गांवों के समीप कस्बों और छोटे शहरों में स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर स्थिति में नहीं हैं और बड़े शहरों के अस्पताल पहले से ही गहन दबाव में हैं। उचित यह होगा कि ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना संक्रमण से बचे रहने के उपायों का पालन कराने वाले सक्रिय हों।
राष्ट्रीय पंचायत राज दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री ने यह कहकर समय रहते लोगों को आगाह किया कि कोरोना संक्रमण को गांवों तक पहुंचने से रोकना होगा। उनकी इस अपील पर न केवल ग्रामीण जनता, बल्कि संबंधित प्रशासन के लोगों को भी गंभीरता से ध्यान देना चाहिए। यह सही है कि पिछले साल कोरोना संक्रमण की लहर को गांवों तक पहुंचने से रोक दिया गया था, लेकिन इस बार इसका खतरा इसलिए अधिक बढ़ गया है, क्योंकि एक तो संक्रमण की दूसरी लहर बहुत तेज है और दूसरे, बड़े शहरों से तमाम कामगार अपने गांव लौट चुके हैं या फिर लौट रहे हैं। चूंकि इनके जरिये ग्रामीण आबादी के बीच कोरोना आसानी से फैल सकता है, इसलिए उन्हेंं गांवों से बाहर स्कूलों, पंचायत भवनों आदि में क्वारंटाइन करने और उनके स्वास्थ्य की निगरानी करने का काम तत्काल प्रभाव से होना चाहिए। ये दोनों काम प्राथमिकता के आधार पर सही तरह से हों, इसकी चिंता खुद गांव वालों को भी करनी होगी। कई गांवों ने इस मामले में अनुकरणीय उदाहरण पेश किया है, लेकिन यह भी सही है कि देश के कुछ ग्रामीण इलाकों में कोरोना संक्रमण सिर उठाता दिख रहा है। यह शुभ संकेत नहीं। हालांकि ग्रामीण इलाकों में आबादी का घनत्व कम है और वहां का रहन-सहन भी शहरों से अलग है, लेकिन यदि गांवों में कोरोना ने अपने पैर पसारे तो हालात संभालने मुश्किल होंगे।
इस तथ्य से हर किसी को परिचित होना चाहिए कि गांवों के समीप कस्बों और छोटे शहरों में स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर स्थिति में नहीं हैं और बड़े शहरों के अस्पताल पहले से ही गहन दबाव में हैं। उचित यह होगा कि ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना संक्रमण से बचे रहने के उपायों का पालन कराने वाले सक्रिय हों। इसके लिए राज्य सरकारों और उनके प्रशासन को भी सजगता दिखानी होगी। वास्तव में सक्रियता और सजगता न केवल संक्रमण से बचे रहने के लिए दिखानी होगी, बल्कि इसके लिए भी कि सभी पात्र लोग जल्द से जल्द टीका लगवाएं। टीकाकरण के मौजूदा चरण और एक मई से शुरू होने वाले अगले चरण में ग्रामीण जनता की बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी उतनी ही जरूरी है, जितनी शहरी जनता की। टीकाकरण अभियान को गति देने और उसकी पहुंच को प्रभावी बनाने के लिए टीके की महत्ता से परिचित कराने का काम भी जोर-शोर से शुरू कर दिया जाना चाहिए। इसमें योगदान देने के लिए ग्रामीण क्षेत्र की जनता का प्रतिनिधित्व करने वालों को आगे आना चाहिए। यह इसलिए जरूरी है, क्योंकि टीके को लेकर अभी भी हिचक दिख रही है। इस हिचक को तोड़ने के लिए हर संभव कोशिश न केवल होनी चाहिए, बल्कि होते हुए दिखनी भी चाहिए।
सौजन्य - दैनिक जागरण।
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