महेश व्यास
अप्रैल 2021 आशंका से भी अधिक बुरा साबित हुआ। हमारा अनुमान था कि श्रम भागीदारी दर (एलपीआर) मार्च 2021 के स्तर पर स्थिर हो जाएगी। फरवरी में साधारण गिरावट के बाद मार्च में एलपीआर तेजी से गिरी थी। लेकिन यह लगातार तीसरे महीने गिरकर अप्रैल में 39.98 फीसदी हो गई। मई 2020 के बाद यह एलपीआर का सबसे कम स्तर है। राष्टï्रीय लॉकडाउन हटने के बाद से सबसे खराब एलपीआर अप्रैल 2021 में रही है। शायद यह गिरावट कई राज्यों में लगे लॉकडाउन का नतीजा है। मसलन, आंशिक लॉकडाउन लगाने वाले महाराष्ट्र की एलपीआर मार्च के 44.2 फीसदी से गिरकर अप्रैल में 40.6 फीसदी हो गई।
अप्रैल 2021 में कुल कामगारों की संख्या 11 लाख कम होकर 42.46 करोड़ हो गई जबकि मार्च में 42.58 करोड़ लोग काम कर रहे थे। कामगारों का यह छोटा समूह रोजगार की तलाश में लगा था लेकिन अधिकतर लोगों को नया काम नहीं मिल पाया। इसका नतीजा यह हुआ कि बेरोजगारी दर मार्च 2021 के 6.5 फीसदी से बढ़कर अप्रैल में 8 फीसदी हो गई। रोजगार दर 36.8 फीसदी पर आ गई जो मार्च में 37.6 फीसदी थी।
राज्यों में लगा आंशिक लॉकडाउन लोगों को रोजगार तलाशने से रोक सकता था जिससे श्रम भागीदारी कम होती। लेकिन रोजगार की तलाश कर रहे लोगों को समुचित संख्या में रोजगार नहीं मिल पाया। श्रम बाजारों में व्याप्त थकान की वजह आंशिक लॉकडाउन ही नहीं थे। इसकी बड़ी वजह यह थी कि अर्थव्यवस्था उन लोगों को रोजगार नहीं दे पाई जो काम की तलाश कर रहे थे।
अप्रैल में रोजगार-प्राप्त लोगों की संख्या में 73.5 लाख की कहीं बड़ी गिरावट दर्ज की गई। मार्च 2021 में 39.815 करोड़ लोगों को रोजगार मिला हुआ था लेकिन अप्रैल में यह संख्या घटकर 39.079 करोड़ रह गई। अप्रैल में बड़े पैमाने पर हुई रोजगार क्षति ने 10 लाख से अधिक कामगारों को अस्थायी तौर पर काम की तलाश से ही शायद दूर कर दिया है। काम करने को तैयार और काम तलाशने के बावजूद नाकाम रहने वाले बेरोजगारों की संख्या अप्रैल में 62 लाख बढ़कर 3.39 करोड़ हो गई जबकि एक महीने पहले यह 2.77 करोड़ थी।
निराशा के माहौल में श्रम बाजार से दूर होने वाले लोगों ने इसे पूरी तरह नहीं छोड़ा। वे लोग उस बेरोजगार श्रमबल के तौर पर हाशिये पर ही रहे जो काम मिलने पर काम करने को तैयार थे लेकिन शिद्दत से काम की तलाश में नहीं लगे थे। काम करने को तैयार लेकिन सक्रियता से उसकी तलाश नहीं कर रहे बेरोजगारों के इस समूह की गिनती अप्रैल में 1.94 करोड़ थी जबकि मार्च में यह आंकड़ा 1.61 करोड़ था।
जहां एलपीआर में गिरावट के लिए आंशिक लॉकडाउन को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, वहीं रोजगार में गिरावट के लिए यही बात नहीं कही जा सकती है। अधिकांश रोजगार क्षति कृषि क्षेत्र में हुई जो लॉकडाउन की मार से बेअसर है। अप्रैल में रोजगार गंवाने वाले 73.5 लाख लोगों में से 60 लाख कृषि क्षेत्र के ही हैं। दरअसल अप्रैल का महीना कृषि क्षेत्र में रोजगार के लिहाज से ढीला होता है। तब तक रबी फसल की कटाई हो चुकी होती है और खरीफ फसलों की बुआई की तैयारी मई के आखिर में ही शुरू होती है। मार्च में कृषि क्षेत्र में 12 करोड़ लोगों को रोजगार मिला था लेकिन अप्रैल में यह आंकड़ा 11.4 करोड़ हो गया।
