संकट भीतर तक (जनसत्ता)

गांवों में महामारी से हालात बिगड़ रहे हैं। शहरों के बाद गांवों में संक्रमण फैलना ज्यादा चिंता की बात है। ग्रामीण इलाकों में देश की दो तिहाई आबादी रहती है। यह देश का वह इलाका है जहां बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर लगभग कुछ नहीं है। पिछले दिनों उत्तर प्रदेश और बिहार में गंगा किनारे जिस बड़ी संख्या में दफन और बहते शव मिले, उससे पता चलता है कि गांवों में महामारी से किस तरह लोग मर रहे हैं। अगर ये मौतें महामारी से नहीं हो रहीं तो सवाल है फिर कैसे इतने लोग मरे? पहले तो कभी ऐसा नहीं हुआ। महामारी से निपटने में सरकारों की लाचारी उजागर हो चुकी है। वरना इलाहाबाद हाई कोर्ट को यह कहने को क्यों मजबूर होना पड़ता कि उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाएं राम भरोसे हैं! जाहिर है, बड़ी अदालतों की हालात पर नजर है। सरकारों के कामकाज की संस्कृति और आमजन के प्रति लापरवाह रवैए की हकीकत भी मालूम है। ऐसा सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही नहीं, बिहार, गुजरात, मध्यप्रेदश आदि राज्यों में कमोबेश एक जैसे हालात हैं। बहरहाल कुछ भी हो, अब केंद्र और राज्यों के सामने सबसे बड़ी चुनौती ग्रामीण इलाकों में संक्रमण को फैलने से रोकने की है।

गांवों में महामारी से निपटने को लेकर प्रधानमंत्री ने पिछले दिनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों, जिलाधिकारियों और चिकित्साकर्मियों से बात की। जाहिर है, अब केंद्र सरकार भी हालात को लेकर चिंतित तो है ही। अभी सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि गांव-गांव तक चिकित्साकर्मियों की पहुंच ही नहीं है। ग्रामीण इलाकों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों का आधा-अधूरा ढांचा तो है, लेकिन महामारी से निपटने की सुविधाएं बिल्कुल भी नहीं हैं। बेशक यह इंतजाम रातों-रात संभव नहीं हो पाता। महामारी को आए पूरा एक साल से ज्यादा हो गया है। अगर सरकारों का ध्यान गांवों पर भी होता तो एक साल का वक्त कम नहीं था। इसीलिए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सरकार को कसा है। ऐसा नहीं है कि अभी भी गांवों में चिकित्सा सुविधाएं पहुंचाना कोई मुश्किल काम है। लेकिन इसके लिए जो इच्छाशक्ति सरकारों में दिखनी चाहिए, उसका अभाव है। प्रधानंमत्री ने तो गांवों में भी टेलीमेडिसिन सेवा पहुंचाने पर जोर दिया है। इसमें संदेह नहीं कि अगर गांवों और तहसीलों में टेलीमेडिसीन सेवा का पुख्ता नेटवर्क बन जाए तो संक्रमण से निपटना आसान हो जाएगा। लेकिन यह हो कैसे, यह बड़ा सवाल है। होना होता तो अब तक राज्यों ने कोई तो पहल की होती!

गांवों में महामारी के फैलाव को रोकने के लिए एक साथ कई मोर्चे खोलने की दरकार है। इसीलिए विशेषज्ञ बार-बार ग्रामीण इलाकों के लिए कारगर रणनीति बनाने पर जोर दे रहे हैं। इसमें संसाधनों के साथ ही हर गांव में चिकित्साकर्मियों की पहुंच बनाना जरूरी है, ताकि हर व्यक्ति की जांच हो सके। कम गंभीर मरीज या बिना लक्षण वाले मरीजों की पहचान कर उन्हें दूसरी जगहों पर जाने से रोका जा सके। वरना इलाज के लिए ग्रामीणों ने शहरों की ओर रुख करना शुरू कर दिया तो संक्रमण रुकने के बजाय और फैलेगा।

प्रधानमंत्री ने तो जिलाधिकारियों को सुझाव दिया है कि वे अपने स्तर ही आंकड़ों की निगरानी और विश्लेषण करें और हालात के मुताबिक रणनीति बना कर स्थिति संभालें। इस पर ईमानदारी से काम हो तो यह तरीका कारगर सिद्ध हो सकता है। यह भी नहीं भूलना चाहिए कि भारत में कृषि क्षेत्र गांवों पर ही निर्भर है। महामारी कृषि अर्थव्यवस्था को चौपट कर सकती है। इसलिए अगर गांवों के हालात काबू नहीं आए तो देश और बड़े संकट में फंस जाएगा।

सौजन्य - जनसत्ता।
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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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