जरूरी व गैर-जरूरी चीजों के खर्च पर सावधानी बरत रहे परिवार (बिजनेस स्टैंडर्ड)

महेश व्यास 

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने 7 अप्रैल को अपने नियमित उपभोक्ता विश्वास सर्वेक्षण की रिपोर्ट जारी की। यह 27 फरवरी से 8 मार्च, 2021 तक की अवधि से संबद्ध है। हम इसका उल्लेख मार्च 2021 के पहले सप्ताह के रूप में करेंगे। आरबीआई दो सूचकांक-वर्तमान स्थिति सूचकांक और भविष्य प्रत्याशा सूचकांक जारी करता है। दोनों शुद्ध प्रतिक्रियाओं को दर्शाते हैं, यानी बिगड़ती धारणा वालों के मुकाबले उन उत्तरदाताओं का अंतर जिनकी धारणा सुधर रही है। एक सूचकांक की गणना 100 से अधिक शुद्ध प्रतिक्रियाओं के रूप में की जाती है। यह भारत के 13 बड़े राज्यों की राजधानियों में परिवारों के विचारों को बताता है। इसलिए यह भारत के बड़े शहरों में उपभोक्ता विश्वास का एक सूचकांक होता है।


मार्च 2021 के पहले सप्ताह में वर्तमान स्थिति सूचकांक नकारात्मक था और यह जनवरी 2021 की शुरुआत में किए गए पिछले सर्वेक्षण की तुलना में बिगड़ गया था। भारतीय रिजर्व बैंक के विश्वास सर्वेक्षण में जो सूचकांक 100 से नीचे होता है, वह नकारात्मक होता है। 100 से नीचे वाला सूचकांक यह बताता है कि स्थितियों में गिरावट की प्रतिक्रियाएं सुधार का संकेत देने वाले लोगों से अधिक थीं। मार्च 2021 की शुरुआत में वर्तमान स्थिति सूचकांक 53.1 था, जबकि जनवरी 2021 की शुरुआत में यह 55.5 रहा। सितंबर 2020 में यह सूचकांक अपने निम्नतम स्तर 49.9 पर आ गया था। इसके बाद से इसमें मामूली सुधार हुआ है। लेकिन वर्तमान स्थिति सूचकांक अब भी एक साल पहले मार्च 2020 के 85.6 स्तर से काफी कम है। आरबीआई का वर्तमान स्थिति सूचकांक मार्च 2019 में एक सर्वेक्षण को छोड़कर पिछले चार वर्षों में किए गए सभी सर्वेक्षणों में नकारात्मक रहा है। आम तौर पर ऐसे उत्तरदाता जो यह मानते हैं कि एक साल पहले के मुकाबले मौजूदा हालात बदतर हैं, तकरीबन हमेशा ही उन लोगों से ज्यादा रहे हैं, जिनका यह मानना है कि एक साल पहले के मुकाबले हालात में सुधार हुआ है। निस्संदेह लगातार जारी रहने वाली यह नकारात्मक धारणा लॉकडाउन के बाद बदतर हो गई।


मार्च 2021 में वर्तमान स्थिति सूचकांक 53.1 के स्तर पर एक साल पहले की तुलना में 48 प्रतिशत कम था। इस गिरावट का यह स्तर शहरी भारत के लिए सीएमआईई के वर्तमान आर्थिक परिस्थितियों के सूचकांक में नजर आई 58 प्रतिशत गिरावट के समान है। सीएमआईई केसूचकांकों में ज्यादा बड़ी संख्या में शहर शामिल रहते हैं। अपेक्षाकृत छोटे शहरों में यह धारणा कुछ और ज्यादा खराब हो गई थी।


