देवाशिष बसु
कोविड-19 संकट की छाया में वित्त वर्ष 2021 की दूसरी छमाही में शेयर बाजारों में आई तेजी ने सभी को उलझन में डाल दिया है। ऐसे समय में जब दुनिया एक भयंकर महामारी की चपेट में है, बाजार में उछाल किसी विरोधाभास से कम नहीं है। बाजार में तेजी उत्साह का विषय जरूर है, लेकिन मौजूदा चुनौतीपूर्ण हालात में इसके विश्लेषणकी भी आवश्यकता है। आखिर मार्च में शुरू हुई कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के बीच बाजार मजबूती के साथ कैसे खड़ा है?
भारत इस समय कोविड-19 महामारी की अभूतपूर्व चुनौती से निपट रहा है। जैसा कि जाने-माने टिप्पणीकार ऐंडी मुखर्जी ने समाचार एजेंसी ब्लूमबर्ग में लिखा है, 'करीब 75 वर्ष पहले स्वतंत्रता प्राप्ति और उसके बाद विभाजन की त्रासदी के पश्चात भारत सबसे बड़ी और भयावह विपदा का सामना कर रहा है। पिछले दो सप्ताहों से प्रति दिन संक्रमण के 3 लाख से अधिक मामले आ रहे हैं और भारत सहित पूरी दुनिया विवश नजर आ रही है। धनी और संपन्न देशों के लिए भी अस्पताल में मरीजों के लिए बिस्तर और ऑक्सीजन सिंलिंडर का प्रबंध करना मुश्किल हो रहा है। लेकिन इन बातों के बीच बेंचमार्क निफ्टी 50 सूचंकाक मध्य फरवरी से मात्र 5 प्रतिशत से भी कम फिसला है। आय के 32 गुना स्तर पर यहां मूल्यांकन चीन के मुकाबले दोगुना है। इस तरह, भारत बाजार मूल्यांकन के लिहाज से काफी महंगा दिख रहा है।' मुखर्जी और अन्य टिप्पणीकारों के अनुसार ये सभी चीजें बाजार में तेजी से मेल नहीं खाती हैं।
अगर हम सभी इस बात पर सहमत होने की कोशिश करते हैं कि लघु अवधि में बाजार की दशा-दिशा का अंदाजा लगाना एक दुरूह कार्य है तो हमें स्वााभाविक तौर पर यह भी उम्मीद नहीं रखनी चाहिए कि बाजार निकट अवधि में हमारी उम्मीदों के हिसाब से करवट लेगा। साथ ही, जब ऐसा नहीं होता है तो हमें दुखी भी नहीं होना चाहिए। शेयर बाजार शेयरों का बाजार है। यह कथन सुनने में अटपटा और गैर-जरूरी लग रहा है लेकिन हम इस सरल तथ्य पर अक्सर ध्यान नहीं देते हैं। शेयर बाजार सूचकांकों में शामिल कंपनियों के प्रदर्शन को ही इंगित करते हैं। यहां प्रदर्शन से तात्पर्य कंपनियों के शेयरों की मौजूदा चाल और भविष्य में उनकी संभावनाओं से है।
अगर सूचकांक तेजी से नीचे गिरते हैं तो निवेशकों को यह जरूर समझ लेना चाहिए कि ज्यादातर शेयर भी भविष्य में कहीं अधिक फिसलेंगे। आखिर, निवेशक निवेश के तौर पर अपनी रकम लगाते हैं जबकि विशेषज्ञों के विचार गलत भी साबित होते हैं तो उनका कोई वास्तविक असर नहीं होता है। लिहाजा, अगर कोविड-19 महामारी के इस भयावह दौर में भी बाजार नीचे नहीं जा रहा है तो इसे आधारहीन बताकर खारिज करने के बजाय हमें इसके कारणों पर विचार करना चाहिए। पिछले साल बाजार में खूब तेजी दिखी और इस समय भी यह बरकरार है। यह भी ऐसे समय में हुआ है जब देश अभूतपूर्व स्वास्थ्य संकट से जूझ रहा है और उत्तर प्रदेश, दिल्ली, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में सरकार एवं प्रशासन नाम की कोई चीज नहीं दिख रही है। शेयर बाजार में तेजी की दो वजह हैं। पहली कंपनियों की कमाई और दूसरी निवेश के लिए वैकल्पिक साधनों का अभाव।
आय के मजबूत आंकड़े
निवेशक सूचीबद्ध कंपनियों की तिमाही आय पर पैनी नजर रखते हैं। तिमाही आय देखकर ही इस बात का अंदाजा लगाने और राय व्यक्त करने की शुरुआत होती है कि किसी कंपनी की चाल आने वाले समय में कैसी रहने वाली है। कई कंपनियां तिमाही नतीजों की घोषणा के बाद कॉन्फ्रेंस कॉल आयोजित करती हैं जिनमें विश्लेषक और निवशेक अतिरिक्त जानकारियां और कारोबारी रुझानों का अंदाजा लगाने के लिए सवाल पूछते हैं।
