वनिता कोहली-खांडेकर
देश में टेलीविजन का भविष्य क्या है? क्या यह ग्रामीण क्षेत्रों का माध्यम बनकर रह जाएगा? ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल (बार्क) की ओर से हाल में जारी आंकड़ों को देखकर तो ऐसा ही लग रहा है। आंकड़ों के मुताबिक टेलीविजन देखने वाले भारतीयों की तादाद 19.7 करोड़ घरों में 83.6 करोड़ से बढ़कर 21 करोड़ घरों में 89.2 करोड़ पहुंच गई। इनमें से 11.9 करोड़ घरों के 50.8 करोड़ लोग ग्रामीण जबकि 9.1 करोड़ घरों के 38.4 करोड़ लोग शहरी हैं।
यदि वर्ष 2016, 2018 और 2020 के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि टीवी के आधे से थोड़े अधिक दर्शक और घर हमेशा से ग्रामीण भारत में रहे। लेकिन राजस्व जुटाने की दृष्टि से अहम यानी टीवी देखने में बिताए गए समय के हिसाब से देखें तो शहरी भारत आगे है। विज्ञापन से जुड़ा राजस्व इसी से तय होता है। एक शहरी दर्शक आमतौर पर 4 घंटे 27 मिनट टीवी देखता है जबकि ग्रामीण दर्शक तीन घंटे 43 मिनट। इसकी एक वजह कम नमूने लेना या बिजली की दिक्कत भी हो सकती है। लब्बोलुआब यह है कि ग्रामीण और शहरी दोनों इलाकों में काफी लोग टीवी देखते हैं। टीवी अभी भी 1,38,300 करोड़ रुपये के भारतीय मीडिया और मनोरंजन उद्योग में दर्शकों और राजस्व के मामले में सबसे बड़ा हिस्सेदार है। यानी देश भर में टीवी देखने वाले घरों में टीवी देखने में बढ़ता समय वृद्धि का हिस्सा है।
बार्क, फिक्की-ईवाई और मीडिया पार्टनर्स एशिया की हाल में जारी रिपोर्ट टीवी के भविष्य के बारे में दो संकेत देती हैं। पहली बात यह कि भुगतान करने वाले बाजार और नि:शुल्क बाजार की रूपरेखा एकदम स्पष्ट है। इनके बीच तमाम तकनीक और भौगोलिक क्षेत्रों के दरमियान स्पष्ट अंतर है। कहा जा सकता है कि 65,000 करोड़ रुपये के ब्रॉडकास्ट कारोबार में दो समांतर व्यवस्थाएं विकसित हो रही हैं। करीब छह करोड़ घर ऐसे हैं जहां फ्रीटुएयर चैनल चलते हैं। इनमें चार करोड़ डीडी फ्रीडिश वाले हैं जबकि दो करोड़ ऐसे बुनियादी केबल वाले जहां कोई चैनल ऐसा नहीं होता जिसे भुगतान करके देखा जाए। ये 25,100 करोड़ रुपये के टेलीविजन विज्ञापन राजस्व के लिए सबसे बड़ी ताकत बनकर उभर रहे हैं। इससे पहले अधिकांश भारतीय घरों में नि:शुल्क और भुगतान वाले चैनलों का एक मिश्रण देखा जाता था।
फिक्की-ईवाई की रिपोर्ट के अनुसार 2020 में टीवी वाले घरों की तादाद बढऩे के बावजूद सबस्क्रिप्शन राजस्व में कमी आई। अभी भी भुगतान वाले टीवी का दबदबा है लेकिन 20 लाख परिवार इससे दूर हुए हैं। ऐसा भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण यानी ट्राई के नए आदेश के कारण हुआ है जिसने प्रसारकों के लिए चैनलों को समूह में बेचना मुश्किल बना दिया है। वहीं उपभोक्ताओं के लिए चैनल का चयन करना किसी दु:स्वप्न से कम नहीं। डीडी फ्रीडिश की तादाद में इजाफा हुआ है। यही कारण है कि दंगली टीवी जैसे अनजाने चैनलों का विस्तार हुआ और मई 2020 के लॉकडाउन के दौरान शेमारू टीवी जैसे एक अन्य नि:शुल्क चैनल की शुरुआत