देश में अभी वैक्सीन की दस फीसदी डोज भी पूरी तरह से नहीं लगी हैं। वैक्सीन अभियान लंबा चलने वाला है। कोरोना की कितनी लहर अभी बाकी हैं, कोई नहीं जानता। ऐसे में सबका कत्र्तव्य बनता है कि वह राजनीति से ऊपर उठकर महामारी से मुकाबला करे।

देश के उद्योगपतियों, सामाजिक संगठनों और अन्य संस्थाओं को एक मंच पर लाकर रणनीति बननी चाहिए। दूसरे देशों से भी बहुत कुछ सीखने की जरूरत है। केंद्र सरकार को भी पहले वाली भूमिका में आना चाहिए। राज्यों से नियमित संपर्क में रहकर आगे की रणनीति पर काम करना चाहिए। समय-समय पर सर्वदलीय बैठक भी बुलाए। संकट के इस दौर में विचारों का आदान-प्रदान बंद नहीं होना चाहिए। सरकारें और राजनेता आज जो भी कर रहे हैं, इतिहास में सब दर्ज होगा। भविष्य में इसका आकलन भी होगा कि किसने क्या किया और क्या नहीं।

सौजन्य - पत्रिका।
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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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