चन्द्रकांत लहारिया
भारत में कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर की अवश्यंभाविता को पहचानने में नाकाम रहने के कारण एक राष्ट्र के रूप में हमने अपनी उंगलियां जला लीं और महामारी के खिलाफ जीत की घोषणा करने में बहुत जल्दी कर दी। ऐसा मानने का कोई कारण नहीं था। इतिहास सबूतों से भरा है कि महामारी इतनी आसानी से खत्म नहीं होती है। 1918-20 में, इन्फ्लूएंजा महामारी की चार लहरें आई थीं, जिनमें से दूसरी लहर का दुनिया भर के लोगों पर सबसे बुरा प्रभाव पड़ा। कोविड-19 महामारी में, फरवरी- मार्च 2021 तक दुनिया भर के लगभग सभी प्रमुख देशों (चीन अपवाद है, जिसे केवल एक लहर का सामना करना पड़ा) को दो या तीन लहरों का सामना करना पड़ा, जहां पहली लहर की तुलना में दूसरी लहर में ज्यादा मामले सामने आए।
दूसरी लहर के बीच कुछ दिनों पहले भारत सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार ने कहा कि भारत में कोविड-19 की तीसरी लहर अवश्यंभावी है। उन्होंने कहा कि यह अनुमान लगाना संभव नहीं है कि तीसरी लहर कब आएगी और कितनी गंभीर होगी। महामारी विज्ञान के सिद्धांतों पर आधारित यह घोषणा सही है। जब तक अतिसंवेदनशील आबादी रहती है, तब तक लहरों का खतरा बना रहता है।
फरवरी 2021 की शुरुआत में जारी भारत के तीसरे देशव्यापी सीरो-सर्वेक्षण रिपोर्ट में पाया गया था कि केवल 21 फीसदी लोगों में पिछले संक्रमण के प्रमाण मिले, जैसा कि उनके रक्त नमूनों में एंटीबॉडी के माध्यम से पहचाना गया था। अनिवार्य रूप से इसका मतलब था कि 79 फीसदी भारतीय अब भी वायरस के लिए अतिसंवेदनशील हैं, जो अब भी आसपास है। महामारी को रोकने का एकमात्र तरीका है कि हर क्षेत्र में आबादी का एक बड़ा हिस्सा वायरस के खिलाफ प्रतिरक्षा विकसित करे। यह प्रतिरक्षा स्वाभाविक संक्रमण के बाद या टीकाकरण के जरिये प्राप्त की जा सकती है। स्वाभाविक संक्रमण में व्यक्ति के बीमार
होने और मृत्यु का खतरा रहता है। इसलिए टीकाकरण बेहतर तरीका है, क्योंकि यह रोग या मृत्यु के जोखिम के बिना प्रतिरक्षा प्रदान करता है।
ऐसी भी चर्चाएं हैं कि तीसरी लहर में बच्चों के प्रभावित होने की अधिक आशंका है। इस धारणा की पुष्टि करने के लिए कोई वैज्ञानिक अध्ययन नहीं है। यह संभव है कि कुल संख्या के संदर्भ में, बच्चों में संक्रमण की दर में कोई वृद्धि नहीं हो, पर तीसरी लहर में कुल नए संक्रमण के अनुपात में बच्चों की हिस्सेदारी अधिक हो सकती है। अब तक अधिकांश संक्रमण वयस्क और बुजुर्ग आबादी में हुए हैं। यह वही आयु वर्ग है, जिसका टीकाकरण हो रहा है। इसलिए वयस्कों में अतिसंवेदनशील आबादी में गिरावट की संभावना है, जबकि, 18 से कम आयु वर्ग की आबादी बिना प्रतिरक्षा के रहेगी और इस तरह अतिसंवेदनशील होगी।
किसी भी मामले में तीसरी लहर के प्रभाव को कम करना ही एकमात्र तरीका है। इसके लिए कुछ कदम उठाना जरूरी है। सबसे पहले, केंद्र और राज्य सरकारों को तीसरी लहर की प्रतिक्रिया पर विशेष ध्यान देने के साथ महामारी संबंधी विस्तृत तैयारी और प्रतिक्रिया योजना तैयार करनी चाहिए और एक वर्ष या महामारी समाप्त होने तक बाद की सभी लहरें को ध्यान में रखते हुए मध्यम अवधि की योजना तैयार करनी चाहिए। ऐसी योजना को वित्तीय आवंटन और समय-समय