दिहाड़ी मजदूरों एवं छोटे कारोबारियों को मिले रोजगार में अप्रैल में 6 लाख की गिरावट दर्ज की गई। इनमें से कुछ कृषि एवं दिहाड़ी मजदूरों को संभवत: निर्माण क्षेत्र में काम मिल गया हो क्योंकि इस महीने में निर्माण गतिविधियों में 24 लाख रोजगार बढ़े। लेकिन कृषि एवं दिहाड़ी काम से दूर हुए 66 लाख लोगों में से अधिकतर को इस महीने बेरोजगार ही रहना पड़ा।
वेतनभोगी कर्मचारियों की संख्या में 34 लाख की बड़ी गिरावट देखी गई है।
यह लगातार तीसरा महीना है जब रोजगार के लिहाज से बेहद अहम इस तबके की संख्या कम हुई है। इन तीन महीनों में वेतनभोगी कर्मचारियों की संख्या में कुल गिरावट 86 लाख की गिरावट आई है। अगर महामारी शुरू होने के बाद से अब तक हुए कुल नुकसान की बात करें तो यह आंकड़ा 1.26 करोड़ तक पहुंच जाता है। वर्ष 2019-20 में तयशुदा वेतन पर काम करने वाले कर्मचारियों की संख्या 8.59 करोड़ थी लेकिन अप्रैल 2021 में यह संख्या सिर्फ 7.33 करोड़ ही रह गई।
वेतनभोगी नौकरियां जाने की दर ग्रामीण भारत में गैर-आनुपातिक रूप से काफी अधिक रही है। शहरी वेतनभोगी नौकरियों की गिनती वर्ष 2019-20 में कुल वेतनभोगी कर्मियों का करीब 58 फीसदी थी लेकिन अप्रैल तक नौकरियां गंवाने वालों में इस समूह की हिस्सेदारी 32 फीसदी ही है। वहीं कुल वेतनभोगी रोजगार में ग्रामीण वैतनिक नौकरियों का अनुपात 42 फीसदी होने के बावजूद नौकरियां गंवाने के मामले में इसकी हिस्सेदारी 68 फीसदी रही है।
यह बेमेल अनुपात दर्शाता है कि महामारी की आर्थिक मार सबसे ज्यादा मझोले एवं छोटे स्तर के उद्योगों को ही उठानी पड़ी है जो मुख्य रूप से छोटे शहरों एवं ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित हैं।
सच तो यह है कि वर्ष 2021-22 में भी रोजगार की संभावनाएं धूमिल नजर आ रही हैं। कोविड-19 की दूसरी लहर ने भारतीय अर्थव्यवस्था की रिकवरी को बाधित किया है। पूर्वानुमान लगाने वाली एजेंसियां इस वित्त वर्ष के लिए अपने आकलन को आगे बढ़ाती रही हैं। इस साल बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा कर सकने वाले नए निवेश की संभावनाएं न के बराबर हैं। भारतीय रिजर्व बैंक की मानें तो क्षमता का उपयोग सिर्फ 66.6 फीसदी ही है। उसके बाद इसमें सुधार होने की संभावना नहीं है।
सरकार को आजीविका पर आया तनाव दूर करने के लिए एक बार फिर मनरेगा के तहत रोजगार समर्थन देना पड़ सकता है। अप्रैल 2021 में मनरेगा के तहत 30.1 करोड़ लोगों को काम मिला जो अप्रैल 2020 में मुहैया कराए गए रोजगार अवसरों के दोगुने से भी अधिक था।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
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