इस समय स्वास्थ्य संसाधन बेहद दबाव में हैं। इसके चलते ही अफरातफरी का माहौल है। कोरोना मरीज अस्पतालों में बेड की कमी से लेकर ऑक्सीजन तक की किल्लत का सामना कर रहे हैं। उन्हें कुछ दवाओं की तंगी से भी दो-चार होना पड़ रहा है।
कोरोना की दूसरी लहर से उपजे संकट का सामना करने के लिए मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक में प्रधानमंत्री ने यह सही कहा कि यदि हम सब एकजुट होकर काम करेंगे तो संसाधनों की कमी आड़े नहीं आएगी, लेकिन इसकी अनदेखी भी नहीं की जा सकती कि इस समय स्वास्थ्य संसाधन बेहद दबाव में हैं। इसके चलते ही अफरातफरी का माहौल है। कोरोना मरीज अस्पतालों में बेड की कमी से लेकर ऑक्सीजन तक की किल्लत का सामना कर रहे हैं। उन्हें कुछ दवाओं की तंगी से भी दो-चार होना पड़ रहा है। इस विकट स्थिति का निवारण करने के लिए न केवल युद्धस्तर पर जुटना होगा, बल्कि केंद्र और राज्यों से लेकर नागरिक प्रशासन और स्वास्थ्य सेवाओं के बीच उचित समन्वय भी कायम करना होगा। नि:संदेह संकट इसलिए और बढ़ गया है कि एक तो आवश्यक समन्वय का अभाव दूर नहीं हो पा रहा और दूसरे, चुनौतियों से पार पाने के लिए समय रहते किसी कारगर रणनीति का निर्माण नहीं किया जा सका। कम से कम अब तो ऐसा किया ही जाना चाहिए।
इन दिनों सबसे अधिक चीख-पुकार वाली स्थिति ऑक्सीजन की कमी को लेकर है। हालांकि सभी जरूरतमंद अस्पतालों को ऑक्सीजन उपलब्ध कराने के लिए हरसंभव प्रयास हो रहे हैं, लेकिन अस्पतालों की अपनी सीमित क्षमता और ऑक्सीजन की मांग में बेहिसाब वृद्धि के कारण समस्याएं सिर उठाए हुए हैं। चूंकि देश के ज्यादातर अस्पताल सीमित मात्रा में ऑक्सीजन भंडारण क्षमता रखते हैं और आजकल उसकी खपत उम्मीद से कहीं अधिक बढ़ गई है, इसलिए चारों ओर उसकी कमी का शोर है। यह शोर इसलिए और बढ़ गया है, क्योंकि कई अस्पताल प्रबंधन ऑक्सीजन की कमी की गुहार अग्रिम रूप से करने लगे हैं। उनकी चिंता जायज है, लेकिन इससे कोरोना मरीजों और उनके स्वजन में दहशत कायम हो जाती है और फिर वह जंगल में आग की तरह फैलती है। अस्पतालों में ऑक्सीजन की खपत यकायक बहुत बढ़ जाने के बाद भी इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि जैसे-तैसे उसकी आर्पूित हो जा रही है। अस्पतालों के प्रबंधन और केंद्र एवं राज्य सरकारों को यह देखना चाहिए कि आपाधापी की यह स्थिति कैसे जल्द खत्म हो, क्योंकि जब तक ऐसा नहीं होता, तब तक संकट के बादल छंटने नहीं दिखेंगे। संकट को नियंत्रित करने के लिए यह भी आवश्यक है कि स्वास्थ्य संसाधनों पर दबाव कम हो। ऐसा तब होगा, जब कोरोना मरीजों की बढ़ती संख्या पर लगाम लगेगी। इसके लिए आम लोगों को संक्रमण से बचे रहने के लिए अपनी सावधानी का स्तर और अधिक बढ़ाना होगा। यह सबको समझना ही होगा कि जब संक्रमित होने वालों की संख्या में कमी आएगी, तभी वास्तविक राहत मिलेगी।
सौजन्य - दैनिक जागरण।
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