हुई। इस वर्ष के आरंभ में छह करोड़ रुपये की पहली बोली से लेकर अधिकतम बोली 21 करोड़ रुपये तक गई। यह इस क्षेत्र के सबसे अहम मंच के रूप में उभर रहा है। देश के दो सबसे बड़े विज्ञापन आधारित और नि:शुल्क ओटीटी ब्रांड यू ट्यूब और एमएक्स प्लेयर भी इसी श्रेणी में आते हैं। क्या टीवी के लिए भुगतान की व्यवस्था मझोले और निचले स्तर के लोगों को नि:शुल्क सामग्री की ओर धकेल रही है और शीर्ष स्तर के लोग भुगतान वाले ओटीटी का इस्तेमाल कर रहे हैं? मीडिया पार्टनर एशिया के मुताबिक 2020 में भारत में पांच करोड़ से अधिक ओटीटी ग्राहक थे। ऐसे लोग बेहतर गुणवत्ता वाले ड्रामा, फिल्म या वृत्तचित्र देखने के लिए ओटीटी कंपनियों को 100 रुपये से 800 रुपये तक का मासिक भुगतान कर रहे हैं। डिज्नी हॉटस्टार, नेटफ्लिक्स और एमेजॉन प्राइम वीडियो इस क्षेत्र की तीन बड़ी कंपनियां हैं। ये 6.7 करोड़ भुगतान करने वाले डीटीएच घरों और एक-दो करोड़ उच्च मूल्य वाले केबल प्रयोगकर्ताओं पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं। सन 2020 के आखिर तक करीब 40 करोड़ भारतीय वीडियो स्ट्रीमिंग कर रहे थे। इनमें से अनेक 89.2 करोड़ टेलीविजन दर्शकों में शामिल हैं।
क्या टीवी ओटीटी के समक्ष घुटने टेक देगा?
ये दोनों क्षेत्र एक दूसरे की वृद्धि के लिए अहम हैं। टीवी ओटीटी का दायरा बढ़ाने में मदद कर रहा है और इसका उलट भी उतना ही सही है। भारत में कुछ बड़े ओटीटी कारोबार, ब्रॉडकास्ट कंपनियों के हैं। मिसाल के तौर पर जी5, डिज्नी हॉटस्टार और वूट आदि। ओटीटी में 50 फीसदी लोग टीवी की सामग्री देखते हैं। कॉमस्कोर के वरिष्ठ उपाध्यक्ष और एपीएसी प्रमुख ने गत वर्ष बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा था, 'स्टार प्लस का सबसे बड़ा धारावाहिक हॉटस्टार का सबसे बड़ा शो होगा। यही बात जी5 और कलर्स पर भी लागू होती है। टीवी पर आपकी सामग्री कितनी मजबूत है, यही बात ओटीटी पर भी निर्णायक साबित होती है।' ओटीटी पर 10 भारतीय ब्रांड में से केवल तीन ही तकनीकी कंपनियां हैं शेष का संबंध किसी न किसी स्टूडियो या ब्रॉडकॉस्टर से है। प्रिंट कंपनियों के उलट प्रसारण कंपनियां ऑनलाइन निवेश में आगे रही हैं।
देश में अब स्मार्ट टीवी की कीमत घटकर 7,000 रुपये तक आ गई है। ब्रॉडबैंड भी काफी सस्ता है। सन 2020 में देश में 2.5 करोड़ स्मार्ट टीवी थे और इनमें लगातार इजाफा हो रहा है। पिछले दिनों एक आयोजन में मीडिया पार्टनर्स एशिया के कार्यकारी निदेशक विवेक कूटो ने कहा, 'टीवी अभी भी मुनाफे का सौदा है और उसमें वृद्धि की गुंजाइश है।' ऑस्ट्रेलिया, भारत, इंडोनेशिया और जापान जैसे देशों में यह बात खासतौर पर लागू है। यदि इसका रेखीय स्वरूप एक छोटे बाजार तक सिमट जाता है तो भी प्रसारण कंपनियां दर्शकों और सामग्री की अपनी समझ के साथ स्ट्रीमिंग कारोबार में अपना दबदबा कायम रखेंगी। यह एक लंबी और सुखद साझेदारी होगी।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
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