आकाश प्रकाश
अमेरिका और चीन के बीच तकनीकी जंग काफी हद तक सेमीकंडक्टर को लेकर है। सेमीकंडक्टर अथवा चिप/एकीकृत सर्किट हर डिजिटल उत्पाद या डिजिटलीकरण का आधार हैं। इनका इस्तेमाल बढ़ता ही जा रहा है। उदाहरण के लिए एक साधारण मैकबुक मेंं 16 अरब ट्रांजिस्टर होते हैं जबकि सन 1969 मेंं चांद पर उतरे अपोलो लूनर मॉड्यूल में इनकी तुलना में केवल कुछ हजार ट्रांजिस्टर थे। 5जी के आने के बाद हर उत्पाद में ऐसी चिप लगेंगी। एक इलेक्ट्रिक व्हीकल में मौजूदा दौर की सबसे बेहतर कारों के कंबस्चन इंजन की तुलना में तीन से पांच गुना चिप लगेंगी।
रणनीतिक दृष्टि से देखें तो चिप आज तेल से अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। चीन तेल की तुलना में 50 फीसदी अधिक आईसी का आयात करता है। यह चीन का सबसे बड़ा आयात है। वह दुनिया में चिप का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। दुनिया की कुल सेमीकंडक्टर मांग का 25 से 33 फीसदी चीन से आता है।
सेमीकंडक्टर मूल्य शृंखला की अधिकांश अहम तकनीकों में अमेरिका या उसके साथियों का दबदबा है। वैश्विक तकनीक और भूराजनीतिक नेतृत्व पर दबदबे मेंं इसकी अहम भूमिका है। टं्रप प्रशासन में इसे बतौर हथियार इस्तेमाल किया गया और अमेरिकी सरकार चुनौती देने में सक्षम किसी भी चीनी कंपनी को झुकाने में कामयाब रही। एक समय दुनिया की सबसे बड़ी स्मार्टफोन निर्माता कंपनी रही हुआवेई को अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण अपनी बाजार हिस्सेदारी गंवानी पड़ी थी। चीन ने अपनी कमजोरी को 2014 मेंं ही पहचान लिया था और उसने एक विशाल एवं प्रतिस्पर्धी सेमीकंडक्टर उद्योग स्थापित करने का निर्णय लिया। उसने सरकार समर्थित औद्योगिक नीति के साथ इसे आगे बढ़ाया और सैकडों अरब डॉलर की अनुदान राशि, प्रत्यक्ष फंडिंग, कर छूट और सस्ती पूंजी का इस्तेमाल किया। उसने वैश्विक अधिग्रहण और विलय के जरिये तकनीक हासिल करने का प्रयास भी किया। उच्च गति वाली रेल, नवीकरणीय ऊर्जा, इलेक्ट्रिक व्हीकल और बैटरी या कृत्रिम मेधा जैसे अन्य औद्योगिक नीति के अन्य क्षेत्रों में व्यापक सफलता के बाद चीन को सेमीकंडक्टर में सिद्धहस्तता हासिल करने में कठिनाई हुई। सेमीकंडक्टर मूल्य शृंखला पर नजर डालें तो उच्च वर्ग में चीन की सीमित पंहुच है।
चीन के पास वैश्विक चिप निर्माण के 20 फीसदी के बराबर क्षमता है। इसका बड़ा हिस्सा विदेशी कंपनियों मसलन टीएसएमसी या सैमसंग के पास है। विदेशी स्वामित्व वाली कंपनियां कुल उत्पादन के 50 फीसदी के लिए जवाबदेह हैं। जबकि कुल कीमत में उनकी हिस्सेदारी 75 फीसदी है। चीन के स्वामित्व वाली पूरी क्षमता पुराने और कम जटिल चिप बनाता है जिनका मूल्य उतना नहीं। यदि सेमीकंडक्टर की मूल्य शृंखला को अलग-अलग किया जाए तो इसके दो प्रमुख भाग हैं आईसी डिजाइन और आईसी फैब्रीकेशन। इसके अन्य हिस्से हैं असेंबली जांच और पैकेजिंग, सॉफ्टवेयर, सामग्री और सेमीकंडक्टर पूंजी उपकरण।
सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन में केवल उन्हीं कंपनियों को सफलता मिली जो अरबों डॉलर का निवेश करने मेंं सक्षम थीं। तीन शीर्ष चिप कंपनियां इंटेल, सैमसंग और टीएसएमसी में से प्रत्येेक ने सेमीकंडक्टर में 20 अरब डॉलर सालाना से अधिक का पूंजीगत व्यय किया। एक फैब की लागत अरबों डॉलर होगी। एक रुझान विनिर्माण की आउटसोर्सिंग का है और बड़े पैमाने पर कंपनियां अपने सेमीकंडक्टर विशिष्ट आउससोर्स कंपनियों से बनवाती हैं। बिना फैब्रिकेशन की चिप कंपनियां डिजाइन पर ध्यान देती हैं और उच्च पूंजी वाला जटिल काम बाहरी कंपनियों पर छोड़ देती हैं।
सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग इंटरनैशनल कॉर्पोरेशन (एसएमआईसी)जैसी राष्ट्रीय कंपनी में अरबों डॉलर का निवेश करने के बाद भी चीन इस क्षेत्र में वैश्विक रूप से अव्वल नहीं बन सका। एसएमआईसी का आकार सबसे बड़ी आउटसोर्सिंग कंपनी ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी से आकार में दस गुना छोटी और तकनीक के मामले में पांच वर्ष पीछे है। सरकार के भारी समर्थन के बावजूद कंपनी तकनीकी अंतराल की भरपाई करने में नाकाम रही
इस क्षेत्र में चीन का राजस्व वैश्विक राजस्व के 10 फीसदी से भी कम है। पूंजी समर्थित उद्योग होने, विनिर्माण क्षमता और गुणवत्ता पर ध्यान देने तथा ऐतिहासिक रूप से प्रतिस्पर्धी बढ़त होने के बावजूद चीन अपनी छाप नहीं छोड़ पाया। ताइवान की कंपनी इस क्षेत्र मेंं अग्रणी है और फिलहाल उसका राजस्व 45 अरब डॉलर है। वह तकनीकी क्षेत्र में भी सबसे आगे है। अगले तीन वर्ष में उसकी 100 अरब डॉलर के पूंजीगत व्यय की योजना है।
चिप डिजाइन के क्षेत्र मेंं चीन को अधिक कामयाबी मिली है। आज भी मूल्य के हिसाब से लगभग 50 प्रतिशत आईसी डिजाइन फैबलेस अमेरिकी कंपनियां करती हैं। चीन हाईसिलिकन जैसी विश्वस्तरीय कंपनियां बनाने में कामयाब रहा है जिन्होंने मोबाइल अैर दूरसंचार इस्तेमाल के लिए चिप डिजाइन किए हैं। चीन में आईसी डिजाइन से जुड़े कई अन्य स्टार्टअप हैं जो बहुत अच्छी स्थिति में हैं। फैबलेस चिप डिजाइन से अर्जित वैश्विक राजस्व का 15 फीसदी चीन के पास जाता है।
सेमीकंडक्टर आपूर्ति शृंखला के अन्य हिस्सों में चीन की उपस्थिति न्यूनतम है। निकट भविष्य में चीन अमेरिका पर निर्भर ही रहेगा। एक दशक से अधिक के प्रयास और अरबों डॉलर की पूंजी लगाने के बाद भी चीन चिप निर्माण की सामग्री, उपकरण और सॉफ्टवेयर के लिए अमेरिका और उसके साझेदारों पर निर्भर है। हालात बदलने में दशकों लगेंगे।
इन बातों का भारत पर क्या असर होगा यह एकदम स्पष्ट है। हम भी इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं और मोबाइल फोन के निर्माण का केंद्र बनना चाहते हैं। ऐसे में सेमीकंडक्टर का आयात जल्दी ही पेट्रोलियम आयात को पार कर सकता है। चीन के अनुभव को देखते हुए लगता नहीं कि हमारे पास इतने संसाधन हैं कि हम सेमीकंडक्टर बनाने का प्रयास भी कर पाएं। ऐसे मेंं बेहतर यही होगा कि हम चिप डिजाइन पर काम करें और विनिर्माण दूसरों पर छोड़ दें।
सन 1990 में 100 फीसदी चिप अमेरिका, यूरोप और जापान में बनते थे। आज इनकी हिस्सेदारी बस 30 फीसदी रह गई है। अब चीन, कोरिया और ताइवान की हिस्सेदारी बढ़ी है। चिप आपूर्ति शृंखला पर नियंत्रण रखने की सामरिक महत्ता को देखते हुए बड़ी आर्थिक शक्तियां चाहती हैं कि चिप डिजाइन उनके यहां तैयार हो। दुनिया भर में इस क्षमता में विस्तार होगा और भारत के पास आयात के लिए तमाम विकल्प होंगे। ऐसे में अपनी पूंजी का इस्तेमाल चिप डिजाइन को बढ़ावा देने में करना उचित होगा। हमारे लिए समकालीन तकनीक आधारित सेमीकंडक्टर का विनिर्माण करना संभव नहीं है।
(लेखक अमांसा कैपिटल से संबद्ध हैं)
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
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