आरबीआई के उपभोक्ता विश्वास सूचकांकों और सीएमआईई की उपभोक्ता धारणा सूचकांकों के अवयव अलग-अलग होते हैं। सीएमआईई के सूचकांक पांच सवालों पर आधारित होते हैं - एक साल पहले की तुलना में परिवार की वर्तमान आय के संबंध में धारणाएं, भविष्य में एक साल के दौरान पारिवारिक आय की उम्मीदें, भविष्य में एक साल के दौरान और पांच साल के दौरान देश में आर्थिक परिस्थितियों की उम्मीदें तथा अंत में, क्या यह एक साल पहले की तुलना में टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुएं खरीदने का अच्छा समय है। पहला और अंतिम सवाल वर्तमान आर्थिक परिस्थितियों के सूचकांक का निर्माण करता है तथा अन्य तीन सवालों से उपभोक्ताओं की अपेक्षाओं के सूचकांक का निर्माण होता है।


आरबीआई के सूचकांक एक साल पहले की तुलना में वर्तमान धारणाओं तथा पांच विषयों-सामान्य आर्थिक परिस्थितियां, रोजगार, आय, कीमतें एवं मुद्रास्फीति तथा आवश्यक और गैर-आवश्यक व्यय को लेकर भविष्य की उम्मीदों पर आधारित होते हैं। हालांकि आरबीआई कई और सवाल पूछता है, लेकिन इनमें से कुछ सहसंबद्ध होते हैं। उदाहरण के लिए अगर कोई परिवार रोजगार के संबंध में नकारात्मक हो, तो इस बात की संभावना रहती है कि वह आय के संबंध में भी नकारात्मक होगा। ये दो संकेतक सकारात्मक रूप से भी सहसंबद्ध हैं। एक साल पहले की तुलना में मार्च 2021 के पहले सप्ताह में वर्तमान धारणाएं व्यय को छोड़कर सभी पांच विषयों के संबंध में नकारात्मक थीं। अधिक परिवार एक साल पहले और जनवरी 2021 की भी तुलना में आवश्यक व्यय में वृद्धि की सूचना दे रहे थे। लेकिन अनावश्यक व्यय में गिरावट आई है। केवल 12 प्रतिशत परिवारों ने ही अनावश्यक व्यय में वृद्धि की सूचना दी।


आवश्यक वस्तुओं पर व्यय में यह वृद्धि उच्च मुद्रास्फीति का परिणाम हो सकती है। मुद्रास्फीति में इजाफे की सूचना देने वाले परिवारों का अनुपात बढ़कर 88.8 प्रतिशत हो गया, जो करीब सात वर्षों का उच्चतम स्तर है। मुद्रास्फीति की संभावनाएं भी बढ़ चुुकी हैं। 81 प्रतिशत से अधिक परिवारों को लगता है कि मुद्रास्फीति बढ़ेगी। यह तीन साल के दौरान इस तरह का दृष्टिकोण जताने वाले परिवारों का सर्वोच्च अनुपात है।


जहां एक ओर आवश्यक वस्तुओं पर किया जाने वाला व्यय मूल्य परिवर्तन के प्रति संवेदनशील होता है, वहीं दूसरी ओर अनावश्यक वस्तुओं पर किया जाने वाला व्यय धारणाओं के प्रति संवेदनशील होता है। आवश्यक वस्तुओं पर किया जाने वाला व्यय विवेकाधीन नहीं होता है। लेकिन अनावश्यक वस्तुओं पर किया जाने वाला व्यय विवेकाधीन है।


मार्च की शुरुआत में जब आरबीआई ने कहा था कि 12 प्रतिशत शहरी परिवारों ने अनावश्यक वस्तुओं पर अपने व्यय में वृद्धि की है तथा 59 प्रतिशत ने इसमें कटौती की है, तब सीएमआईई के सर्वेक्षण में कहा गया था कि चार प्रतिशत शहरी परिवार टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुएं खरीदने के लिए इसे अच्छा समय समझते हैं तथा 54 प्रतिशत ने कहा कि एक साल पहले की तुलना में टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुएं खरीदने के लिए यह सबसे खराब समय है। ये दोनों ही सर्वेक्षण हमें यह बताते हैं कि देश के शहरी परिवार अनावश्यक या विवेकाधीन व्यय करने के प्रति सावधानी बरतना जारी रख रहे हैं। जब तक यह सावधानी जारी रहेगी, तब तक आर्थिक सुधार मायावी बना रहेगा।

सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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