लोकल लॉकडाउन ही लगे ( नवभारत टाइम्स)

इसमें कोई शक नहीं कि लॉकडाउन मजबूरी का विकल्प है। लेकिन देश के बड़े हिस्से में महामारी की जो स्थिति है, उसमें लॉकडाउन जैसा कड़ा और अप्रिय कदम उठाना अनिवार्य होता जा रहा है। इससे पहले कि देशव्यापी लॉकडाउन के हालात बन जाएं, सर्वाधिक प्रभावित इलाकों की पहचान कर वहां इस वायरस की चेन तोड़ना जरूरी है ताकि अन्य क्षेत्र इसकी चपेट में आने से बच सकें।

 

कोरोना की दूसरी लहर से देशभर में जो इलाके सबसे अधिक प्रभावित हैं, सिर्फ वहां लॉकडाउन लगाने का विचार व्यावहारिक तकाजों के मुताबिक ही है। पिछले साल के देशव्यापी लॉकडाउन के तल्ख अनुभवों को देखते हुए केंद्र सरकार ने इस बार लॉकडाउन का फैसला राज्य सरकारों पर छोड़ा है। राज्य अलग-अलग हिस्सों में संक्रमण की स्थिति और आर्थिक गतिविधियों की अनिवार्यता संबंधी दोनों पहलुओं पर गौर करते हुए यह फैसला कर रहे हैं कि कहां किस तरह की पाबंदियां लगनी चाहिए। मगर धीरे-धीरे यह भी महसूस किया जा रहा है कि यह फैसला पूरी तरह राज्य सरकारों पर छोड़ना मुनासिब नहीं है। राष्ट्रीय स्तर पर बेहतर तालमेल के साथ चला जाए तो अपेक्षाकृत कम समय में बेहतर नतीजे हासिल किए जा सकते हैं। इसी सोच के तहत स्वास्थ्य विभाग ने देश भर में ऐसे 150 जिलों की पहचान की है, जहां पॉजिटिविटी रेट 15 फीसदी से ऊपर पाई गई है। स्वास्थ्य मंत्रालय का सुझाव है कि इन जिलों में आवश्यक सेवाओं को छोड़कर सख्त लॉकडाउन लागू किया जाए। यों तो इस संबंध में अंतिम फैसला संबंधित राज्य सरकारों से विचार-विमर्श के बाद लिया जाना है, लेकिन हालात जिस तेजी से बिगड़ते जा रहे हैं उसके मद्देनजर इस फैसले पर अमल में देर नहीं की जानी चाहिए।


इसमें कोई शक नहीं कि लॉकडाउन मजबूरी का विकल्प है। लेकिन देश के बड़े हिस्से में महामारी की जो स्थिति है, उसमें लॉकडाउन जैसा कड़ा और अप्रिय कदम उठाना अनिवार्य होता जा रहा है। इससे पहले कि देशव्यापी लॉकडाउन के हालात बन जाएं, सर्वाधिक प्रभावित इलाकों की पहचान कर वहां इस वायरस की चेन तोड़ना जरूरी है ताकि अन्य क्षेत्र इसकी चपेट में आने से बच सकें। यह स्पष्ट है कि इस संक्रमण को नियंत्रित करने के दो ही तरीके हैं। एक, भीड़ इकट्ठी न होने पाए और सामाजिक दूरी बनाए रखी जाए और दो, अधिक से अधिक लोगों को वैक्सीन के सुरक्षा घेरे में लाया जाए। वैक्सीन का उत्पादन बढ़ाने की तमाम कोशिशों के बीच भी यह स्पष्ट हो गया है कि 18 साल से ऊपर के लोगों को बड़े पैमाने पर टीके की जद में लाने का काम अगले महीने के दूसरे-तीसरे सप्ताह तक ही शुरू हो पाएगा। तब तक संक्रमण को यथासंभव रोके रखने का यही उपाय हो सकता है कि जिन इलाकों में वायरस के सबसे ज्यादा फैलने की आशंका हो, वहां सख्त लॉकडाउन घोषित किया जाए और देश के बाकी इलाकों में सावधानी के साथ आर्थिक गतिविधियां चलने दी जाएं ताकि महामारी और अर्थव्यवस्था दोनों मोर्चों पर स्थिति संभली रहे। जरूरी यह भी है कि टीके उपलब्ध हो जाने के बाद जब जोर-शोर से वैक्सिनेशन ड्राइव शुरू की जाए, तब भी इन 150 जिलों को प्राथमिकता में रखा जाए ताकि लॉकडाउन की सख्ती से मिला फायदा हाथ से निकल न जाए।

सौजन्य -  नवभारत टाइम्स।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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