पर निगरानी संकेतकों द्वारा समर्थित होना चाहिए। दूसरा, भारत के हर राज्य और जिले में स्वास्थ्य प्रणालियों और सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने और बढ़ावा देने के लिए एक अलग रोडमैप बनाना चाहिए। महामारी की शुरुआत के बाद से स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत करने के सभी वादों पर फिर से कार्रवाई शुरू करने की आवश्यकता है। तीसरा, ऑक्सीजन बेड तैयार करने के लिए देश भर में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) को सक्रिय करना चाहिए।
प्रत्येक पीएचसी में छह बेड हैं और भारत भर में 30,000 पीएचसी हैं और इन्हें सक्रिय करने का मतलब होगा 1,80,000 ऑक्सीजन बेड। चौथा, सुनिश्चित आपूर्ति के जरिये टीकाकरण का तेजी से विस्तार किया जाना चाहिए, ताकि जहां तक संभव हो, योग्य व्यक्ति तक पहुंच सकें। भारत में बच्चों के लिए कोविड टीकों का क्लिनिकल ट्राइल हो रहा है। एक बार निष्कर्ष उपलब्ध होने के बाद बच्चों के लिए टीकाकरण खोला जाना चाहिए। विदेशों में कुछ टीके हैं, जो बच्चों को लगाए जाने के लिए मंजूरी की उन्नत अवस्था में हैं, जब वे टीके भारत में उपलब्ध होते हैं, तो उन्हें बच्चों के टीकाकरण के लिए प्राथमिकता दी जा सकती है।
पांचवां, भारत को कोविड-19 डेटा रिकॉर्डिंग और रिपोर्टिंग में सुधार करने की आवश्यकता है और बीमारी के पैटर्न को समझने तथा किसी उभरते स्ट्रेन को पहचानने के लिए जीनोमिक सिक्वेंसिंग को तेजी से बढ़ाना चाहिए। संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए समय पर उचित रणनीति तैयार करने की दृष्टि से ये दोनों जरूरी हैं। छठा, महामारी की प्रतिक्रिया वैज्ञानिक प्रमाण और विशेषज्ञों की तकनीकी सलाह द्वारा निर्देशित होना चाहिए। राजनेताओं और नीति निर्माताओं को तकनीकी विशेषज्ञों पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। उसमें जन स्वास्थ्य, डिजीज मॉडलिंग, अर्थशास्त्री, समाज विज्ञानी जैसे कई स्वतंत्र विशेषज्ञों को जोड़ना सार्थक होगा। आखिरकार, महामारी का केवल स्वास्थ्य पर ही नहीं, बल्कि सामाजिक एवं आर्थिक प्रभाव भी होता है।
अंत में हर स्तर (केंद्र, राज्य, जिला) पर महामारी में पिछले 15 महीनों की गलतियों और अच्छाइयों से सबक सीखने की जरूरत है। आगे संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए उन सबका उपयोग किया जाना चाहिए। एक बात स्पष्ट है कि हम वायरस के खिलाफ लड़ेंगे और इस महामारी से बाहर निकलेंगे। मौजूदा और किसी भी भावी महामारी से लड़ने के लिए सबसे बेहतर और दीर्घकालीन समाधान एक मजबूत स्वास्थ्य प्रणाली है, जो प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करते हैं और सरकार द्वारा वित्त पोषित हैं। यह सबसे महत्वपूर्ण सबक है, जिसे भारत के नीति निर्माताओं को याद रखना चाहिए।
बुद्धिमान लोगों का कहना है कि समय पर समस्या को पहचान लेना उसका आधा हल निकाल लेना है। महामारी के खिलाफ तैयारी रातोंरात नहीं हो सकती। इसलिए, तीसरी लहर की अवश्यंभाविता की इस मान्यता का उपयोग सभी स्तरों पर सरकारों द्वारा किया जाना चाहिए, ताकि वे प्रभाव को कम करने की तैयारी शुरू कर सकें।
सौजन्य - अमर उजाला।
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