आवास फाइनैंशियर्स ने अपने कारोबार के आंकड़े कुछ इस तरह बताएं हैं। 31 मार्च, 2021 तक 125,591 खाते अस्तित्व में थे। इनकी संख्या सालाना आधार पर 20 प्रतिशत दर से बढ़ी है। आवास की शाखाएं भी एक वर्ष पहले के 250 से 10 प्रतिशत से भी अधिक बढ़कर 280 हो गईं। कर्मचारियों की संख्या भी एक साल में 22 प्रतिशत बढ़कर 4,336 हो गई, जो 3,564 थी। प्रबंधनाधीन परिसंपत्तियों में भी 21 प्रतिशत तेजी देखी गई। क्या ये आंकड़े कारोबारी सुस्ती, मंदी या कोविड-19 महामारी के असर की ओर इशारा करते हैं? अहम बात यह है कि ये आंकड़े भारत को कोविड-19 की चपेट में आने के ठीक 12 महीने के दौरान के हैं।
अगले तीन से पांच वर्षों के दौरान कंपनी प्रबंधन 20 से 25 प्रतिशत वृद्धि दर हासिल करने का लक्ष्य लेकर चल रहा है। अब इन आंकड़ों को देखते भी हुए भी इस निष्कर्ष पर पहुंचना उचित नहीं लगता कि आवास के निवेशकों का दिमाग फिर गया है। ऐसा तभी होगा जब हम आंख मूंद कर मान लें कि कंपनी प्रबंधन झूठ बोल रहा है और हमारे पास उनसे बेहतर जानकारियां हैं। (खुलासा: हमारी एक पीएमएस योजना में आवास का निवेश है। )
आवास की तरह ही सैकड़ों कंपनियों की यही कहानी है। वैश्विक कंपनी आरएचआई मैग्नेशिया के अध्यक्ष एवं मुख्य कार्याधिकारी स्टीफन बोरगास ने अपनी कंपनी की कॉन्फ्रेंस कॉल में कहा, 'चौथी तिमाही में भारत उन बाजारों में शामिल रहा है, जहां तेजी से सुधार दिखा है।' बोरगास यह जरूर मानते हैं कि अगली तिमाही कमजोर रहेगी लेकिन कारोबार काफी तेजी से सुधरेगा। लगभग हरेक क्षेत्रों में अत्यधिक मांग दिखी है और कंपनियों का प्रदर्शन भी शानदार रहा है। यह बात थोड़ी आश्चर्यजनक लगती है और इसके कारण भी स्पष्टï नहीं लग रहे हैं।
निर्माण सामग्री, इस्पात, परिधान, प्लास्टिक, दवा, सॉफ्टवेयर और रसायनों की खासी मांग दिखी है। पॉलीस्टीरिन बनाने वाली सुप्रीम इंडस्ट्रीज ने मार्च तिमाही में 232 करोड़ रुपये मुनाफा दर्ज किया है। यह कंपनी का अब तक का सर्वाधिक आंकड़ा है। इससे पहले कंपनी ने 2016-17 में 179 करोड़ रुपये मुनाफा दर्ज किया था।
कम से कम अब तक कंपनियों के जो नतीजे आए हैं वे बाजार में आई तेजी को उचित ठहरा रहे हैं। मई 2020 में जब कोविड-19 से हो रही मौत, ऊंची बेरोजगारी दर, ठप कारोबार, प्रवासी मजदूर संकट, फंसे कर्ज में बढ़ोतरी की चिंताओं के बीच बाजार में तेजी शुरू हुई थी तो उस समय हमारे पास बहुत अच्छे कारण मौजूद नहीं थे।
हम अक्सर मान लेते हैं कि हम अपने इर्द-गिर्द जो देखते हैं और बाजार में जो होता है उनके बीच परस्पर संबंध होता है। मानव स्वभाव कुछ ऐसा है कि हम किसी खास घटना को एक वृहद संदर्भ में देखना शुरू करते हैं। असल में जब बड़े कारोबारी संस्थानों ने 2020 के मध्य में कहा था कि उन्हें नहीं पता कि वे किस दिशा में जा रहे हैं तो उस समय भी बाजार चढ़ा था और उसके बाद कारोबारों ने शानदार छलांग लगाई थी।
हालांकि इसका यह मतलब भी नहीं कि बाजार में तेजी लगातार जारी रहेगी और किसी तरह की चिंता करने की जरूरत नहीं है। अगर कमाई कम हुई, ब्याज दरें बढीं या कोई बाहरी झटका आया तो बाजार में तेज गिरावट आएगी। कुल मिलाकर मैं यह कहने की कोशिश कर रहा हूं कि हमें यह नहीं मालूम था कि 2020 में वैश्विक आर्थिक संकट, सामाजिक एवं स्वास्थ्य संकट के बीच बाजार में तेजी दिखेगी। हमें यह भी मालूम नहीं था कि कंपनियों के मुनाफे चौंकाने वाले और इतने शानदार रहेंगे। हम यह भी नहीं जानते कि भविष्य में क्या होगा।
(लेखक डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डॉट मनीलाइफ डॉट इन के संपादक हैं।)
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
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